इंदौर डेस्क :
आईआईटी इंदौर साइबर फिजिकल सिस्टम पर काम करने वाली संस्था दृष्टि फाउंडेशन के माध्यम से आने वाले डेढ़ साल में शहर में दो बड़े सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोलेगा। इनमें से एक हेल्थ केयर के क्षेत्र में शुरू होगा, जिसमें एम्स दिल्ली भी सहयोग देगा और दूसरा मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के लिए होगा। यहां कंपनियों की समस्याओं का टेक्नोलॉजी के माध्यम से समाधान होगा। कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाएगा और साथ ही मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र के स्टार्टअप को इन्क्यूबेशन सेवाएं भी प्रदान की जाएंगी।
दृष्टि फाउंडेशन द्वारा जिन 21 स्टार्टअप का सहयोग किया जा रहा है, उनकी टेक्नोलॉजी प्रदर्शित करने के लिए रविवार को प्रदर्शनी का आयोजन किया गया। 21 में से आधे स्टार्टअप प्रदेश के हैं और लगभग एक तिहाई महिलाओं द्वारा चलाए जा रहे हैं। इनमें से 8 स्टार्टअप चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। पहली बार आयोजित प्रदर्शनी में स्टार्टअप ने इन्फोसिस के को-फाउंडर सेनापति क्रिस गोपालकृष्णन को प्रेजेंटेशन दिया।
उन्होंने सभी तकनीकों को समझते हुए साइबर फिजिकल सिस्टम के क्षेत्र में सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की मदद से अतिरिक्त फंडिंग देने का भी आश्वासन दिया। इस मौके पर आईआईटी इंदौर के डायरेक्टर प्रो. सुहास जोशी भी उपस्थित थे।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से समस्याओं का समाधान ढूंढने और स्टार्टअप को इस क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए आईआईटी इंदौर एम्स के साथ काम कर रहा है। एक प्रोजेक्ट वेंटिलेटर पर न्यूरोलॉजिकल ट्रामा पेशेंट के स्वास्थ्य को लेकर पूर्वानुमान लगाने के लिए है। एम्स के डॉ. दीपक अग्रवाल ने बताया हम ऐसा सिस्टम बना रहे हैं, जो वेंटिलेटर से मरीज के सभी वाइटल्स से डाटा को एकत्रित कर के भविष्य में होने वाले ऐसे कॉम्प्लिकेशन का कुछ घंटों पहले या कुछ दिन पहले पूर्वानुमान लगा सकें।
क्रिटिकल केयर इक्विपमेंट का हो सके सही रखरखाव
अस्पताल में लगने वाली मशीनें जैसे वेंटिलेटर, ऑक्सीजन सप्लाई आदि सिस्टम के सही रखरखाव और उनमें होने वाली किसी भी खराबी के पूर्वानुमान के लिए आईआईटी और एम्स द्वारा एक सिस्टम बनाया जा रहा है। इससे इन मशीनों के खराब होने के पहले ही जानकारी मिल जाएगी, जिससे इनका सही रखरखाव हो सके या इन्हें समय रहते बदला जा सके। आगे चलकर इसे देशभर के अस्पतालों से जोड़ा जाएगा, जिससे सभी जगह स्वास्थ्य सेवाओं के स्तर को बढ़ाया जा सके और मरीजों को बेहतर चिकित्सा सेवा मिल सके।