मध्यप्रदेश

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का बड़ा बयान: बोले-ज्यादा दिनों तक भारत अलग-अलग नहीं दिखेगा

भोपाल डेस्क :

बांग्लादेश में उपजे सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने बड़ा बयान दिया है। कहा- वर्तमान का हमारा भारत या अखंड भारत का दृश्य अपने आप अपनी आंखों के सामने आएगा। आज नहीं तो कल….यह बात मान कर चलिए।

मेरा दायित्व ऐसा है कि मुझे बोलने में कठिनाई है, अन्यथा ज्यादा दिन तक भारत अलग-अलग नहीं दिखेगा। भारत एक ही दिखेगा। कोई इससे अलग नहीं हो सकता, क्योंकि इसकी संस्कृति एक है। संस्कृत से संस्कृति बनी है, और संस्कृति का अर्थ ही यह है कि हमारी भाषा, हमारा आचार-विचार, व्यवहार हैं।

मुख्यमंत्री शुक्रवार को भोपाल के सप्रे संग्रहालय में आयोजित भारतीय हिन्दी भाषा महोत्सव में शामिल हुए। इस मौके पर उन्होंने माधवराव सप्रे संग्रहालय की संचालित गतिविधियों की सराहना की, और संग्रहालय को राज्य सरकार से दिए जा रहे 10 लाख रुपए के अनुदान को बढ़ाकर 20 लाख रुपए करने की घोषणा की।

संस्कृत की बेटी है हिन्दी

सीएम ने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए कहा- भारतीय भाषा में हिंदी भाषा से संबंध जोड़ने की बात आई। ऐसा कहते हैं जिसका कुल अच्छा, उसका पुत्र अच्छा। कुल से पुत्र-पुत्री की पहचान होती है। हिंदी की बात करेंगे तो हिंदी का कुल किससे जुड़ेगा? संस्कृत से जुड़ेगा। हिंदी संस्कृत की पुत्री है।

भाषा के नाते संस्कृत से हमारी अपनी संस्कृति का अहसास करना पड़ेगा। जैसे भारतीय संस्कृति कहेंगे तो पूरी भारतीय संस्कृति में इसकी व्यापकता है। आज नहीं तो कल यह बात मान कर चलिए।

एक तरह से अखंड भारत का दृश्य अपने आप आंखों के सामने आएगा। मेरा दायित्व ऐसा है कि मुझे बोलने में कठिनाई है। भारत एक ही दिखेगा, कोई इससे अलग नहीं हो सकता। क्योंकि इसकी संस्कृति एक है और मूल में सबकी संस्कृति संस्कृत से बनी है, और संस्कृति का अर्थ ही हमारी भाषा, आचार-विचार, व्यवहार ​​​​​​से है।

बोलियों का अलग महत्व

सीएम ने कहा- जैसे हिमालय एक है लेकिन वहां से गंगोत्री भी निकल रही है, यमुनोत्री भी निकल रही है भागीरथी, अलकनंदा भी निकल रही है। उसी प्रकार से हिमालय की भूमिका वाली हमारी संस्कृति है। भाषा की बोली से उत्पत्ति हो उसके पहले बोली का परिष्कार भी जरूरी है, और बोलियां की मिठास और उसका आनंद भी अलग है।

बोलियों की विशेषता उनके इतिहास से जुड़ी हुई हैं। जब हम बोली के अंदर जाएंगे तो बुंदेली में शौर्य-पराक्रम से भर जाएंगे और मालवा में जाएंगे तो डिप्लोमैटिक हो जाएंगे। यह विनोद का विषय है और अंदर जाएंगे तो गहराई समझ आएगी।

RSS विचारकों की किताबों पर कहा- जिसे पढ़ना है वो पढ़े

कॉलेजों में आरएसएस विचारकों की किताबें रखवाने पर मचे विवाद पर सीएम ने कहा- दो, चार, पांच दिन से रोज नाटक चल रहा है कि हम अपने पाठ्यक्रम में इन लेखकों को ला रहे हैं उस लेखक को ला रहे हैं। हमने तो उदारतापूर्वक पाठ्यक्रम का तो कोर्स बदला ही नहीं।

वह कोर्स तो बनना बाकी है उसकी कमेटी है अध्ययन मंडल है वह फाइनल करेगा। लेकिन, यह जरूर कहा कि 55 जिलों में पीएम एक्सीलेंस कॉलेज बने हैं वहां हमने लाइब्रेरी बनाई है।

हमने कहा है लाइब्रेरी में कोई भी विचारवान लेखक होगा सबकी पुस्तकें वहां रखी जाएं। अब पुस्तक नहीं रखें तो क्या करें? पुस्तक तो रखनी पड़ेंगी। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के होंगे या अन्य कोई होंगे हम तो उनकी पुस्तक रखेंगे।

आपकी इच्छा हो तो पढ़ो, ना हो तो मत पढ़ो। ज्ञान तो ऐसा माना जाता है कि ज्ञान तो दसों दिशाओं से आना चाहिए भारत की विशेषता ही यह है भारत के आगे बढ़ने का कारण ही यही है।

प्रदेश शिक्षा नीति लागू करने में देश में अग्रणी: शिक्षा मंत्री

कार्यक्रम की अध्यक्षता स्कूल शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने की। कहा- मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में प्रदेश में संस्कृत और क्षेत्रीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। प्रदेश राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने में देश में अग्रणी रहा है।

सप्रे संग्रहालय संदर्भिका और भाषा सत्याग्रह पुस्तिकाओं का विमोचन

मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने सप्रे संग्रहालय संदर्भिका और भाषा सत्याग्रह पुस्तिका का विमोचन किया। उन्होंने सप्रे संग्रहालय में विशेष सहयोग के लिए आशीष अग्रवाल का सम्मान किया। इसके साथ ही पंडित रामेश्वर दास गार्गव स्मृति ई-लाइब्रेरी में योगदान के लिए डॉ. नरेंद्र दत्त गार्गव और कृष्ण गोपाल व्यास विज्ञान संचार प्रभाग में सहयोग के लिए डॉ. जयप्रकाश शुक्ला का सम्मान किया गया। इस अवसर पर डॉ. वीणा सिन्हा और डॉ. हेमंत सिंह को भी सम्मानित किया गया।

सर्वसमावेशी भाव से भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन

संयोजक विजयदत्त श्रीधर ने बताया- सप्रे संग्रहालय द्वारा ‘अपनी भाषा पर अभिमान-सभी भाषाओं का सम्मान’ के विचार सूत्र के साथ भाषायी सौहार्द-समन्वय और सर्वसमावेशी भाव से भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। हिन्दी और भारतीय भाषाओं के साथ दैनिक कार्य व्यवहार में जनता की भाषा को अधिक से अधिक शामिल करने के प्रयास इस आयोजन के प्रमुख आयाम हैं।

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