विदिशा

नए संसद भवन की डिजाइन 11वीं सदी के इस मंदिर जैसी ही: औरंगजेब ने 11 तोपों से विजय मंदिर को उड़ाया, उसके ऊपर मस्जिद का निर्माण कराया

विदिशा डेस्क :

10 दिसंबर 2020 को पीएम नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन के ठीक सामने नए भवन का पहला पत्थर रखा था। 29 महीने और 973 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद नई संसद बनकर तैयार है। 64500 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में चार मंजिला संसद भवन बहुत ही भव्य तरीके से तैयार किया गया है। रविवार यानी आज पीएम मोदी इसका इनॉगरेशन करने वाले हैं। आपने अब तक नए संसद भवन के बारे में बहुत-सी बातें पढ़ी होंगी, लेकिन नए संसद भवन की सबसे ज्यादा चर्चा विदिशा में हो रही है।

कारण विदिशा का परमार कालीन ऐतिहासिक विजय मंदिर है, जिसे सूर्य मंदिर भी कहा जाता है। विदिशा के इतिहासकारों का मानना है कि विजय मंदिर की प्रतिकृति दिल्ली की नई संसद के लिए ली गई है और उसी आधार पर प्रोजेक्ट तैयार किया गया है। इतिहासकारों का कहना है कि हम यही चाहते हैं कि कभी भी उद्घाटन के समय या बाद में विदिशा के इस स्थान का जिक्र जरूर होना चाहिए।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत बने नए संसद भवन नई- दिल्ली की डिजाइन को लेकर इतिहासकार गोविंद देवलिया ने बताया और जाना आखिर क्यों वे नए भवन की तुलना विजय मंदिर से कर रहे हैं…

इतिहासकार देवलिया कहते हैं विजय सूर्य मंदिर का निर्माण परमार काल के शासक राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने 11वीं सदी में कराया था। मंदिर का निर्माण परमार शैली के अनुरूप भव्य विशाल पत्थरों पर अंकित परमारकालीन राजाओं की गाथाओं से किया गया था। मंदिर डेढ़ सौ गज ऊंचा बताया जाता था।

कई बार मंदिर को बनाया गया निशाना

  • मंदिर की भव्यता और विशालता मुगल शासकों को शुरू से ही खटकती रही।
  • 1233-34 में पहली बार विजय सूर्य मंदिर में मोहम्मद गौरी के गुलाम अल्तमश ने आक्रमण किया। उसने मंदिर के साथ-साथ प्रतिमाओं को काफी नुकसान पहुंचाया।
  • मंदिर का सन् 1250 में फिर से पुनर्निमाण हुआ। हालांकि इसकी सुंदरता को फिर से नजर लग गई और सन् 1290 में अलाउद्दीन खिलजी ने फिर इसे तोड़ दिया।
  • इसके बाद सन् 1459-60 में महमूद खिलजी ने भी मंदिर को नुकसान पहुंचाया। सन् 1532 में बहादुरशाह ने भी विजय मंदिर को तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

औरंगजेब ने 11 तोपों से मंदिर को उड़वाया
इतिहासकार देवलिया बताते हैं 17वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब की नजर भी इस मंदिर पर पड़ी। कई हमलों के बाद भी मंदिर को सुरक्षित रखने के प्रयास होते रहे। यही कारण रहा कि मंदिर की भव्यता बनी रही। मंदिर की विशालता औरंगजेब से नहीं देखी गई और उसने 11 तोपों का उपयोग कर 1682 में मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया। हमले में ज्यादातर हिस्सा नष्ट हो गया। तोपों की मदद से मंदिर को उड़ा कर पूरी तरह लूट और तोड़कर ज्यादातर मूर्तियों को खंडित कर दिया गया। कुछ अवशेषों को दफन कर उसके ऊपर मस्जिद का निर्माण कराया गया। यहां पर नमाज पढ़ी जाने लगी।

