इंदौर

ऑनलाइन कोचिंग वालों ने दिया 100 करोड़ का ऑफर: सुपर-30 के आनंद कुमार बोले, फिर मेरे अंदर बैठा टीचर जागा और कहा कि अपने आप को मत बेचो

इंदौर डेस्क :

‘लॉक डाउन के बाद ऑनलाइन कोचिंग वाले मेरे पास आए। 2 करोड़, 4 करोड़ नहीं। 60 करोड़, 80 करोड़, 100 करोड़ रुपए मुझे देने को तैयार थे। कहा कि कुछ नहीं करना है। आप एक टी-शर्ट मेरी पहन लीजिए। सप्ताह में एक दिन आकर कुछ-कुछ बोल दीजिए, पढ़ा दीजिए।

तीन साल का कॉन्ट्रेक्ट करते है, मैं 100 करोड़ रुपए आपको देता हूं। मेरे अंदर बहुत सारी विचारधाराएं तैरने लगी कि 100 करोड़ रुपए तो कभी जीवन में नहीं देख सकते, ले लेते हैं। इस रुपए का सद्पयोग कर लेते हैं। गरीब बच्चों के लिए स्कूल खोलने का सपना है, वो पूरा कर लेते हैं।

बहुत सारी चीजे मेरे दिमाग में आई। फिर मेरे अंदर बैठा टीचर जागा और कहा कि अपने आप को मत बेचो। मन को मत बहलाओ कि पैसे से क्या-क्या अच्छा काम करोगे। तुम अगर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर आते हो तो उस प्लेटफॉर्म पर न जाने कितने बच्चे तुम्हारे कारण कितने पैसे दे देंगे और उनका भविष्य बर्बाद हो जाएगा।

उसकी जिम्मेदारी और जवाबदेही कभी ले पाओगे। ये अंतर आत्मा से आवाज आई और उसने ही मुझे ये काम करने से रोक दिया।’

ये कहना है सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार का। रविवार को वे इंदौर में थे। गांधी हॉल में दीपक जैन ‘टीनू’ की संस्था सार्थक द्वारा नए भारत के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका विषय पर एक प्रोग्राम का आयोजन किया गया, जिसमें आनंद कुमार शामिल हुए।

प्रोग्राम में बड़ी संख्या में शहर के शिक्षकों सहित जनप्रतिनिधि मौजूद थे। आनंद कुमार ने कहा कि कई बार मुझे ऑनलाईन क्लासेस के ऑफर आए लेकिन मैंने छोड़े। राजनीति में तो अभी भी ऑफर आते रहते हैं लेकिन मैं हाथ जोड़ लेता हूं, क्योंकि एक शिक्षक बनकर ही बच्चों और शिक्षकों के बीच में जाता रहा। उनका मोटिवेशन होता रहे, हमारे लिए बड़ी बात है।

जो शिक्षा नीति चलाई जा रही है, जिसका मूल्य उद्देश्य पैसा कमाना है। ये अगर रहा तो हमारा देश कभी आगे नहीं बढ़ेगा। अच्छे देश के निर्माण के लिए शिक्षा को पैसे से मुक्त होना चाहिए। उसका मकसद लोगों को शिक्षित करना है। कुछ हुनर सीखाना होना चाहिए, न की पैसे कमाना। उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सहित इंदौर की स्वच्छता को लेकर भी अपनी बात रखी साथ ही अपने अभी तक के सफर के बारे में भी बताया। जानिए सब कुछ उन्हीं की जुबानी…।

कक्षा 8वीं में घटी उस घटना से लगा कि मुझे शिक्षक बनना है

मैं कक्षा 8वीं में पढ़ता था। ऐसे मोहल्ले में रहता था जहां बहुत लोअर मिडिल क्लास लोग रहते हैं। जहां में रहता था गोरिया मठ मोहल्ला था। वहां बीचों बीच बड़ा सा नाला था। नाले के उस तरफ अमीर लोग रहते थे। इस तरफ गरीब लोग रहते थे। मैं यहीं रहता था। नाले के उस पर एक मकान था, जिसमें सिख परिवार के लोग रहते थे।

मैं लालटेन से पढ़ता था, वो परिवार देखते रहता था। एक दिन वहां जो आंटीजी थी वो मुझे बुलाई। मैं उनके घर गया तो उन्होंने कहा कि हमारे दो बच्चे है, एक बच्चा चौथी और दूसरी बेटी छटी क्लास में पढ़ती है। तुम किस क्लास में पढ़ते हो। मैंने कहा कि 8वीं कक्षा में पढ़ता हूं।

उन्होंने कहा कि हमारे बच्चे पढ़ने में कैसे है, तुम पता कर सकते हो, मैंने कहा हां, बातचीत से पता चल सकता है लेकिन हम तो शिक्षक है नहीं। उन्होंने कहा कि एक समस्या आ गई है, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने वाले टीचर की नौकरी लग गई है, वो यहां से चले गए हैं।

अब इन बच्चों को पढ़ाने वाला कोई नहीं है। शिक्षकों को ढूंढा लेकिन कोई मिल नहीं रहा है। तुम एक काम करो जब तक कोई अच्छा ट्यूटर नहीं मिल जाता तुम बच्चों को रोज शाम को एक घंटा पढ़ा दो। मैं चौंक गया कि खुद 8वीं कक्षा में पढ़ता हूं और इन बच्चों को पढ़ाना है।

