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देश का तीसरा ‘सिटी ऑफ म्यूजिक’ ग्वालियर: UNESCO के 55 क्रिएटिव शहरों की सूची में शामिल; यह धरोहर बनी मानक

ग्वालियर डेस्क :

संगीत सम्राट तानसेन की नगरी ग्वालियर को UNESCO (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन) ने 55 क्रिएटिव शहरों की सूची में जगह दी है। भारत के दो शहरों को इस लिस्ट में शामिल किया गया है। ग्वालियर को क्रिएटिव सिटी ऑफ म्यूजिक तो केरल के कोझिकोड शहर को क्रिएटिव सिटी ऑफ लिटरेचर का खिताब मिला है।

ग्वालियर को यह उपलब्धि संगीत की विरासत के लिए मिली है। ग्वालियर के बेहट में संगीत सम्राट तानसेन का जन्म हुआ था। यहां संगीत के प्रसिद्ध घराने हैं। देश का ख्याति प्राप्त संगीत समारोह भी यहां हर साल दिसंबर में होता है।

मंगलवार को UNESCO ने क्रिएटिव सिटीज (रचनात्मक शहरों) के नेटवर्क की सूची जारी की थी। केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने बुधवार को इसकी जानकारी दी है। ‘सिटी ऑफ म्यूजिक’ बनने वाला ग्वालियर भारत का तीसरा शहर है। UNESCO ने इससे पहले 2016 में वाराणसी को यह दर्जा दिया था। 2017 में चेन्नई को चुना गया था। इस कैटेगरी में विश्व में पहला शहर स्पेन के सविल को चुना गया था।

पर्य​​​​​​टन विभाग ने जून में भेजा था प्रस्ताव
ग्वालियर का नाम UNESCO की सिटी ऑफ म्यूजिक लिस्ट में शामिल हो, इसके लिए इसी साल जून में मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग ने प्रस्ताव भेजा था। इसमें ग्वालियर घराने, तानसेन और बैजू बावरा का जिक्र था। सिंधिया राजघराना भी ग्वालियर के संगीत घरानों और कलाकारों को बढ़ावा देता रहा है।

उपलब्धि की ये वजहें भी बहुत अहम…

  • ‘ग्वालियर घराना’ ख्याल घरानों की गंगोत्री: ‘ग्वालियर घराना’ भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा में सबसे पुराना घराना माना जाता है। ये घराना ‘ख्याल’ गायिकी के लिए प्रसिद्ध है और इसे सभी ख्याल घरानों की गंगोत्री कहा जाता है। इस घराने की गायनशैली का आरंभ 19वीं शताब्दी में हद्दू खां, हस्सू खां और नत्थू खां नाम के तीन भाइयों ने किया था। इनके शिष्य शंकर पंडित और उनके पुत्र कृष्णराव शंकर पंडित अपने समय के महान गायकों में शुमार होते थे।
  • संगीत विरासत- सरोद घर: शहर में ‘सरोद घर’ निर्माण में भी सिंधिया राजघराने का सहयोग रहा। ‘सरोद घर’ एक संग्रहालय है। यहां भारत के कई महान संगीतकारों के वाद्ययंत्र और व्यक्तिगत वस्तुएं संरक्षित हैं। ये महान संगीतकार उस्ताद हाफिज अली खान का पैतृक घर है। सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान ने इसका नाम ‘सरोद घर’ रखा। ये एक आर्ट गैलरी है।
  • ग्वालियर में जन्मे तानसेन ने ध्रुपद रचनाएं रचीं: तानसेन का जन्म ग्वालियर से 45 किमी दूर ग्राम बेहट में मकरंद बघेल के घर हुआ था। वे अकबर के नवरत्नों में से एक थे। तानसेन का नाम रामतनु था। वे स्वामी हरिदास के शिष्य थे। बाद में उन्होंने हजरत मुहम्मद गौस से संगीत सीखा। उन्हें उनकी ध्रुपद रचनाओं के लिए याद किया जाता है।
  • बैजू बावरा राजा मानसिंह की संगीत नर्सरी में आचार्य थे: बैजू बावरा ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक और उनकी संगीत नर्सरी के आचार्य भी रहे। उनका जन्म गुजरात के चांपानेर गांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम बैजनाथ मिश्र था। बैजू बावरा के सामने तानसेन जैसे गायक भी नतमस्तक होते थे।
  • ग्वालियर की गायकी में 8 अंग: ग्वालियर गायकी खुले गले की गायकी है। सुरों को स्वाभाविक ढंग से लगाया जाता है। इसमें 8 अंगों का प्रयोग होता है- आलाप-बहलावा, बोलआलाप, तान, बोलतान, मींड़, गमक, लयकारी और मुरकी-खटका-जमजमा। यहां बंदिश पर बहुत जोर दिया जाता है। इसकी गायिकी अधिकतर झुमरा, तिलवाड़ा, आड़ाचारताल, विलम्बित एक ताल आदि में होती है।

