रायपुर

संगीत, नृत्य की कोई भाषा, जाति, धर्म नहीं होता यह सार्वभौमिक है

रायपुर डेस्क :

छत्तीसगढ़ राज्योत्सव के अवसर पर आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव कल की ढलती हुई शाम के साथ ही समाप्त हो चुका है। इस वर्ष जिन 10 देशों के लोक नर्तक दल इस राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में अपने नृत्य की छटा बिखेरने आए थे उनमें मोजांबिक, टोगो, इजिप्ट, मंगोलिया, इंडोनेशिया, रूस, न्यूजीलैंड, सर्बिया और मालदीव जैसे देश प्रमुख हैं।

दुनिया के इन 10 देशों से आए हुए लोक नर्तकों ने छत्तीसगढ़ की जनता को अपने लोक नृत्यों से अभिभूत कर दिया। लेकिन यह एकतरफा ही नहीं हुआ वे भी छत्तीसगढ़वासियों से कम अभिभूत होकर नहीं गए हैं और इसमें भाषा किसी तरह की दीवार या बाधा साबित नहीं हुई। क्योंकि नृत्य, संगीत की कोई भाषा नहीं होती इसे केवल महसूस किया जाता है।

भारत वर्ष एक विशाल और विविधताओं से भरा देश है। यहां हर प्रदेश की अपनी एक अलग लोक संस्कृति है। इन्हीं लोक संस्कृति से एक महान भारतीय संस्कृति बनती है। इस बार राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव और राज्योत्सव में देश के 28 राज्यों के लोक नर्तकों ने अपनी लोक नृत्यों के प्रदर्शन से साइंस कॉलेज मैदान में जो खुशबू बिखेरी है और जो जादू जगाया है उस खुशबू और जादू को हम छत्तीसगढ़वासी बहुत दिनों तक अपने दिलों में महसूस करते रहेंगे।

राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के समापन की बेला में हमारे छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने जो कहा है वह भी अपने आप में कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है। आदिम संस्कृति सभी को जोड़ने का कार्य करती है। इसे सहेजकर और इसकी खूबसूरती को बड़े फलक पर दिखाने के उद्देश्य से हमने राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया है। मुझे इस बात कि खुशी है कि इस आयोजन में बहुत बड़ी संख्या में लोगों ने भागीदारी की है। आगे मुख्यमंत्री ने यह भी कहा है कि इस आयोजन के माध्यम से लोगों ने जाना है कि हमारी आदिवासी संस्कृति कितनी समृद्ध हैं। इनके नृत्यों के माध्यम से प्रकृति और लोकजीवन को सहेजने के सुंदर मूल्य जो सीखने को मिलते हैं वो सीख हमारे लिए अमूल्य है।
इस अवसर पर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने जो कहा है वह भी बेहद महत्वपूर्ण है। आदिवासी नृत्य महोत्सव के जरिए यह संदेश देने का भी सफल प्रयास किया गया है कि जब तक सभी वर्गों का विकास नहीं होता तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता।

आज ये सभी नर्तक दल अपने-अपने देशों की ओर उड़ चले हैं। भारत के विभिन्न प्रांतों से आए हुए आदिवासी नर्तक दल भी अपने-अपने प्रदेशों की ओर लौट रहे हैं। ये सारे आदिवासी नर्तक दल अपने नृत्य की सोंधी खुशबू हम सब छत्तीसगढ़वासियों  के दिलों में छोड़ गए हैं जो आने वाले कई दिनों तक हमारे भीतर महकते रहेंगे।

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