मध्यप्रदेश

पिता ने लड़ी 19 साल लंबी कानूनी लड़ाई; वर्ल्ड डॉटर-डे पर बेटी बोली- थैंक्यू पापा: लापरवाही ने छीनी आंखें, हॉस्पिटल देगा 85 लाख रुपए हर्जाना

जबलपुर डेस्क :

जन्म लेने के कुछ दिनों बाद ही एक नवजात बच्ची की आंखों की रोशनी चली गई। बच्ची प्रीमेच्योर थी। आरोप लगा कि इलाज के दौरान उसे ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा दे दी गई थी। पिता को जब इस बात का पता चला तो उसने देशभर में दूसरे स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को दिखवाया। उसका इलाज करवाया, लेकिन हर जगह से उन्हें निराशा हाथ लगी।

पिता ने बेटी को इंसाफ दिलाने के लिए उन लोगों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी, जिनकी वजह से मासूम बच्ची की आंखों की रोशनी चली गई थी। 19 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद वर्ल्ड डॉटर-डे से दो दिन पहले 22 सितंबर को उपभोक्ता फोरम ने अस्पताल और डॉक्टरों को 85 लाख रुपए हर्जाना देने के आदेश दिए हैं।

पिता को अब एक बार फिर उम्मीद बंधी है कि हर्जाना के रुप में मिलने वाले पैसों से वह विदेश में अपनी बेटी का इलाज कराएंगे। इधर पिता को कानूनी लड़ाई में मिली जीत पर बेटी ने कहा- थैंक्यू पापा।

ये है पूरा मामला…

मामला जबलपुर का है। आरोप है कि आयुष्मान चिल्ड्रंस अस्पताल के संचालक चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर मुकेश खरे की लापरवाही के कारण बच्ची साक्षी की आंखों की रोशनी चली गई थी। इसको लेकर उसके पिता ने साल 2004 में राज्य उपभोक्ता फोरम भोपाल में केस दायर किया था।

इस पर 22 सितंबर 2023 को फैसला देते हुए उपभोक्ता फोरम ने 60 दिनों के अंदर 40 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान और 12 अप्रैल 2004 से भुगतान दिनांक तक 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने को कहा है। इस हिसाब से करीब 85 लाख का भुगतान अस्पताल और डॉक्टर को करना होगा।

वर्ल्ड डॉटर-डे पर पढ़िए बेटी के हक के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले पिता की कहानी…

बेटी प्रीमेच्योर थी, डॉक्टरों ने ज्यादा ऑक्सीजन दे दी…

कटनी में रहने वाले शैलेंद्र जैन मेडिसिन विभाग में प्राइवेट जॉब करते हैं। 2002 में उनके यहां बेटी ने जन्म लिया था। पूरे परिवार में हंसी-खुशी का माहौल था। बच्ची प्री मेच्योर थी। वजन 1500 ग्राम से भी कम था, लेकिन परिवार खुश था। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उसे जबलपुर में अच्छे डॉक्टरों को दिखाए। शैलेंद्र जैन अपनी बच्ची को इलाज के लिए जबलपुर के चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉ. मुकेश खरे के पास ले गए। डॉक्टर ने बच्ची को देखा और बताया कि इसका वजन काफी कम है। उसे इलाज के लिए आयुष्मान हॉस्पिटल में भर्ती करवा दें।

डॉक्टर की बात मानते हुए शैलेंद्र ने बेटी को आयुष्मान हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया। करीब 36 दिन चले इलाज के बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्‌टी दे दी गई। शैलेंद्र जैन बच्ची को लेकर घर (कटनी) आ गए। एक महीने बाद दैनिक भास्कर में उन्होंने पढ़ा कि जिन बच्चों का वजन कम होता है, उन्हें कुछ ना कुछ तकलीफ होती है। शैलेंद्र ने गौर किया कि उसकी बेटी की आंखों में कुछ परेशानी है। इसके बाद वे बेटी साक्षी को आई स्पेशलिस्ट डॉ. अरविंद सिंघई और डॉ. आर गोपाल बजाज के पास चेकअप के लिए ले गए। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि बच्ची की आंखों में प्रॉब्लम आ गई है। आपकी बेटी को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन दी गई है, जिसके कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई है।

अहमदाबाद के डॉक्टर बोले-आंखों की रोशनी आना मुश्किल है

शैलेंद्र जैन को जब पता चला कि उसकी बेटी की आंखों की रोशनी चली गई है, तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई। वे बेटी की आंखों का इलाज करवाने अहमदाबाद के आई अस्पताल में डॉ. पीएन नागपाल को दिखाने ले गए। डॉक्टर ने चेकअप करने के बाद बताया कि उनकी बेटी की आंखों में रेटिना डिटेच हो गया है, अब उसकी आंखों की रोशनी आना मुश्किल है। शैलेंद्र ने अपनी बेटी के इलाज के लिए दिन-रात एक कर दिया। न सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई तक अपनी बेटी को इलाज करवा लिया, लेकिन आंखों की रोशनी नहीं आई।

