देश में सबसे पहले जातिगत आंकड़े जारी: राज्य में ईबीसी की कुल 112 जातियों की आबादी 36.01 प्रतिशत, जिसमें से 12 जातियां केवल 24.09 प्रतिशत

न्यूज़ डेस्क :
पूरे देश में अत्यंत पिछड़ी और पिछड़ी जातियों को लेकर राजनीति परवान पर हैं। बिहार में भी इन दोनों जातियों की राजनीति करने वालों में होड़ मची हुई है। इस बीच बिहार सरकार ने राज्य की सभी जातियों की आबादी सार्वजनिक की है जिसके मुताबिक अत्यन्त पिछड़ा वर्ग (कुल जाति-112) की राज्य में आबादी 36.01 फीसदी है।
उनमें मात्र 12 जातियों की ही आबादी 24.09 फीसदी है। मुस्लिम धर्म से आने वाले जुलाहा/अंसारी) जाति इस वर्ग में टॉप पर हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में वोट की राजनीति के हिसाब से अत्यंत पिछड़ा वर्ग में इन 12 जातियों का ही दबदबा दिख सकता है। वहीं, पिछड़ा वर्ग (कुल जाति-29) की राज्य में कुल आबादी 27.12 फीसदी है जिसमें मात्र 5 जातियों की ही आबादी 25.52 फीसदी है।
- जातीय जनगणना हुई तो पिछड़ी जातियों को मिलने वाले 27% आरक्षण का क्या होगा?
करीब 92 साल पुराना आंकड़ा कहता है कि देश में 52% ओबीसी हैं। अगर देश की जातीय गणना के आंकड़े भी इसी तरह आते हैं तो ओबीसी की केंद्रीय सूची में संशोधन करना पड़ेगा। जातीय गणना की खिलाफत करने वालों का तर्क है कि इससे ओबीसी आरक्षण बढ़ाने की मांग जोर पकड़ेगी, जिससे जातिगत दूरियां बढ़ सकती हैं।
- राज्यों में जातीय जनगणना की क्या स्थिति है?
ओडिशा सरकार ने इसी साल एक मई को 208 पिछड़ी जातियों के लोगों की सामाजिक और शैक्षिक स्थिति का पहला सर्वेक्षण शुरू किया है। इसकी रिपोर्ट अभी जारी नहीं की गई है। वहीं, कर्नाटक में 2013 में बनी कांग्रेस सरकार ने भी जातिवार सामाजिक-आर्थिक सर्वे कराया था। इसकी रिपोर्ट को 2018 में आंतिम रूप दिया गया था। मगर, जारी नहीं हुई। महाराष्ट्र और तमिलनाडु की विधानसभाएं जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित कराकर केंद्र को भेज चुकी हैं। हालांकि, अभी देश की सामान्य जनगणना भी अटकी हुई है।