राघोगढ़ में कांग्रेस को ‘किला’ बचाने करनी पड़ी जोर-आजमाइश, बाड़ाबंदी तक हुई, जोश-जवानी के आगे तजुर्बे को अहमियत
गुना डेस्क :
प्रदेश की चर्चित राघोगढ़ नगरपालिका में एक बार फिर कांग्रेस ने कब्जा कायम रखा है। शुक्रवार को हुए अध्यक्ष/उपाध्यक्ष पद के चुनाव में दोनों ही पदों पर कांग्रेस प्रत्याशी जीतकर आए हैं। कांग्रेस के 16 पार्षद थे, तो उनके कैंडिडेट को 16 वोट मिले। BJP 8 वार्डों में जीती थी, तो उसके प्रत्याशी को 8 वोट मिले। चुनाव ऊपरी तौर पर शांतिपूर्ण ही रहा। लेकिन, अंदरूनी तौर पर हलचल रही। यह पहला मौका था, जब कांग्रेस ने अपने पार्षदों को सुरक्षित स्थान पर भेजा। अध्यक्ष पद पर कांग्रेस ने युवा जोश की जगह अनुभव को तरजीह दी। वार्ड 7 से जीते विजय कुमार साहू नगरपालिका अध्यक्ष बने। पढ़िये, विजय साहू के चुने जाने की इनसाइड स्टोरी…
सबसे पहले चुनाव पर एक नजर डालिए
बता दें कि राघोगढ़ नगरपालिका प्रदेश के पूर्व CM दिग्विजय सिंह के गृह नगर की नगरपालिका है। गठन के बाद से ही यहां कांग्रेस का कब्जा रहा है। सीटों के मामले में भी भाजपा पीछे ही रहती है। अब तक केवल एक बार दोनों दलों की 12-12 सीटें आई हैं। हालांकि, तब भी अध्यक्ष कांग्रेस का ही बना था। 20 जनवरी को मतदान के बाद 23 जनवरी को हुई मतगणना में कांग्रेस को बहुमत मिला था। 24 वार्डों में से कांग्रेस के खाते में 16 वार्ड आए। वहीं, भाजपा 8 वार्डों में चुनाव जीतकर आई। पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार भाजपा ने दोगुने ज्यादा वार्ड जीते। उसे रुठियाई इलाके के 4 वार्डों में से 3 में जीत मिली। यहां कांग्रेस केवल एक वार्ड ही जीत पाई।
नगरपालिका के 24 वार्डों में कुल 45,108 मतदाता थे। 20 जनवरी को हुए मतदान में 76 प्रतिशत मतदान हुआ था। यानि लगभग 34,200 वोट डाले गए थे। 23 जनवरी को आये परिणाम के अनुसार कांग्रेस प्रत्याशियों के लगभग 19,469 वोट मिले। वहीं भाजपा प्रत्याशियों को लगभग 12, 547 मत प्राप्त हुए। इस हिसाब से कांग्रेस को 57 प्रतिशत और भाजपा को 37 प्रतिशत बोट हांसिल हुए। यानि, कांग्रेस पर आधे से ज्यादा वोटरों ने भरोसा जताया है।
नए–नवेले पार्षदों पर पड़ गयी दूसरे दल की नजर!
यह पहला मौका था जब कांग्रेस ने पार्षदों को सुरक्षित स्थान पर भेजा। हालांकि चुनाव की कमान संभाल रहे राघोगढ़ विधायक जयवर्धन सिंह हमेशा इसे नकारते आए। उनका कहना था कि पार्षद चुनाव के बाद थकान मिटाने के लिए घूमने गए हैं। सभी चुनाव के बाद जाते ही हैं, लेकिन यह जितनी आसान दिख रही है, उतनी है नहीं। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस के कुछ पार्षदों पर दूसरे दल की नजर पड़ गई थी। गुपचुप तौर पर उन तक मैसेज भी पहुंचा दिया गया था।
उन्हें मोटी रकम का वादा किया गया था। उनकी तरफ से भी स्थिति स्पष्ट नहीं कि गई थी। हालांकि, ऐन वक्त पर इसकी भनक कांग्रेस नेताओं को लग गई। अंदाजा हो गया कि कुछ पार्षद डगमगा सकते हैं। इनमें ज्यादातर पहली बार के पार्षद थे। तय हुआ कि पार्षदों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया जाए। केवल उन्हीं 2-3 पार्षदों को राघोगढ़ में रोका गया, जिन पर ‘किले’ को भरोसा था।
अब पढ़िए, विजय साहू को मैंडेट मिलने की कहानी
चुनाव में उम्मीदवार घोषित होने के बाद से ही कांग्रेस से दो नाम सामने आने लगे थे। इनमें एक नाम राजेश साहू और दूसरा नाम विजय साहू का था। नपाध्यक्ष पद OBC के लिए आरक्षित था। ये दोनों ही नाम जयवर्धन सिंह के करीबी और विश्वस्त माने जाते हैं। क्षेत्र में लोगों के काम इनके जरिए ही होकर जयवर्धन सिंह तक पहुंचते हैं। उनकी अनुपस्थिति में भी यही लोग पूरा काम देखते हैं। हालांकि, दोनों ने एक बुनियादी फर्क पिछले कुछ समय से सामने आ रहा था।
क्षेत्र के नागरिक राजेश साहू के पास अपना काम लेकर पहुंचते, तो उन्हें कोई संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं मिलता था। घुमा-फिराकर उन्हें जवाब दिया जाता।जबकि, विजय साहू के पास स्पष्ट जवाब होता था। यानी अगर काम होना है तो हां, वरना नहीं। इसी एक चीज पर राजेश साहू पीछे होते हुए विजय साहू से पिछड़ गए।
दूसरा, विजय साहू के पास एक लंबा अनुभव है। वह मार्केटिंग सोसाइटी में नौकरी किया करते थे। अपनी कार्यशैली के दम पर वह मार्केटिंग सोसाइटी के अध्यक्ष बने। उनके पास राजनैतिक जीवन का एक लंबा अनुभव भी है। यही कारण रहा कि उन्हें इस चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए तरजीह दी गयी।
अंदरखाने में यह बात भी है कि राजेश साहू के पास अभी काफी राजनैतिक समय है। उन्हें आगे भी मौका दिया जा सकता है। वहीं विजय साहू के लिए दिग्विजय सिंह का वीटो लगा, क्योंकि वह उनके समय से ही ‘किले’ से जुड़े रहे हैं। एक संभावना यह भी है कि राजेश साहू को आने वाले समय और चुनावों का वायदा कर इस बार इंतजार करने का वादा किया गया है।