राजस्थान

लोक नृत्यों की प्रस्तुति से बनाया भारत का मानचित्र: 8 राज्यों के 200 कलाकारों ने 17 विधाओं की प्रस्तुति लोकरंग में दी

जयपुर डेस्क :

लोक संस्कृति को करीब से जानने के लिए कला प्रेमी बड़ी संख्या में जवाहर कला केन्द्र में जुट रहे हैं। 26वें लोकरंग महोत्सव के छठे दिन देशभर के विभिन्न राज्यों के लोक नृत्यों की प्रस्तुति से भारत का मानचित्र साकार होता नजर आया। 8 राज्यों के 200 कलाकारों की ओर से 17 विधाओं की प्रस्तुति लोकरंग में दी गयी। शिल्पग्राम में लगे राष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में लोग मनोरंजक प्रस्तुतियों के लुत्फ उठाते हुए हस्तशिल्प उत्पाद खरीद रहे हैं। शिल्पग्राम के मुख्य मंच पर कच्छी घोड़ी, डेरू नृत्य, मांड गायन, लोक गायन व कालबेलिया नृत्य की प्रस्तुति दी गयी। बहुरूपिया, कठपुतली कलाओं ने दर्शकों को रिझाया।

केन्द्र के मध्य स्थित मध्यवर्ती का मंच विभिन्न लोक विधाओं की प्रस्तुतियों का गवाह बन रहा है। मणिपुर के माइबी जगोई से कार्यक्रम का आगाज हुआ। जगोई से तात्पर्य है नृत्य और महिला पुरोहित को माइबी कहा जाता है। देवताओं के आह्वान के लिए यह नृत्य किया जाता है। गोवा के कुणबी जनजाति की ओर से किए जाने वाले कुणबी नृत्य के साथ समारोह आगे बढ़ा।

मध्य प्रदेश के बैगा परघौनी नृत्य ने आदिवासी संस्कृति से साक्षात्कार करवाया। हाथी पर बैठे कलाकार ने सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा। दरसअल, बैगा आदिवासियों की ओर से बारात के स्वागत के लिए यह नृत्य किया जाता है। जिसमें दुल्हन के भाई को हाथी पर बैठाकर सम्मान दिया जाता है। मणिपुर के चेरोल जगोई/स्टिक डांस में कलाकार ने स्टिक को अपने इशारों पर नचाया तो सभी रोमांचित हो उठे। कृष्ण रास से प्रेरित उत्तर प्रदेश के राई नृत्य के बाद मणिपुर के लाई हरोबा नृत्य में प्रकृति को धन्यावाद दिया गया। महाराष्ट्र के मर्दानी शौर्य कला में आत्मरक्षा के गुर देखने को मिले। राजस्थान के गैर नृत्य ने सभी को थार की संस्कृति से रूबरू करवाया। होली के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। गुजरात के होली नृत्य में होली की मस्ती में मस्त आदिवासी समुदाय का उत्साह देखने को मिला।

सौंगी मुखवटे महाराष्ट्र का ऐसा नृत्य है जो अरसे बाद मध्यवर्ती के मंच पर आया है। कलाकार शेर भी बने और बड़े-बड़े मुखौटे लगा काल भैरव और बेताल को भी दर्शाया गया। तीव्र गति में होने वाला इस नृत्य में कोंकणा जनजाति के कलाकार बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देते हैं। तेलंगाना का ओगू डोलू नृत्य एक ऐसा नृत्य है जो शोभा यात्राओं का हिस्सा रहता है। कलाकार स्वयं को भगवान शिव के बाराती मानते हुए नृत्य करते हैं। प्रस्तुति में 10 साल की उम्र के बच्चों ने वाद्य यंत्र बजाते हुए हिस्सा लिया। राष्ट्रीय लोक नृत्य समारोह के सातवें दिन शनिवार को मध्यवर्ती में मांड गायन, तेरहताली, बीहु, रउफ, बगरूम्बा, होजागिरी, बारदोई शिखला व घट विन्यासम् समेत अन्य लोक विधाओं की प्रस्तुतियां होगी।

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