भोपाल

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा भोपाल में ‘उत्कर्ष-उन्मेष’ उत्सव में कहा- 140 करोड़ देशवासी मेरा परिवार: सभी भाषाएं मेरी अपनी

भोपाल डेस्क :

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भोपाल में कहा, ‘आज 140 करोड़ देशवासियों का मेरा परिवार है। सभी भाषाएं और बोलियां मेरी अपनी हैं। हमारी परंपरा में ‘यत्र विश्वम् भत्येकनीडम्’ (जहां सारा विश्व चिड़ियों का एक घोंसला बनके रहे ) की भावना प्राचीनकाल से है। राष्ट्रप्रेम और विश्व बंधुत्व के आदर्श का संगम हमारे देश में दिखाई देता रहता है।’

गुरुवार को प्रेसिडेंट भोपाल के रविंद्र भवन में ‘उत्कर्ष’ और ‘उन्मेष’ उत्सव में शामिल हुईं। शुभारंभ कर उन्होंने कहा, ‘राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करने के बाद अब तक मेरी सबसे अधिक यात्राएं मध्यप्रदेश में हुई हैं। यह मेरी MP में 5वीं यात्रा है।’

‘उत्कर्ष उत्सव’ 3 से 5 अगस्त तक चलेगा। ‘उन्मेष उत्सव’ 3 से 6 अगस्त तक चलेगा। देशभर के 500 कलाकार इस कार्यक्रम में नृत्य प्रस्तुति देंगे। संस्कृति मंत्रालय के संगीत नाटक एवं साहित्य अकादमी, संस्कृति विभाग मध्यप्रदेश के सहयोग से यह आयोजन हो रहा है। पिछली बार शिमला में यह आयोजन हुआ था। मध्यप्रदेश में पहली बार हो रहा है।

साहित्य जुड़ता भी है और जोड़ता भी है

प्रेसिडेंट ने कहा, ‘साहित्य और कला ने मानवता को बचाए रखा है। साहित्य जुड़ता भी है और लोगों को जोड़ता भी है। हमारा सामूहिक प्रयास अपनी संस्कृति, लोकाचार, रीति-रिवाज और प्राकृतिक परिवेश को सुरक्षित रखने का होना चाहिए। हमारे जनजाती समुदाय के भाई-बहन और युवा आधुनिक विकास में भागीदार बनें।’

प्रेसिडेंट ने कहा, ‘भारत में 700 कम्युनिटी के आदिवासी, लेकिन उनकी भाषाएं इससे ज्यादा हैं। भाषाओं को बचाकर रखना लेखकों का कर्तव्य है। यह हम सभी का भी दायित्व है।’

CM बोले- MP प्राचीनकाल से कला और संस्कृति की संगम स्थली

कार्यक्रम में राज्यपाल मंगूभाई पटेल ने कहा, ‘दिल, दिमाग और आत्मशक्ति के समन्वय से रचना का सृजन होता है। इसके लिए किसी साधन संसाधन की आवश्यकता नहीं होती है। इस आयोजन के लिए सरकार को बधाई।’

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, ‘मन, बुद्धि और आत्मा का सुख अगर कोई देता है तो साहित्य, संगीत और कला देती है। मध्यप्रदेश प्राचीनकाल से कला और संस्कृति की संगम स्थली रही है। यह साहित्यकारों की कर्मभूमि और कलाकारों की प्रिय भूमि है। खजुराहो, भीम बैठका आदि इसके प्रमाण हैं।’

CM ने कहा, ‘मेरा-तेरा की सोच छोटे मन वालों की होती है। हमारी धरती वो धरती है, जहां बच्चा-बच्चा वसुधैव कुटुंबकम का उद्घोष करता है। दुनिया के विकसित देश में जब सभ्यता के सूर्य का उदय भी नहीं हुआ था, तब हमारे यहां वेद रच दिए गए थे।’