मैंने कहा कल बताऊंगा। घर जाकर पिताजी को पूरी बात बताई तो उन्होंने कहा कि बहुत कठिन है। बच्चे तुम्हारी बात नहीं मानेंगे, तुम्हारा आदर नहीं करेंगे। कैसे दो साल बड़े स्कूल के बच्चे को दूसरा बच्चा टीचर स्वीकार करेगा।

मैंने उसे चैलेंज के तौर पर लिया और पिताजी को कहा कि प्रयास करके देखते हैं। मैं हिन्दी मीडियम में पढ़ता था, बच्चे इंग्लिश मीडियम में पढ़ते थे। फिर किताब मांगकर तीन-चार दिन तैयारी की। फिर बच्चों को पढ़ाना शुरू किया लेकिन उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं थे।

तीन दिन ऐसे ही निकल गए लेकिन चौथे-पांचवें दिन बच्चे ने सवाल पूछे तो मुझे खुशी हुई कि बच्चे समझने की कोशिश कर रहे हैं। दो-तीन दिन बाद जब में पढ़ाकर जाने लगा तो बच्चे ने कहा प्रणाम सर…। ये जो शब्द है वो आज भी मेरे कानो में गूंजता है।

उससे बड़ा सम्मान आज तक मुझे जिंदगी में अनुभव नहीं हुआ। उस दिन मुझे लगा कि जीवन का रास्ता मिल गया। मुझे शिक्षक ही बनना चाहिए। उन्हें डेढ़ महीने की जगह 6 महीने तक पढ़ाया फिर वो लुधियाना शिफ्ट हो गए। उसके बाद से पढ़ाने का सिलसिला शुरू हो गया।

पिता की जगह अनुकंपा में मिल रही सरकारी नौकरी की जगह पापड़ बेचना पसंद किया

पैसे के अभाव में कैंब्रिज नहीं जा पाया। पिताजी की भी मृत्यु हो गई। पापड़ बेचने पड़े। मां पापड़ बनाती थी, मैं बेचता था। लोग कहते थे कि पिताजी की जगह अनुकंपा नियुक्ति मिल रही है, नौकरी कर ले, क्यों पापड़ बेचता है लेकिन मैं जानता था कि सरकारी नौकरी में मैं बंध गया तो निकलना मुश्किल हो जाएगा।

मेरे अंदर जो शिक्षक और प्रोफेसर बनने का सपना टूट जाएगा। इसलिए शॉर्ट टर्म जो काम है, पापड़ बेच लो। पापड़ बेचते-बेचते एक कोचिंग सेंटर वाले ने मुझे बुलाया और पढ़ाने के लिए कहा। पहली बार प्रोफेशनल कोचिंग में पढ़ाने का मौका मिला।

कुछ दिनों के बाद मुझे एहसास हुआ कि यहां पर बच्चों को पढ़ाने से इस देश में कुछ भी बदलाव आने वाला नहीं है। मेरा जो सपना था पढ़ाने का कैंब्रिज में, ऑक्सफोर्ड में या आईआईटी में वो टूट गया। तो अब गरीब बच्चों के लिए काम करना चाहिए।

ऐसे ऐसे बच्चों से मुलाकात हुई, जिनके पास सपनों के अलावा कुछ नहीं था और पढ़ रहे थे। बच्चों ने मेरे दिल को झकझोर दिया और फिर मैंने सुपर 30 की शुरुआत की। कई बच्चे सफल हुए। अभिषेक जैसा बच्चा जो खाने के लिए मोहताज था, वो आईआईटी पास कर अमेरिका में बहुत बड़ी नौकरी कर रहा है। चंदन झा जैसा बच्चा, जो मामूली परिवार से था मुझ से पढ़ा और आज बोकारो झारखंड में एसपी है। नंदन वशिष्ठ जैसा लड़का आज आईएफएस है।

एआई का विरोध नहीं उसे चुनौती और अवसर के रूप में ले

 एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का जो दौर चला है, उसका हमें विरोध नहीं करना चाहिए। उसे एक चुनौती और एक अवसर के रूप में लेकर उससे कुछ सीखकर बच्चों को कुछ सीखाना चाहिए। आज हम बच्चों को पढ़ाते हैं तो वो तुरंत सर्च कर लेता है कि मास्टरजी कहीं से चुरा कर पढ़ा रहे हैं या कॉपी कर रहे हैं या नया पढ़ा रहे हैं।

– चैट जीपीटी या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट से भी कुछ नया हम कैसे कर सके। उसका उपयोग करके बच्चों को कैसे कुछ सीखा सके। इसके लिए हम लोगों को प्रयासरत रहना चाहिए। इस चैलेंज को हमें स्वीकार करना चाहिए।

 कितने लोग आज रोजगार की तलाश में इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर, बिजनेस मैनेजमेंट की डिग्री लेकर, होटल मैनेजमेंट की डिग्री, तकनीकी शिक्षा की डिग्री, डिप्लोमा लेकर भटक रहे है और उन्हें अच्छी नौकरी नहीं मिल रही है। जो शिक्षा पद्धति है उसमें कहीं न कहीं थोड़ी कमी जरूर है। अगर उन कमियों को हम मिलजुल कर पूरा करे तो शायद भारत का नया निर्माण हो सकता है। नया भारत बन सकता है।

– इंदौर की चर्चा पटना में होती है। पटना में लोग धीरे-धीरे सफाई की ओर बढ़ रहे हैं। जब भी नगर निगम की बैठक होती है, उसमें उदाहरण के तौर पर इंदौर की ही चर्चा होती है। मैं पटना नगर निगम का ब्रांड एंबेसेडर हूं। यहां से ही लोग सीखने का प्रयास करते हैं।

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