राजस्थान

राज्य की वो विधानसभा सीटें जो भाजपा-कांग्रेस का गढ़: शेष 119 ओपन सीटें ही हर बार सत्ता पलट रहीं

इस बार क्या बदलेगा ट्रेंड?

जयपुर डेस्क :

भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों का फोकस हर एक सीट पर रहता है लेकिन प्रदेश में सत्ता पलटने में खास भूमिका कुल 200 में से 119 सीटों की रहती आई है। कारण- 60 सीटें भाजपा के लिए गढ़ जैसी हैं, जहां उसे हराना मुश्किल रहता है।

वहीं, कांग्रेस के पास ऐसी 21 सीटें हैं, जो भाजपा के लिए अभेद्य बनी हुई हैं। यानी कुल 81 सीटों की तस्वीर तो दोनों दलों के समक्ष पहले से साफ रहती आई है। शेष 119 ओपन सीटों का नतीजा ही तय करता है कि सरकार किसकी बनेगी।

ये सीटें ऐसी हैं, जहां के मतदाता बार-बार पार्टी या विधायक को पलटते रहे हैं। इन सीटों पर मतदाता अपने क्षेत्र के मुद्दों, चेहरे, जाति, सक्रियता आदि के आधार पर वोट देते रहे हैं।

  • 1972 से 2018 तक के 11 चुनावों में सभी 200 विधानसभा सीटों की जीत-हार का विश्लेषण किया तो यह तथ्य सामने आया।
  • गढ़: जहां एक ही पार्टी को लगातार 6 से 3 बार जीत मिली। लगातार 2 बार जीतने का मतलब भी यह है कि वह सीट स्थाई यानी गढ़ बन रही है।

भाजपा : छह बार : बाली। पांच बार : पाली। चार बार : उदयपुर, लाडपुरा, राजगंजमंडी, सोजत, झालरापाटन, खानपुर, भीलवाड़ा, ब्यावर, फुलेरा, सांगानेर, रेवदर, राजसमंद, नागौर। तीन बार : कोटा साउथ, बूंदी, सूरसागर, भीनमाल, अजमेर नार्थ, अजमेर साउथ, मालवीय नगर, रतनगढ़, विद्याधर नगर, बीकानेर ईस्ट, सिवाना, अलवर सिटी, आसींद। दो बार : 33 सीटें।

कांग्रेस : पांच बार : सरदारपुरा (जोधपुर)। चार बार : बाड़ी। तीन बार : झुंझुनूं, बागीदोरा, सपोटरा, बाड़मेर, गुढ़ामालानी, फतेहपुर। दो बार : डीग-कुम्हेर, सांचौर, बड़ी सादड़ी, चित्तौड़गढ़, कोटपूतली, सरदारशहर सहित 13 सीटें।

परंपरागत: किसी पार्टी ने बीच में एक-दो बार सीट खोई, लेकिन ज्यादातर चुनावों में जीत उसे ही मिली।

भाजपा : चार में से : घाटोल, मालपुरा, सुमेरपुर, मेड़ता, बिलाड़ा, शेरगढ़, भीनमाल, रानीवाड़ा, संगरिया, भीम, मकराना, परबतसर 3 बार। पांच में से : फलौदी, धौलपुर, पिंडवाड़ा आबू 3 बार। छह में से : आसींद 5, चौमूं 4, चूरू 5 बार। सात में से : जालौर 6, प्रतापगढ़ 6, जैतारण 6, किशनपोल 6 बार। नौ में से : मनोहरथाना व भीलवाड़ा 7, छबड़ा 8 बार।

कांग्रेस : चार में से : हनुमानगढ़, बानसूर 3 बार। पांच में से : फतेहपुर, हिंडौली, खंडार, लूणी, आमेर 3 और जमवारामगढ़ 4 बार। छह में से : राजाखेड़ा 5, लूणकरणसर 4, सरदारशहर 5, बाड़मेर 4 बार। सात में से : तारानगर 5 बार। नौ में से : डूंगरपुर 8, नसीराबाद 7, सागवाड़ा 6, चित्तौड़ 5 बार।

  • ओपन: जहां मतदाता बार-बार पार्टी या विधायक बदल देते हैं।
  • बदलता ट्रेंड: 3 में से 2 बार जीत

भाजपा : लोहावट, बसेड़ी, चाकसू, बीकानेर वेस्ट, किशनगढ़ बास, मुंडावर।
कांग्रेस : सहाड़ा, अंता, बारां अटरू, गुढ़ामालानी, अलवर रूरल।

जो सीटें पार्टियों के लिए गढ़ या परंपरागत हैं, वे लहर में भी तटस्थ रहती रही हैं जबकि ओपन 157 सीटें ही लहर के साथ बहती आई हैं।

सात सीटें ऐसी… कहीं कांग्रेस तो कहीं भाजपा का खाता 20-25 साल से बंद

  • उदयपुर : 25 साल से कांग्रेस का खाता नहीं खुला। 51 साल में 11 चुनावों में से कांग्रेस सिर्फ 1985 व 1998 में जीती।
  • फतेहपुर : 1993 के चुनाव में आखिरी बार भंवरलाल ने जीत हासिल की, उसके बाद भाजपा कभी नहीं जीत पाई।
  • बस्सी : कांग्रेस यहां 1985 में अंतिम बार जीती, फिर 38 साल में कभी नहीं जीत पाई। पिछले 3 चुनाव लगातार निर्दलीयों ने जीते।
  • कोटपूतली : 1998 के चुनाव में भाजपा के रघुवीरसिंह जीते थे, उसके बाद भाजपा की वापसी नहीं हो पाई।
  • सांगानेर : 1998 के चुनाव में कांग्रेस से आखिरी बार इंदिरा मायाराम जीती थीं, उसके बाद कांग्रेस यहां कभी नहीं जीत पाई।
  • रतनगढ़ : 1998 में कांग्रेस के जयदेव प्रसाद इंदौरिया अंतिम बार जीते, उसके बाद कांग्रेस वापसी नहीं कर पाई।
  • सिवाना सीट : 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गोपाराम मेघवाल यहां से जीते थे, उसके बाद से कांग्रेस का खाता बंद।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!