कांग्रेस बोली- आपका स्वागत, लेकिन मणिपुर पर भी प्रतिक्रिया दें 

राष्ट्रपति के भोपाल दौरे पर कांग्रेस के विभागों और प्रकोष्ठ की प्रभारी शोभा ओझा ने ट्वीट कर कहा, ‘आपका मध्यप्रदेश में स्वागत है। लेकिन, बेहतर होता कि आप पहले मणिपुर के हालातों पर अपनी प्रतिक्रिया देतीं, चिंता जाहिर करतीं। प्रधानमंत्री पर यह दबाव डालतीं कि वे तत्काल संसद को संबोधित करें।

आप आदिवासी समाज की आदर्श हैं। रोल मॉडल हैं। आपको ‘उत्कर्ष और उन्मेष’ जैसे उत्सवों में शामिल होने से ऐसे समय बचना चाहिए, जब देश में आदिवासियों के ‘अपकर्ष’ और ‘दमन’ का दुखद और हिंसक दौर अपना विकराल रूप ले चुका है।’

‘उत्कर्ष’ और ‘उन्मेष’ उत्सव में ये इवेंट्स होंगे
3 से 6 अगस्त तक चलने वाले उत्सव में अंतरराष्ट्रीय साहित्य उत्सव मनाया जा रहा है। इसमें बहुभाषी कविता पाठ, लेखन पाठ, आदिवासी कवि सम्मेलन, साहित्य के विषयों पर परिचर्चा, आजादी का अमृत महोत्सव पर कविता पाठ और साहित्य के उत्थान संबंधित विभिन्न विषयों पर प्रबुद्धजन विर्मश करेंगे।

पुस्तक मेला में साहित्य अकादमी एवं अन्य प्रकाशकों की पुस्तकें बिक्री के लिए सुबह 10 से शाम 6 बजे तक उपलब्ध रहेंगी। उत्सव के दौरान साहित्य अकादमी प्रख्यात लेखकों पर बनी डॉक्युमेंट्री को भी दिखाएगा। कार्यक्रम में 575 से ज्यादा लेखक भाग लेंगे।

शाम 5 बजे से होगी नृत्यों की प्रस्तुति
उत्कर्ष उत्सव के तीन दिन शाम 5 बजे से रविंद्र भवन के सभागार में भारत के लोक नृत्य और जनजागीय नृत्यों की प्रस्तुति दी जाएगी।

  • पहले दिन: लेह-लद्दाख का जबरो, नागालैंड का सुमी वार नृत्य, गोवा का समय नृत्य, सिक्किम का सिंधी छम, मध्यप्रदेश का राई नृत्य, मेघालय का वांग्ला नृत्य, मध्यप्रदेश का बरेदी नृत्य, महाराष्ट्र का लावणी नृत्य, असम का बीहू नृत्य, ओडिशा का सिंगारी नृत्य, झारखंड का पाइका नृत्य और आंध्रप्रदेश के टप्पेटा गुल्लू नृत्य की प्रस्तुति।
  • दूसरे दिन: अरुणाचल प्रदेश का आजी लामू नृत्य, हिमाचल प्रदेश का सिरमौरी नाटी, छत्तीसगढ़ का पंथी नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया नृत्य, असम का तिवा, हरियाणा का फाग, उत्तर प्रदेश का मयूर रास, झारखंड का झूमुर, मणिपुर का ढोल चोलम एवं थांग टा नृत्य, तमिलनाडु का करगट्‌टम, पश्चिम बंगाल का नटुवा नृत्य, कर्नाटक का पूजा कुनिथा और गुजरात का मणीयारो रास नृत्य की प्रस्तुति।
  • तीसरे दिन: कश्मीर का रौफ नृत्य, सिक्किम का सोराठी, बिहार का झिझिया, त्रिपुरा का होजागिरी, छत्तीसगढ़ का गौड़ मारिया, केरला का पुलकली, उत्तराखंड का छपेली, ओडिशा का गोटीपुआ, पंजाब का भांगड़ा, बंगाल का पुरुलिया छऊ, तेलंगाना का ओग्गू डोलू और मध्यप्रदेश का गुदुम बाजा नृत्य की प्रस्तुति दी जाएगी।

 

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