भोपाल

प्रदेश में खतरे में बचपन: राजधानी भोपाल से हर माह 60 बच्चे अगवा: इनमें 70 प्रतिशत बच्चियां

थानों में मानव तस्करी यूनिट और ऑपरेशन मुस्कान भी बेअसर

बच्चों के अपहरण के मामले में राजधानी भोपाल में चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। इस वर्ष 30 जून तक यानी छह महीनों में 365 बच्चों का अपहरण हो चुका है। जिनमें 70 प्रतिशत बालिकाएं शामिल हैं। यह स्थिति तब है जब बच्चों की सुरक्षा को लेकर थानों में मानव तस्करी यूनिट काम कर रही है। पुलिस समय-समय पर ‘ऑपरेशन मुस्कान’ भी चलाती है। वहीं, पुलिस का दावा है कि अपहरण के मामलों में बच्चों की रिकवरी 90 प्रतिशत से अधिक है। इस साल 365 में से 328 बच्चों को खोजा गया है जिसमें 229 (69.8%) बालिकाएं हैं।

38% मामले मानव तस्करी के
मध्यप्रदेश से 38 फीसदी से ज्यादा मामले ऐसे हैं जिसमें बालिकाओं को मानव तस्करी करने वाली गैंग ने बेचा है। बच्चियों को महाराष्ट्र और राजस्थान में बेचा जाता है। कुछ बालिकाओं को झांसी (उत्तर प्रदेश) में भी बेचने के सबूत मिले हैं।पिछले साल प्रदेश में 7 हजार 686 नाबालिगों के अपहरण के मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें भोपाल से 580 बच्चों को अगवा किया गया था। वर्ष 2021 में करीब 465 बच्चे लापता हुए थे।

डांट, तंगी और सोशल मीडिया भी कारण

प्रेम-प्रसंग में छोड़ देते हैं घर 10 से 15 साल तक के बच्चे घर के कलह, डांट या बहकावे में आकर लापता होते हैं। जबकि 15 से 17 साल तक बच्चे आर्थिक तंगी, प्रेम-प्रसंग, शादी का झांसा या सोशल मीडिया पर दोस्ती हो जाने के कारण घर छोड़ जाते हैं। कई बच्चियों को अगवा कर शादी के लिए बेचा भी जाता है।

छग, ओडिशा से आगे मध्यप्रदेश
पिछले सालों में छत्तीसगढ़, ओडिशा, प. बंगाल, बिहार और पंजाब के बाद मध्यप्रदेश से सबसे अधिक बच्चे लापता हुए हैं। इसमें 80% तक बच्चियां लापता हुई हैं। बच्चियों का लापता होना मानव तस्करी की तरफ इशारा करता है। लापता बच्चियां अन्य राज्यों जैसे महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से बरामद हुई हैं।

“नाबालिग बच्चों के मामलों में जीरो टॉलरेंस पर काम कर रहे हैं। मानव तस्करी यूनिट अपना कर रहीं हैं। शिक्षण संस्थानों में अवेयरनेस प्रोग्राम चला रहे हैं। 10 से 15 साल तक के बच्चों के गायब होने में पारिवारिक कारण ही सामने आते हैं। रिकवरी 95 प्रतिशत से अधिक है।”

– विनीत कपूर, डीसीपी मुख्यालय (भोपाल)

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