मध्यप्रदेश

ख़ास खबर: मध्यप्रदेश सरकार पर बजट से ज्यादा कर्ज; आमदनी 2.25 लाख करोड़, खर्च इससे 54 हजार करोड़ ज्यादा

अब 23 हजार करोड़ की नई घोषणाएं

भोपाल डेस्क :

मध्यप्रदेश में चुनावी साल में हो रही घोषणाएं सरकार के खजाने पर भारी पड़ रही हैं। मौजूदा बजट के मुताबिक सरकार की आमदनी 2.25 लाख करोड़ रुपए है और खर्च इससे 54 हजार करोड़ ज्यादा। वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 23 हजार करोड़ की नई घोषणाएं कर चुके हैं। अकेले लाड़ली बहना योजना पर ही सालाना 19 हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे।

ऐसे में सवाल यह है कि इन सबके लिए पैसा कहां से आएगा, जबकि सरकार पर कर्ज, बजट से ज्यादा हो गया है? जानकार मानते हैं ऐसे में सरकार के पास दो ही विकल्प है या तो टैक्स बढ़ाकर आमदनी बढ़ाए या विकास योजनाओं के बजट में कटौती करें।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ सरकार की तरफ से फ्रीबीज योजना लागू की गई है। कांग्रेस ने भी सत्ता में आने के बाद नारी सम्मान योजना के तहत महिलाओं को हर महीने 1500 रुपए देने का वादा किया है, जबकि बीजेपी और कांग्रेस का चुनावी घोषणा पत्र आना अभी बाकी है।

फ्रीबीज स्कीम सत्ता हासिल करने में भले ही मददगार साबित हों, लेकिन नई सरकार की वित्तीय स्थिति व आम आदमी की आर्थिक सेहत पर क्या असर होगा? नई सरकार के सामने क्या चुनौतियां होंगी? पढ़िए मध्यप्रदेश सरकार के खजाने पर रिपोर्ट…

पहले बताते हैं- 10 बड़ी घोषणाएं जो सरकार ने चुनावी साल में लागू की

‘फ्रीबीज’ स्कीम

10 जून 2023 – लाड़ली बहना योजना

योजना के तहत 1 करोड़ 31 लाख महिलाओं के खाते में हर महीने 1000 रुपए डाले जा रहे हैं। जो अक्टूबर महीने से 1250 रुपए हो जाएंगे।

1250 रुपए के हिसाब से 163.75 करोड़ हर महीने का खर्च। सालाना 19,650 करोड़ रुपए खर्च होंगे।

14 अगस्त 2023 – किसान सम्मान निधि 2 हजार बढ़ाई

प्रदेश के 87 लाख किसानों को मिलने वाली सम्मान निधि 4 हजार से बढ़ाकर 6 हजार रुपए की गई। इससे सरकारी खजाने पर 1750 करोड़ का सालाना अतिरिक्त बोझ बढ़ा। (ये सरकार पर साल में एक बार बोझ है।)

20 जुलाई 2023 – मेधावी छात्र-छात्राओं को लैपटॉप

सरकार ने कक्षा 12वीं के 78,641 मेधावी छात्र-छात्राओं के खाते में 25-25 हजार रुपए डाले। इससे सरकार पर 196 करोड़ 60 लाख रुपए का बोझ आया। (ये सरकार पर साल में एक बार बोझ है।)

24 अगस्त 2023 – 7800 स्टूडेंट्स को स्कूटी

इलेक्ट्रिक स्कूटी 1 लाख 20 हजार और पेट्रोल वाली स्कूटी के लिए 90 हजार रुपए निर्धारित किए थे। इस पर खर्च 79 करोड़ रुपए। (ये सरकार पर साल में एक बार बोझ है।)

अब समझिए सरकारी कर्मचारियों को क्या दिया?

