35 साल बाद भी वहीं हाल: कुल बजट 12 करोड़ में से 9 करोड़ खर्चे, एक मंजिल तक घटा दी, फिर भी आधा ही काम हुआ

इंदौर डेस्क :
मप्र की व्यावसायिक राजधानी में पांच साल से जिला अस्पताल ही नहीं है। प्रस्ताव 2007 में मंजूर हुआ था और पांच साल पहले भूमिपूजन के बाद पुराना भवन तोड़ दिया गया। कुल बजट 12 करोड़ है, जिसमें से 9 करोड़ खर्च हो चुके हैं, लेकिन अब तक आधा ही काम हो पाया है। जिला अस्पताल के नाम पर सिर्फ ओपीडी शुरू हुई है और पोस्टमार्टम हो रहा है।
अस्पताल में 30 से अधिक डॉक्टर हैं, लेकिन पांच सालों से एक भी ऑपरेशन नहीं हुआ। पश्चिम क्षेत्र की 15 लाख की आबादी व धार राेड केे 50 गांवाें के लोग जिला अस्पताल पर निर्भर हैं। उन्हें इससे करीब 10 किमी दूर एमवाय जाना पड़ रहा है, जहां की ओपीडी जिला अस्पताल बंद होने से डेढ़ गुना हो गई है।
सात कलेक्टर व सात सीएमएचओ बदले, 300 बेड का था प्रस्ताव 100 बेड का भी नहीं बना
यहां ओपीडी आधी हुई, एमवाय की डेढ़ गुना बढ़ी
यहां की ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या घटकर आधी हो गई है। वर्ष 2010 में इनकी संख्या एक लाख 76 हजार थी। वहीं पिछले एक साल में यहां 94 हजार मरीज ही पहुंचे। इसका सीधा असर एमवायएच पर पड़ रहा हैं। यहां पहले 3.5 लाख मरीज एक साल में पहुंचते थे, जिनकी संख्या अब करीब डेढ़ गुना बढ़कर 5.84 लाख से 6 लाख तक पहुंच रही है।
35 साल बाद भी वहीं
35 साल पुराना 100 बेड का अस्पताल तोड़कर फिर 100 बेड का अस्पताल बना रहे जिम्मेदार, तब जनसंख्या 10 लाख थी, आज 40 लाख।
उज्जैन, रतलाम से भी बुरे हाल, वहां 700 बेड तक के अस्पताल
इंदौर की स्थिति धार व झाबुआ से बुरी हो चुकी हैं। रतलाम में 17.44 लाख की आबादी पर 700 बेड का अस्पताल है।
प्रोजेक्ट हाथ में लेकर जल्द पूरा करेंगे
“कई सुविधाएं शुरू करवा दी हैं। जल्द ही इसे पूरी तरह टेकअप कर रहे हैं। ताकि पूरी बिल्डिंग बन सके।”
-डॉ. इलैया राजा टी, कलेक्टर
“300 बेड के लिए मंजूरी मिली पर बजट नहीं मिला है। 100 बेड के बाद काम जारी रहेगा।”
-मनोज शिवाले, ईई, हाउसिंग बोर्ड
“हाउसिंग बोर्ड के अधिकारियों से बात हुई है। जल्द ओपीडी का काम पूरा हो जाएगा।”
– डॉ. जीएल सोढी, सिविल सर्जन
“एजेंसी ने जुलाई में हैंडओवर करने का बोला था। आगे की जानकारी नहीं है।”
– डॉ. प्रदीप गोयल, पूर्व सिविल सर्जन