गूजरी रानी के साथ रास खेलते थे राजा मान सिंह
ग्वालियर से 20 किलोमीटर दूर बरई गांव में बनाए गए देश के पहले रास मंडप में राजा मान सिंह तोमर गूजरी रानी के साथ रास खेलते थे। रास का निर्देशन गूजरी रानी मृगनयनी का ही होता था। राजा मान सिंह की रंगशाला की दूसरी कलाकार गोपियों की भूमिका निभाती थीं।

राजा मान सिंह तोमर के युद्ध कौशल, साहित्यिक समझ और उच्च कोटि के संगीतकार होने की क्षमताओं की वजह से उनके दरबारी और समकालीन कलाकार-साहित्यकार उन्हें उस काल का कृष्ण कहा करते थे।

अब UNESCO करेगा ग्वालियर शहर की ब्रांडिंग
ग्वालियर को सिटी ऑफ म्यूजिक घोषित करने के बाद UNESCO इसकी ब्रांडिंग करेगा। UNESCO की वेबसाइट पर दुनिया की हेरिटेज जगहों को दिखाया जाता है। इसके अंतर्गत आर्ट, म्यूजिक, क्राफ्ट, लिटरेचर, फूड के लिए फेमस शहरों को प्रदर्शित किया जाता है।

अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टूरिस्ट प्लानिंग में ग्वालियर शामिल किया जाएगा। दूसरे देशों के प्रतिनिधि जब हमारे देश में आएंगे तो उनके टूर प्लान में भी ग्वालियर को जोड़ा जा सकता है। इससे ग्वालियर में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

इन मापदंड पर UNESCO करता है चयन

UNESCO का सिटी ऑफ म्यूजिक प्रोग्राम व्यापक क्रिएटिव सिटीज (रचनात्मक शहर) नेटवर्क का हिस्सा है। ये नेटवर्क 2004 में लॉन्च हुआ था। ‘सिटी ऑफ म्यूजिक’ टाइटल के लिए शहरों को UNESCO के निर्धारित इन मानदंडों को पूरा करना होता है-

  • संगीत निर्माण और गतिविधि के लिए मान्यता प्राप्त केंद्र।
  • राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संगीत समारोह और कार्यक्रमों की मेजबानी करने का अनुभव।
  • संगीत उद्योग को उसके सभी रूपों में बढ़ावा देना।
  • संगीत विद्यालय, संरक्षिकाएं, अकादमियां और संगीत में विशेषज्ञता वाले उच्च शिक्षा संस्थान।
  • संगीत शिक्षा के लिए अनौपचारिक संरचनाएं, जिनमें शौकिया गायक मंडल और ऑर्केस्ट्रा शामिल हैं।
  • संगीत की विशेष शैलियों और अन्य देशों के संगीत को समर्पित घरेलू या अंतरराष्ट्रीय मंच।
  • संगीत का अभ्यास करने और सुनने के लिए उपयुक्त सांस्कृतिक स्थान, जैसे खुली हवा वाले सभागार।

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