2003 में अहमदाबाद के डॉ. पीएन नागपाल के जरिए शैलेंद्र ने अमेरिका के डॉक्टर मेहता से भी संपर्क किया। डॉ. मेहता ने उन्हें 3 महीने बाद का समय दिया। शैलेंद्र को कहा गया कि वह बेटी को आंख के इलाज के लिए अगर अमेरिका आते हैं तो उन्हें 20 लाख रुपए का खर्च आएगा। डॉ. मेहता ने यह भी बताया कि किसी भी तरह की गारंटी नहीं है कि उसकी बेटी की आंखों की रोशनी आ जाए।

2003 से लगातार अपनी बच्ची के इलाज के लिए दर-दर भटकते हुए शैलेंद्र जैन शंकर नेत्रालय चेन्नई में अपनी बेटी की आंखों के लिए इलाज के लिए संपर्क किया। शंकर नेत्रालय चेन्नई में डॉक्टर बद्रीनाथन और डॉक्टर लिंगम गोपाल ने बच्ची का इलाज किया लेकिन कहीं से भी उसकी आंखों में रोशनी नजर नहीं आ रही थी। शैलेंद्र को हर तरह से निराशा ही हाथ लग रही थी लेकिन वह हिम्मत नहीं हर रहे थे। उन्होंने चेन्नई के बाद मुंबई, दिल्ली, हैदराबाद, राजस्थान भी अपनी बच्ची को इलाज के लिए ले गए।

अस्पताल की गलती का खामियाजा भुगत रहा परिवार

जबलपुर के आयुष्मान चिल्ड्रन्स अस्पताल की एक छोटी सी गलती का खामियाजा आज एक मासूम बच्ची और उसका पूरा परिवार भुगत रहा था। 2004 में शैलेंद्र ने राज्य उपभोक्ता फोरम में अपनी बच्ची के इलाज को लेकर बरती गई लापरवाही पर याचिका भी दायर की थी। उन्होंने फोरम में आयुष्मान अस्पताल और डॉ. मुकेश खरे के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई। राज्य उपभोक्ता फोरम में 2004 से लगातार चल रही सुनवाई के दौरान उन्होंने भोपाल के सैकड़ों चक्कर काटे।

विदेश में करवाऊंगा बेटी का इलाज

आखिरकार 2023 में जो फैसला आया वह उनके लिए सुखदाई था। राज्य उपभोक्ता फोरम ने शैलेंद्र जैन की लगी याचिका पर सुनवाई करते हुए आयुष्मान अस्पताल को 40 लाख रुपए का हर्जाना दो माह में देने के निर्देश दिए। शैलेंद्र जैन ने बताया कि डॉक्टरों की एक गलती से मेरी बेटी की आंखों की रोशनी चली गई। मैंने कई डॉक्टरों को दिखाया पर वह ठीक नही हुई। आज मुझे कानून से मदद मिली है। 19 साल बाद राज्य उपभोक्ता फोरम ने राहत मुझे दी है। मैं अब अपनी बेटी की आंखों का इलाज विदेश में जाकर करवाऊंगा।

उपभोक्ता फाेरम ने माना-अस्पताल और डॉक्टर की गलती

सुनवाई के दौरान राज्य उपभोक्ता फोरम को शैलेंद्र जैन के वकील दीपेश जोशी ने बताया कि बच्ची को रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी है। यह इंक्यूबेटर में ऑक्सीजन के अत्यधिक डोज के कारण हुआ है। इसको लेकर अस्पताल की लापरवाही भी सामने आई है। मामले पर सुनवाई करते हुए मध्य प्रदेश राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग ने कहा कि पीड़ित बच्ची साक्षी जैन की आंखों की रोशनी अस्पताल एवं डॉक्टर की लापरवाही के कारण ही हमेशा के लिए चली गई। उसके जीवन पर कथित रूप से प्रभाव पड़ने की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता। आंखों की कमी के कारण उसका जीवन भी प्रभावित होगा।

40 लाख की क्षतिपूर्ति के साथ 2004 से ब्याज के भुगतान का आदेश

राज्य उपभोक्ता फोरम ने निर्देश दिए हैं कि 60 दिनों के अंदर 40 लाख रुपए की क्षतिपूर्ति राशि का भुगतान शैलेंद्र जैन को किया जाए। इस रकम पर 12 अप्रैल 2004 से भुगतान दिनांक तक 6% प्रतिवर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करने को आयोग ने कहा है। साथ ही यह चेतावनी दी है कि 60 दिन के अंदर अगर राशि नहीं दी जाती तो इस पर आदेश से भुगतान दिनांक तक 8% का ब्याज देना होगा। जो कि करीब 85 लाख रुपए बनता है। बचपन में ही डॉक्टरों की लापरवाही के कारण अपनी दोनों आंखों की रोशनी खो चुकी साक्षी आज 21 साल की हो चुकी है। बीए सेकंड ईयर में पढ़ रही साक्षी को म्यूजिक सुनने और गाना गाने का बहुत शौक है। साक्षी का एक छोटा भाई शालिन जैन जो के 12वीं पढ़ रहा है जबकि उसकी छोटी बहन कृषकि दसवीं क्लास में है।

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