भोपाल

मध्यप्रदेश की लहरी बाई के मोदी भी मुरीद: प्रधानमंत्री बोले- लहरी बाई पर गर्व है ‘मिलेट्स बैंक’ की मालकिन के रूप में पहचान

भोपाल डेस्क :

मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले में मिलेट्स (मोटा अनाज) का बीज बैंक चलाने वाली लहरी बाई की देशभर में प्रशंसा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लहरी बाई और उनके बीज बैंक की तारीफ की है। प्रधानमंत्री ने गुरुवार को ट्वीट कर लहरी बाई को लोगों की प्रेरणा बताया है।

PM ने एक वीडियो को रीट्वीट करते हुए लिखा- लहरी बाई पर गर्व है, जिन्होंने श्री अन्न के प्रति उल्लेखनीय उत्साह दिखाया है। उनके प्रयास कई अन्य लोगों को प्रेरित करेंगे। मिलेट्स उत्पादन में मध्यप्रदेश अभी देश में दूसरे नंबर पर है। पहला नंबर है छत्तीसगढ़ का, छत्तीसगढ़ की सीमा से ही लगा है MP का डिंडौरी जिला। ये जिला मिलेट्स उत्पादन में प्रदेश में पहले नंबर पर है।

पढ़िए आखिर मिलेट्स की चर्चा क्यों हो रही है ?

मिलेट्स यानी मोटा अनाज। इन्हें सुपर फूड भी कहा जाता है। सुपर फूड इसलिए क्योंकि ये पोषक तत्वों का खजाना हैं। बुधवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में इसे ‘श्रीअन्न’ कहा और इसके उत्पादन को बढ़ाने पर जोर दिया।

दरअसल, ये अनाज समय के साथ आम आदमी की थाली से गायब होते चले गए। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस साल को मिलेट्स ईयर घोषित किया है। भारत दुनिया में मिलेट्स के उत्पादन की अगुवाई कर सकता है और MP की भूमिका इसमें अग्रणी हो सकती है।

MP फिलहाल मिलेट्स उत्पादन में देश में दूसरे नंबर पर है। पहला नंबर है छत्तीसगढ़ का, छत्तीसगढ़ की सीमा से ही लगा है MP का डिंडौरी जिला। ये जिला मिलेट्स उत्पादन में प्रदेश में पहले नंबर पर है। यहां 27 साल की लहरी बाई मिलेट्स को बचाने और बढ़ाने का काम कर रही हैं।

अब आपको बताते हैं लहरी बाई की कहानी

डिंडौरी जिला मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा मिलेट्स उत्पादक जिला है। हम इसी जिले के सिलपीड़ी गांव पहुंचे। ये गांव जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर है। इसी गांव में एक छोटा सा घर है लहरी बाई का। लहरी बाई की उम्र 27 साल हैं। लहरी बाई के पास अनाज की उन किस्मों के बीज हैं जो लोगों की थाली ही नहीं, खेतों से भी गायब हो गए हैं। यानी दुर्लभ कलेक्शन। यहां एक कमरे में बीजों को इस तरह सहेजकर रखा गया है जैसे किसी बैंक में बेहद सुरक्षा और एहतियात से नोट रखे जाते हैं। इसीलिए जिले के अफसर भी इसे लहरी बाई का बीज बैंक कहते हैं।

इस बैंक में 30 से ज्यादा ऐसी किस्म के मोटे अनाज के बीज हैं, जिनका नाम जानने वाले भी अब बहुत कम लोग ही हैं। मोटे अनाज के नाम पर ज्यादातर लोग सिर्फ ज्वार, बाजरा के नाम ही जानते हैं। अपने इस अनोखे बैंक के बारे में बताते हुए लहरी बाई के चेहरे की चमक देखते ही बनती है। ये सिर्फ बीजों की पूंजी नहीं है, बल्कि लहरी बाई के जीवन भर की कमाई है। इसे अपने तक सीमित रखने की बजाय वो इसे इलाके में बांट भी रही हैं ताकि दोबारा लोग मोटे अनाज की खेती की ओर लौटें। यही वजह है कि करीब एक माह पहले कलेक्टर विकास मिश्रा ने अपने मातहतों को यहां तक कह दिया कि लहरी बाई लोगों को मिलेट्स लगाने के लिए प्रेरित कर रही हैं और हम यहां सो रहे हैं।