28 जून 2023 – 23 हजार रोजगार सहायकों का वेतन दोगुना किया

9 हजार से बढ़ाकर 18 हजार वेतन किया। रोजगार सहायकों के वेतन पर सालाना 248 करोड़ खर्च होता था, जो अब 496 करोड़ हो गया। 248 करोड़ अतिरिक्त बोझ।

22 अगस्त 2023 – पंचायत सचिवों को 7वां वेतनमान

21,110 पंचायत सचिवों का वेतन 34,632 से बढ़ाकर 41,814 रुपए किया गया है। नया वेतनमान देने से सरकार पर 181 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ।

14 जुलाई 2023 – कर्मचारियों का डीए 4 प्रतिशत बढ़ाया

प्रदेश के साढ़े सात लाख कर्मचारियों को महंगाई भत्ता 38% से बढ़ाकर 42% किया गया। सरकार पर 265 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ।

2 सितंबर 2023 – अतिथि शिक्षकों का मानदेय दोगुना

मप्र में 67,910 अतिथि शिक्षक हैं। इनमें ये वर्ग 1 में 15,920 (मानदेय 9 हजार), वर्ग 2 में 38,294 (मानदेय 7 हजार) और वर्ग 3 में 13,695 (मानदेय 5 हजार) हैं। इस हिसाब से सालाना 575 करोड़ का बोझ।

11 सितंबर 2023 – कॉलेज के अतिथि विद्वानों का मानदेय 20 हजार बढ़ाया

अनुदान प्राप्त विश्विविद्यालयों व कॉलेजों के साढ़े चार हजार से ज्यादा अतिथि विद्वानों का मानदेय 30 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपए किया गया। इससे 108 करोड़ का अतिरिक्त बोझ।

11 जून 2023 – आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय

प्रदेश की करीब एक लाख 80 हजार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 10 हजार से बढ़ाकर 13 हजार किया गया। इससे सरकार पर 648 करोड़ का सालाना बोझ बढ़ा।

(इन 10 घोषणाओं पर सालाना खर्च 23,435 करोड़ रुपए खर्च होगा।)

लाड़ली बहना योजना पर 5 साल में खर्च होंगे करीब 1 लाख करोड़

लाड़ली बहना योजना में हितग्राहियों की मौजूदा संख्या 1.31 करोड़ के हिसाब से देखें तो अगले पांच साल में सरकार को 98 हजार 250 करोड़ रुपए खर्च करने होंगे। जब यह योजना शुरू हुई तो सरकार ने कहा था कि पांच साल में 61 हजार 890 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यह अनुमान सवा करोड़ हितग्राहियों के हिसाब से किया गया था, लेकिन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि राशि 1250 से बढ़ाकर धीरे-धीरे 3 हजार रुपए तक की जाएगी। यानी केवल एक ही योजना को संचालित करने के लिए सरकार को अपनी वित्तीय सेहत ठीक करना होगी।

सरकार का जितना बजट, उससे ज्यादा कर्ज

मध्यप्रदेश सरकार पर कुल कर्ज 3 लाख 32 हजार करोड़ रुपए हो गया है। 31 मार्च 2022 तक प्रदेश का कुल सार्वजनिक कर्ज 2.95 लाख करोड़ रुपए था। बजट अनुमान (वित्त वर्ष 2023-24 के लिए) के अनुसार 31 मार्च, 2024 तक यह आंकड़ा बढ़कर 3.85 लाख करोड़ होने का अनुमान है।

बता दें, मौजूदा वित्तीय वर्ष में मप्र सरकार का बजट – 3 लाख 14 हजार 25 करोड़ रुपए है। सरकार की इनकम के लिहाज से भी देखें तो सरकार की आमदनी 2023-24 में 2 लाख 25 हजार करोड़ होने का अनुमान लगाया गया है जबकि खर्च 2,79,000 करोड़।

विशेषज्ञ हैरान हैं कि कर्ज में डूबी सरकार ने दो साल में बाजार से एक लाख करोड़ से ज्यादा का लोन उठा लिया है। यह अब तक लिए गए लोन का एक तिहाई है। इसका असर यह हुआ कि मप्र में हर व्यक्ति पर पांच साल में कर्ज डबल हो गया। ऐसा संभवत: पहली बार है।