बाढ़ की वजह से पूरा का पूरा मंदिर जमीन में दब गया

मुगल शासन के कमजोर होने के बाद यह क्षेत्र मराठा शासकों के अधीन हो गया था। उस समय उन्होंने नमाज पर पाबंदी लगा दी थी। तब बेतवा नदी के उस पार उदयगिरी रोड पर स्थित ईदगाह पर ईद की नवाज पड़ी जाती थी। देख-रेख के अभाव में यह क्षेत्र विरान होता गया। प्राकृतिक आपदा में पूरा का पूरा परिसर मिट्ठी के टीले में परिवर्तित हो गया। 20वीं सदी के प्रारंभ में बेतवा नदी में बाढ़ आने की वजह से विजय मंदिर वाला पूरा स्थान मैदान जैसा नजर आने लगा। इसके बाद यहां नवाज पढ़ने की अनुमति दे दी गई।

खुदाई में निकला मंदिर

1934 में इस इलाके में खुदाई हुई, तब यहां मंदिर के अवशेष मिले। इसके बाद यहां मंदिर के होने की बात सामने आई। इस पूरे इलाके की खुदाई की गई तो यहां पर भव्य मंदिर मिला। 1934 में ही हिंदू महासभा ने विजय मंदिर के उद्धार की मांग करते हुए आंदोलन शुरू किया। यह आजादी के बाद तक चलता रहा। इसका राजनीतिक फायदा भी हिंदू महासभा को मिला और उनके सांसद और विधायक दो बार चुने गए। यहां तक की तत्कालीन मुख्यमंत्री तखतमल जी जैन और रामसहाय जी सक्सेना को भी हिंदू महासभा के प्रत्याशियों से पराजित होना पड़ा था।

साल में एक दिन नागपंचमी को खुलते हैं मंदिर के पट

1965 में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्र ने इस विवाद का हल निकाला और मुस्लिम वर्ग के लिए भोपाल शासकीय भूमि पर ईदगाह का निर्माण कराया और विजय मंदिर का पूरा परिसर पुरातत्व विभाग के सुपुर्द कर दिया। जब से इस परिसर के ताले सिर्फ नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं। उसके बाद आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने पूरी जगह को अपने कब्जे में ले लिया। फिलहाल ऊपरी मंजिल पर एक परिसर के पट बंद हैं। शेष परिसर दर्शकों के लिए खुला है। विदिशावासी शासन से मांग कर रहे हैं कि ऊपरी परिसर के बंद तालों को खोला जाए, ताकि वहां पर रखी मूर्तियों के दर्शन किए जा सकें और इस पुनः मंदिर का निर्माण किया जाए, ताकि यह मंदिर अपने पुराने भव्य रूप में आ सके।

यह है समानता
इतिहासकार देवलिया कहते हैं विजय सूर्य मंदिर विदिशा की तर्ज पर ही नई लोकसभा का निर्माण हुआ है। प्राचीन विजय सूर्य मंदिर के गेट पर निर्मित दो विशाल स्तंभ नई लोकसभा के प्रवेश द्वार से मेल खाते हैं। विजय मंदिर के यदि एरियल व्यू को देखें तो संसद भवन की तरह ही दिखता है। दोनों की ही आकृति त्रिभुजाकार है। यदि हम इसकी ऊंचाई की बात करें तो नए भवन की तरह ही मंदिर की ऊंचाई भी डेढ़ सौ गज के करीब थी।

भाजपा नेता हितेश बाजपेयी ने भी ट्‌वीट किया

भारत की पुरानी संसद का डिजाइन मध्य प्रदेश के चौसठ योगिनी मंदिर के आधार किया गया था। इसी तरह भारत की नई संसद का डिजाइन भी मध्य प्रदेश के विदिशा के “विजय सूर्य मंदिर” के मॉडल पर तैयार किया गया है। भाजपा है तो भारत की विरासत है।

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