लहरी बाई बताती है कि खेती से ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर मे लोग मोटे अनाज की खेती करना धीरे-धीरे बंद करने लगे और हम बचपन से ही मोटे अनाज खाते आ रहे हैं। मुझे लगने लगा कि अब ये बीज विलुप्त हो जाएंगे। मैं उन्हें अपने घर पर इकट्ठा करने लगी। उसके लिए मुझे सुबह से आसपास के गांव में जाना पड़ता। कई लोगों की बात सुनती, लेकिन मैंने हार नही मानी। मैंने बीज लाकर पहले खुद अपने खेत में लगाया और जब बीज ज्यादा हो गया तो उसे बीज बैंक में रखती गई। लोगों को घर-घर जा जाकर समझाती कि मोटे अनाज खाने से शरीर ठीक रहता है। ताकत मिलती है। उसके फायदे बताए तो फिर धीरे-धीरे लोग मुझसे ही बीज मांगने लगे।

मैं गांव-गांव जाकर बीज बांटने लगी। धीरे-धीरे ग्रामीणों को भी समझ में आ रहा है और उसकी खेती फिर शुरू कर रहे हैं। जब कोई किसान बीज लेता है तो फसल कटाई के बाद जब अनाज घर लेकर आता है तो उससे जितना बीज दिया उससे एक किलो बढ़कर अनाज लेती हूं।

लहरी बाई ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं। उन्हें अक्षर ज्ञान है। बुजुर्ग और बीमार माता-पिता की देखभाल के कारण शादी भी नहीं की है।

इसलिए मोटे अनाज हैं सुपर फूड

मोटे अनाज कैल्शियम, आयरन, जिंक, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे खनिजों का समृद्ध स्रोत होते हैं। इसमें आहार फाइबर और विटामिन जैसे फोलिक एसिड, विटामिन बी-6, बीटा कैरोटीन और नियासिन पर्याप्त मात्रा में होती है। उच्च मात्रा में लेसिथिन की उपलब्धता तंत्रिका तंत्र को मजबूत करने के लिए उपयोगी होती है।

मिलेट्स का उत्पादन गिरने के बाद बदला सरकारी रवैया

करीब 24 बरस पहले छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने से ठीक पहले अविभाजीत मध्य प्रदेश में एक नारा गूंजा- ‘मिलेट्स हटाओ, सोयाबीन लगाओ’। हालांकि इस नारे से पहले ही मिलेट्स यानी मोटे अनाज की खेती मध्यप्रदेश में कम होने लगी थी जो इसके बाद तेजी से घट गई। अब एक बार फिर मध्यप्रदेश सरकार मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए गंभीर है। सभी जिलों के कलेक्टर को चिट्‌ठी लिखकर सरकार ने कहा है कि अपने यहां किसानों के प्रोग्राम आयोजित कराएं। उन्हें मोटे अनाज लगाने के लिए प्रेरित करें। सरकारी सहायता के बारे में बताएं और स्कूलों में भी इसके बारे में विस्तार से बताएं।

फिलहाल ये है MP में बाजार की स्थिति

प्रदेश के डिंडौरी, मंडला, उमरिया, शहडोल, अनूपपुर, सीधी, सिंगरौली, कटनी, जबलपुर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, मुरैना, भिंड जिले में कोटो-कुटकी, बाजरा और ज्वार की खेती होती है। सरकार बाजरा 2 हजार 350 और ज्वार 2 हजार 970 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य पर खरीद रही है। पर कोदो-कुटकी के लिए ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। इसका समर्थन मूल्य भी नहीं है। किसान उपज बेचने में परेशान न हो, इसलिए राज्य आजीविका मिशन ने कोदो-कुटकी के लिए मंडला, डिडौंरी, सीधी और सिंगरौली में उत्पादक समूह बनाए हैं। वहीं, बाजरा के लिए छिंदवाड़ा और मुरैना में समूह बने हैं।