दिग्विजय सरकार पर जितना कर्ज था, उतना तो ब्याज भर रही शिवराज सरकार

वर्ष कुल कर्ज ब्याज राशि प्रति व्यक्ति कर्ज
2003-04 20 हजार करोड़ 2,502 करोड़ 3,300 रुपए
2023-24 3.85 लाख करोड़ 24 हजार करोड़ 50 हजार रुपए

वित्तीय जानकार राजेश जैन से समझिए, कैसी होगी नई सरकार की आर्थिक सेहत

1- सरकार के बजट से ज्यादा कर्ज हो गया है, इसका राज्य की वित्तीय स्थिति पर क्या असर होगा?

बजट से ज्यादा कर्ज होना खराब स्थिति नहीं होती है, लेकिन यह निर्भर करता है कि कर्ज से मिली राशि का उपयोग किन मदों में करना है? यदि डवलपमेंट, इन्फ्रास्ट्रक्चर या फिर पब्लिक से जुड़ी योजनाओं के लिए बजट से ज्यादा कर्ज लिया जाता है तो कोई दिक्कत नहीं है, क्योंकि बजट में कर्ज रीपेमेंट करने के लिए राशि (ब्याज व किस्त ) का प्रावधान करना पड़ेगा।

2- फ्रीबीज स्कीम से सरकार की वित्तीय स्थिति पर विपरीत असर पड़ेगा?

निश्चित तौर पर रेवेन्यू नेचर की घोषणाएं होंगी तो रीक्रिंग इफेक्ट आएगा और सरकार का खर्च हर महीने बढ़ता जाएगा। सामान्य तौर पर होता यह है कि केंद्र हो या फिर राज्य सरकार सत्ता में आने के बाद शुरू के तीन साल बजट के माध्यम से पब्लिक पर बोझ डालती है। चौथे साल स्थिति को सामान्य करती है। पांचवें साल पब्लिक की मांगों को पूरा करती है।

मौजूदा सरकार ने जो घोषणाएं अब की हैं, यह पहले भी की जा सकती थी। ऐसा करके अचानक बढ़े अतिरिक्त बोझ को बैलेंस किया जा सकता है, लेकिन कुछ योजनाएं ऐसी लागू की गई हैं, जिसका रिजल्ट सरकार के लेबर पर शून्य है। जैसे लाड़ली लक्ष्मी व लाड़ली बहना योजना, इससे पब्लिक को तो सीधे फायदा हो रहा है, लेकिन इससे देश या राज्य को कोई बेनिफिट नहीं है।

दरअसल, यह कर्नाटक व हिमाचल के चुनाव परिणामों का इफेक्ट है। बीजेपी इन दोनों राज्यों में चुनाव हार गई। इसकी वजह फ्रीबीज स्कीम को कारण माना जा रहा है। इससे पहले भी दिल्ली में केजरीवाल सरकार भी फ्रीबीज स्कीम की बदौलत ही सत्ता हासिल कर पाई थी।

3- इन घोषणाओं से नई सरकार के सामने क्या चुनौतियां होंगी?

देखना होगा कि नई सरकार इस तरह की स्कीम के लिए फंड का इंतजाम कैसे करती है? इसके लिए सरकार को राजस्व बढ़ाने के प्रयास करने होंगे। नहीं तो टैक्स बढ़ाने होंगे या फिर एडिशनल टैक्स लगाने होंगे। यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो अप्रत्यक्ष तौर पर राज्य पर कर्ज बढ़ता जाएगा।

4- सरकार को इन योजनाओं को निरंतर रखने के लिए क्या कदम उठाने पड़ेंगे?

