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सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: संविधान पीठ ने कहा एससी/एसटी वर्ग में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है

न्यूज़ डेस्क :

संविधान पीठ के छह जजों के कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति में सब-कैटेगरी को भी आरक्षण दिया जा सकता है। सिर्फ़ जज जस्टिस बेला त्रिवेदी इस राय से असहमत थीं।

इस फ़ैसले के बाद राज्य अनुसूचित जाति और जनजातियों के आरक्षण में आंकड़ों के आधार पर सब-क्लासिफिकेशन यानी वर्गीकरण कर सकते हैं।

इसका मतलब ये है कि अगर किसी राज्य में 15% आरक्षण अनुसूचित जातियों के लिए है तो उस 15% के अंतर्गत वो कुछ अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण तय कर सकते हैं.

कोर्ट ने कहा कि सारी अनुसूचित जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं हैं. कुछ दूसरों से ज़्यादा पिछड़ी हो सकती हैं. इसलिए उनके उत्थान के लिए राज्य सरकार सब-क्लासिफिकेशन कर के अलग से आरक्षण रख सकती है।

सात जजों ने छह अलग-अलग राय लिखी. विशेषज्ञों का मानना है कि आरक्षण के हिस्से में ये एक बहुत बड़ा फ़ैसला है जिसके कई राजनीतिक प्रभाव दिखेंगे।

1975 में पंजाब सरकार ने अनुसूचित जाति की नौकरी और कॉलेज के आरक्षण में 25% वाल्मीकि और मज़हबी सिख जातियों के लिए निर्धारित किया था. इसे हाई कोर्ट ने 2006 में ख़ारिज कर दिया।

ख़ारिज करने का आधार 2004 का एक सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला था, जिसमें कहा गया था कि अनुसूचित जाति की सब-कैटेगरी नहीं बनाई जी सकती.

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यों के पास ये करने का अधिकार नहीं है, क्योंकि अनुसूचित जाति की सूची राष्ट्रपति की ओर से बनाई जाती है।

पढ़ाई और नौकरी दोनों पर लागू

आंध्र प्रदेश ने भी पंजाब जैसा एक कानून बनाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध करार दिया।

इस कारण, पंजाब सरकार ने एक नया क़ानून बनाया, जिसमें यह कहा गया कि अनुसूचित जाति के आरक्षण के आधे हिस्से में इन दो जातियों को प्राथमिकता दी जाएगी. ये क़ानून भी हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दिया।

यह मामला सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की पीठ के पास पहुंचा। एक अगस्त के फ़ैसले ने 2004 के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पलट दिया।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने और जस्टिस मनोज मिश्रा के फ़ैसले में कहा कि अनुसूचित जाति एक समान वर्ग नहीं है।

उन्होंने लिखा कि कुछ जातियां, जैसे जो सीवर की सफ़ाई करते हैं, वो बाक़ियों से ज़्यादा पिछड़ी रहती हैं, जैसे जो बुनकर का काम करते हैं जबकि दोनों ही अनुसूचित जाति में आते हैं और छुआ-छूत से जूझती हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि सब-क्लासिफिकेशन का निर्णय आंकड़ों के आधार पर होगा ना कि राजनीतिक लाभ के लिए. सरकारों को ये दिखाना होगा कि क्या पिछड़ेपन के कारण किसी जाति का सरकार के कार्य में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. सब-क्लासिफिकेशन पर जुडिशियल रिव्यू भी लगाया जा सकता है।

क्या होगा असर?

चार और जजों ने चीफ जस्टिस की राय से सहमति जतायी. पर अपने-अपने फ़ैसले लिखे। जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि सरकार ये नहीं कर सकती कि किसी एक जनजाति को पूरा आरक्षण दे दे।

पंजाब सरकार ने कोर्ट के सामने ये तर्क रखा कि अनुसूचित जाति में सभी जातियां समान नहीं है. केंद्र सरकार ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सब-क्लासिफिकेशन की अनुमति मिलनी चाहिए।

फ़िलहाल, अन्य पिछड़ा वर्गों के आरक्षण में सब-क्लासिफिकेशन होता है. अब ऐसा ही सब-क्लासिफिकेशन अनुसूचित जाति और जनजाति में भी देखा जा सकता है।

हालांकि, इसके लिए राज्यों को पर्याप्त आंकड़ा पेश करना होगा।

ऐसा कई बार हुआ है कि कोर्ट ने सरकार के ठीक से आंकड़ा इकट्ठा नहीं करने की बात कहते हुए आरक्षण को ख़ारिज कर दिया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इससे दलित वोट पर भी असर पड़ेगा।

जादवपुर यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर और पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाजीत नस्कर का कहना है, “सब-क्लासीफिकेशन मतलब एससी-एसटी वोट बँट जाएं. ऐसे एक समुदाय के अंदर राजनीतिक बँटवारा पैदा होगा. बीजेपी ने भी कोर्ट में सब-क्लासिफिकेशन का समर्थन किया है. हो सकता है कि इनसे उनको सियासी फ़ायदा मिले. राज्य स्तर की राजनीतिक पार्टियां भी अपने फ़ायदे के मुताबिक़ सब-क्लासिफिकेशन लाएंगी.”

हालांकि, उन्होंने इस फ़ैसले से असहमति जताई और कहा, “अनुसूचित जाति का आरक्षण छुआछूत के आधार पर दिया जाता है. इसका सब-क्लासिफिकेशन नहीं कर सकते. इस फ़ैसले का आने वाले दिनों में ज़ोर-शोर से विरोध होगा.”

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