गोंडवाना समाज के अध्यक्ष की अनोखी बारात: कांकेर के शंभूनाथ संस्कृति सहेजने के लिए ऐसे पहुंचे ससुराल, पहना पूरा पारंपरिक परिधान
रायपुर डेस्क :
छत्तीसगढ़ी परंपरा को सहेजने और पर्यावरण व फिजूलखर्ची बचाओ का संदेश देते हुए कांकेर जिले के दूल्हे शंभूनाथ ने अपनी बारात बैलगाड़ी में निकाली। सजी-धजी बैलगाड़ी पर वे अपनी दुल्हनिया को लाने के लिए निकले। आज के जमाने में जब हर किसी की ख्वाहिश लग्जरी गाड़ियों यहां तक कि हेलीकॉप्टर से दुल्हन लाने की होती है, ऐसे में बैलगाड़ी में बारात ले जाने के फैसले की सराहना लोग भी कर रहे हैं। बता दें कि दूल्हे शंभू नाथ सलाम बड़गांव सर्कल के क्षेत्रीय गोंडवाना समाज के अध्यक्ष हैं।
बता दें कि 8 जून गुरुवार को बड़गांव सर्कल के क्षेत्रीय गोंडवाना समाज के अध्यक्ष शंभू नाथ की शादी थी। दोपहर लगभग एक बजे पिपली से करकापाल के लिए उनकी बारात 15 बैलगाड़ियों से निकली। सजी-धजी बैलगाड़ियों में सुंदर-सजीले दूल्हे और बारातियों के देख लोग हैरान रह गए।
जिन-जिन रास्तों से बारात गुजरी, इसे देखने के लिए लोग अपने घरों से बाहर निकल आए। कई लोगों ने छतों, खिड़कियों और दरवाजे पर खड़े होकर इस बारात को देखा। यहां तक कि कई लोगों ने तो दूल्हे और बारातियों के साथ सेल्फी भी ली और बैलगाड़ियों के साथ बारात की फोटो भी खींची।
बारात शाम 4 बजे विवाह स्थल पर पहुंची और रीति-रिवाजों के साथ वैवाहिक रस्मों की शुरुआत हुई। मॉर्डन जमाने में देशी अंदाज की बारात देखकर बुजुर्ग भी खुश हो गए। उन्होंने अपने समय को याद किया। सादगी भरी और जड़ों की ओर लौटने की यह पहल आदिवासियों को निश्चित ही अपनी परंपरा की ओर लौटने के लिये प्रेरित करेगी। यह बारात आज की खर्चीली शादियों से बचने के लिए एक प्रेरणा है। छत्तीसगढ़ी संस्कृति को संरक्षित रखने के इस प्रयास में शादी के दौरान सर्व समाज के पदाधिकारियों की भी मौजूदगी रही।
दूल्हे के रूप ने भी किया आकर्षित
दूल्हे के श्रृंगार ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। चांदी के आभूषण के साथ धोती, कमीज और पारंपरिक वेशभूषा में सजे दूल्हे ने कहा कि उसने अपनी परंपरा निभाई है। देशी अंदाज में निकली इस बारात की लोगों ने जमकर सराहना की।
परंपराओं को संरक्षित रखना उद्देश्य
दूल्हे शम्भू नाथ सलाम ने कहा कि बैलगाड़ी पर बारात की हमारी पुरानी परम्परा है। इसमें फिजूल खर्च नहीं होता है। परंपरा और संस्कृति को आगे बढ़ाना ही हमारा उद्देश्य है, इसलिए विवाह के हर रस्म को छत्तीसगढ़िया संस्कृति के नाम उन्होंने कर दिया। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में प्राचीन और छत्तीसगढ़ी परंपरा विलुप्त होती जा रही है, जिसे संजोकर रखना हमारा कर्तव्य है।सामाजिक पदाधिकारी होने के नाते मैंने अपना कर्तव्य निभाया है।