यह सार्वजनिक है कि पिछले कुछ सालों से सरकार पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। यह भी सच है कि सरकार का रेवेन्यू भी बढ़ता जा रहा है। यह डिजिटलाइजेशन सिस्टम की वजह से संभव हो रहा है। सरकार को योजनाओं के क्रियान्वयन में लीकेज को बंद करना होगा और जिन मदों में रेवेन्यू पूरा नहीं आ पा रहा है, वहां ध्यान देना होगा। चाहे आबकारी हो, माइनिंग हो या फिर लीज नवीकरण। इन तीन सेक्टर पर सरकार फोकस करे तो नए टैक्स लगाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी।

5- क्या फ्रीबीज स्कीम से विकास कार्यों व अन्य योजनाओं पर क्या असर पड़ेगा?

देखिए, आम आदमी को तो सरकार फ्रीबीज स्कीम के तहत पैसे बांट रही है। टैक्सपेयर का पैसा इन्फ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट या आम आदमी की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए खर्च किया जाता है। अब इसका उपयोग चुनाव मैनेजमेंट के लिए हो गया है।

इसका विकास कार्यों व अन्य योजनाओं पर निश्चित ही असर पड़ेगा। यदि टैक्स से मिलने वाली राशि का उपयोग मुफ्त की योजनाओं में खर्च किया जाएगा तो विकास कार्य प्रभावित होंगे। इससे सरकार को कोई फायदा नहीं होगा। इसे आम आदमी की जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकार की सामाजिक जिम्मेदारी के तौर पर देखें तो गरीब तबके के उत्थान के लिए यह जरूरी है।

ऐसे कर्ज लेती है सरकार

सरकार आरबीआई के माध्यम से कर्ज लेती है। इसमें सरकार को बताना होता है कि इस राशि का कहां और कैसे खर्च किया करना है। इसके लिए सरकार नोटिफिकेशन जारी करती है। इसमें कर्ज की जानकारी दी जाती है। आरबीआई की अनुशंसा के बाद सरकार कर्ज लेती है। यह पैसा आरबीआई में रिजस्टर्ड वित्तीय संस्थाएं देती हैं।

सरकार के लिए 5वां साल ‘रेवड़ियों का साल’

केंद्र हो या फिर राज्य सरकार, सत्ता में आने के बाद शुरू के तीन साल बजट के माध्यम से पब्लिक पर बोझ डालती है। चौथे साल स्थिति को सामान्य करती है। पांचवें साल सरकार के लिए ‘रेवड़ियों का साल’ होता है। इसमें वह पब्लिक की मांगों को पूरा करती है। – राजेश जैन, वित्तीय जानकार

कर्ज बढ़ोतरी के तर्क

1- अर्थशास्त्री

सरकार भले ही नियमों के तहत कर्ज लेती है, लेकिन लोकलुभावन वादों की राजनीति हावी होती जा रही है। सरकार जिस रफ्तार से कर्ज लेने लगी है, इस पर कंट्रोल जरूरी है। ऐसा नहीं किया गया और फ्री बांटने की स्ट्रेटजी नहीं बदली तो भविष्य में श्रीलंका जैसे हालात बन जाएंगे।

2- सरकार

सरकार के नजरिए से देखें तो बाजार और फाइनेंशियल इंस्टिट्यूशन से लोन कैपिसिटी बढ़ाना अच्छा संकेत है। उसकी यह कैपिसिटी जितनी बढ़ेगी, सैद्धांतिक रूप से डवलपमेंट के लिए पैसा खर्च हो सकेगा। इसमें सड़क, बिजली, पानी और पंचायतें शामिल हैं। साथ में वेतन, पेंशन, मंहगाई भत्ता और सामाजिक न्याय से जुड़ी योजनाओं पर भी राशि खर्च होगी।

4 साल में 3 गुना बढ़ गया घाटा

137 योजनाओं का बजट रोका

मंत्रालय सूत्रों के अनुसार वित्त विभाग ने लाड़ली बहना योजना शुरू होने से 10 दिन पहले (जून महीने में) 137 योजनाओं पर खर्च होने वाली राशि पर रोक लगा दी थी। वित्त विभाग ने 41 विभागों को जारी आदेश में 137 योजनाओं पर राशि खर्च करने से पहले अनुमति लेने के निर्देश दिए थे।

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