इंदौर

भारत-पाक बंटवारे के बाद अपना घरबार छोड़कर आऐ शरणार्थियों के लिए इंदौर के भंवरकुआं क्षेत्र में बनाए गए थे 300 मकान

स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में , मध्यभारत में आए थे 60 हजार शरणार्थी, 3650 शरणार्थियों को इंदौर में बसाया

इंदौर डेस्क :

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में शरणार्थी मध्य भारत की तरफ आए थे। अपना घरबार छोड़कर खाली हाथ आए शरणार्थियों को पुनर्स्थापित करना जटिल काम था। पाकिस्तान के सिंध, वेस्ट पंजाब तथा नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से करीब 60 हजार से अधिक शरणार्थी मध्य भारत में आए थे। इनके लिए मार्च 1948 में मानपुर में विशेष कैंप लगाया गया था। सिंध से 3650 शरणार्थियों को इंदौर व आसपास के इलाकों में बसाया गया। शरणार्थियों को बसाने और उनके रोजगार व कारोबार के लिए के मध्य भारत शासन ने विशेष कदम उठाए थे।

इसके तहत बहुत से शरणार्थियों को भानपुरा भेजा गया था, ताकि वहां चंबल नदी पर बनने वाले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के जरिए रोजगार प्राप्त कर सकें। इंदौर व महू में विशेष कैंप बनाए गए थे। शरणार्थियों को शहर के भंवरकुआं क्षेत्र में पक्के मकान बनाकर दिए गए थे। इसके साथ ही शरणार्थियों को शहर में अलग-अलग जगहों पर किराए से मकान उपलब्ध कराए गए। इन जगहों में रंग महल, चंदन भवन, जिंसी हॉट मैदान के पास की जगह, जंगमपुरा, पारसी मोहल्ला आदि शामिल थे। बड़ी तादाद में आए शरणार्थियों के लिए रोजगार की व्यवस्था करना बड़ी समस्या थी। इसके मद्देनजर 1949 में शहर के ऐतिहासिक राजबाड़ा चौक के सामने छोटी-छोटी गुमटियां लगवाई गई थीं, ताकि यह लोग व्यापार कर सकें। बाद के वर्षों में इन गुमटियों को राजबाड़ा से हटाकर कृष्णपुरा छत्रियों पर शिफ्ट किया गया। विभाजन में विधवा हुई महिलाओं के लिए सिख मोहल्ला और एमजी रोड के दोनों ओर दुकानें उपलब्ध कराई गईं।

  • मध्य भारत के इंदौर, महू, ग्वालियर सहित अन्य इलाकों में शरणार्थी महिलाओं को विशेष ट्रेनिंग देकर रोजगार उपलब्ध कराया गया था। 1950 का यह चित्र, जिसमें शरणार्थी महिलाएं सिलाई का काम कर रही हैं।
  • शहर में शरणार्थियों को रोजगार के लिए विभिन्न प्रकार के हस्तशिल्प, कागज के खिलौने बनाना, चमड़े के खिलौने बनाना, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई आदि का विशेष प्रशिक्षण दिया गया था। 50 के दशक का यह चित्र, जिसमें चमड़े की वस्तुएं बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
  • हाउसिंग एंड डेवलपमेंट कमिश्नर द्वारा भंवरकुआं क्षेत्र में शरणार्थियों के लिए 7 एकड़ में साढ़े पांच लाख की लागत से 300 मकानों वाली कॉलोनी बसाई गई। 1950 का चित्र, जिसमें शरणार्थियों के लिए पक्के आवासों का निर्माण किया जा रहा है।

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बड़ी संख्या में शरणार्थी मध्य भारत की तरफ आए थे। अपना घरबार छोड़कर खाली हाथ आए शरणार्थियों को पुनर्स्थापित करना जटिल काम था। पाकिस्तान के सिंध, वेस्ट पंजाब तथा नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से करीब 60 हजार से अधिक शरणार्थी मध्य भारत में आए थे। इनके लिए मार्च 1948 में मानपुर में विशेष कैंप लगाया गया था। सिंध से 3650 शरणार्थियों को इंदौर व आसपास के इलाकों में बसाया गया। शरणार्थियों को बसाने और उनके रोजगार व कारोबार के लिए के मध्य भारत शासन ने विशेष कदम उठाए थे।

इसके तहत बहुत से शरणार्थियों को भानपुरा भेजा गया था, ताकि वहां चंबल नदी पर बनने वाले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के जरिए रोजगार प्राप्त कर सकें। इंदौर व महू में विशेष कैंप बनाए गए थे। शरणार्थियों को शहर के भंवरकुआं क्षेत्र में पक्के मकान बनाकर दिए गए थे। इसके साथ ही शरणार्थियों को शहर में अलग-अलग जगहों पर किराए से मकान उपलब्ध कराए गए। इन जगहों में रंग महल, चंदन भवन, जिंसी हॉट मैदान के पास की जगह, जंगमपुरा, पारसी मोहल्ला आदि शामिल थे। बड़ी तादाद में आए शरणार्थियों के लिए रोजगार की व्यवस्था करना बड़ी समस्या थी। इसके मद्देनजर 1949 में शहर के ऐतिहासिक राजबाड़ा चौक के सामने छोटी-छोटी गुमटियां लगवाई गई थीं, ताकि यह लोग व्यापार कर सकें। बाद के वर्षों में इन गुमटियों को राजबाड़ा से हटाकर कृष्णपुरा छत्रियों पर शिफ्ट किया गया। विभाजन में विधवा हुई महिलाओं के लिए सिख मोहल्ला और एमजी रोड के दोनों ओर दुकानें उपलब्ध कराई गईं।

सिंध से आए लोग 1951 में सिंधी कॉलोनी में बसने लगे और देखते ही देखते विशाल बसाहट बन गई। 70 के दशक में बांग्ला शरणार्थी इंदौर आए और बंगाली चौराहे के पास टेंट लगाकर रहने लगे। इसी वजह से इस इलाके का नाम बंगाली चौराहा पड़ा। ठाकुर दौलतसिंह ने विधवा शरणार्थियों को अपने दो कमरे के एक मकान में शरण दी थी। इन महिलाओं के पास एक जोड़ी कपड़ा था, जिसमें उन्होंने कई महीने निकाले। कठिनाइयों का सामना करते हुए यह लोग शहर में घुल मिल गए। शरणार्थियों के लिए इंदौर में रोजगार तलाश करना बड़ा मुश्किल था। ऐसे में उन्होंने गुमटियों से अपना व्यापार शुरू किया। कई लोग फेरी लगाकर कारोबार करने लगे। इसमें कुल्फी व चने बेचना, घर-घर जाकर बच्चों को बाइस्कोप दिखाना, खिलौने बेचना आदि शामिल था।

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