मिलेट क्रॉप्स की ये है खासियत

मिलेट्स या श्रीअन्न की फसलों को कम पानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए जहां गन्ने के पौधे को 2100 मिलीमीटर पानी की जरूरत पड़ती है। वहीं, बाजरा के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में केवल 350 मिलीमीटर पानी ही चाहिए होता है। जहां, बाकी फसलें पानी की कमी होने पर बर्बाद हो जाती हैं। वहीं, मोटा अनाज की फसल अगर खराब भी हो जाती है तो वह पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं।

बजट में श्रीअन्न के जिक्र से क्या बदलेगा

वित्त भाषण के दौरान निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘इन श्रीअन्न को अब बड़े स्तर पर अपने भोजन का अंग बनाने की तैयारी पर काम किया जाएगा। इसके लिए हैदराबाद के भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस बनाने की तैयारी है।’

कलेक्टर कर चुके हैं सम्मानित

डिंडौरी कलेक्टर विकास मिश्रा ने लहरी बाई को स्टार ऑफ द मंथ सम्मान दिया था। पिछले महीने हुए सम्मान समारोह में कलेक्टर ने लहरी बाई से कहा था कि आप यहां आइए! कुर्सी पर बैठिए। सभी अफसरों को मैं बताना चाहता हूं कि ये सिलपीड़ी गांव की लहरी बाई हैं। हम सब अफसर और कर्मचारी जब यहां सो रहे हैं, ये गांवों में मिलेट्स के बीज उपलब्ध करा रही हैं। ऐसे बीज जो किसानों को देने के लिए हमारे पास भी नहीं हैं। ये जरूरतमंद हैं फिर भी इन्हें अब तक प्रधानमंत्री आवास योजना में हम घर नहीं दिला सके। हम सब शर्मिंदा है कि आपको घर नहीं दे सके। लेकिन भरोसा दिलाते हैं कि जल्द ही आपका पक्का घर होगा। सीएम शिवराज सिंह चौहान भी एक कार्यक्रम में मंच से लहरी की तारीफ कर चुके हैं।

लहरी बाई को बचपन से खेती में रहा रुझान

लहरी बाई ने बताया कि मैं बचपन से ही घर में बेवर खेती देख रही हूं। उसके बीज को सहेजने की जानकारी घर में मिली। मैंने भी बीजों को संरक्षित करना शुरू कर दिया। मुझे बीज संरक्षित करना अच्छा लगता है। बेवर बीज की खेती से उत्पन्न होने वाले अनाज को खाने शरीर हष्ट-पुष्ट रहता है। आयु भी लंबी होती है। मैंने अपने खेत में धान और कोदो की खेती की। सामुदायिक अधिकार वाले जंगल की जमीन पर भी मैं पारंपरिक खेती करने में इन बीजों का इस्तेमाल करती हूं।

30 से ज्यादा प्रकार के बीज संरक्षित

लहरी बाई के बीज बैंक में 30 से ज्यादा प्रजाति के बीज हैं। इनमें कांग की चार प्रजाति हैं। भुरसा कांग, सफेद कलकी कांग, लाल कलकी कांग, करिया कलकी कांग है।

  • मढिया की प्रजाति- चावर मढिया, लाल मढिया, गोद पारी मढिया, मरामुठ मढिया।
  • सलहार की तीन प्रजाति- बैगा सलहार, काटा सलहार, ऐंठी सलहार।
  • साभा की प्रजाति- भालू सांभा, कुशवा सांभा, छिदरी सांभा।
  • कोदो के प्रजाति- बड़े कोदो, लदरी कोदो, बहेरी कोदो, छोटी कोदो।
  • कुटकी की प्रजाति- बड़े डोंगर कुटकी, सफेद डोंगर कुटकी, लाल डोंगर कुटकी, चार कुटकी, बिरनी कुटकी, सिताही कुटकी, नान बाई कुटकी, नागदावन कुटकी, छोटाहि कुटकी, भदेली कुटकी, सिकिया बीज।
  • दलहनी फसल- बिदरी रवास, झुंझुरु, सुतरु, हिरवा, बैगा राहर के बीज।

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