इंदौर में 12 मेजर, 4 रिंग रोड 48 साल में भी अधूरे: नतीजा- लाखों लोग मीलों चक्कर काट रहे, घंटों ट्रैफिक में फंस रहे
निर्माण लागत भी कई गुना बढ़ी
इंदौर डेस्क :
पुराना गड्ढे में, नए मास्टर प्लान की तैयारी, मध्य शहर से आवागमन आसान बनाने 1975 में बने पहले मास्टर प्लान में ये 16 सड़कें प्रस्तावित की थीं
1975 में शहर का पहला मास्टर प्लान बना। इसमें मध्य क्षेत्र से आवागमन सुगम बनाने के लिए 11 मेजर रोड (एमआर), रिंग रोड व लिंक रोड प्रस्तावित की गईं। 1991 में एक और एमआर-12 जोड़ी गई। लेकिन सरकारी सिस्टम की कछुआ चाल देखिए कि 48 साल में भी ये सड़कें पूरी नहीं बन पाईं। इसका नतीजा यह हुआ कि रोजाना 13 लाख लोग मीलों का चक्कर काटकर अपने गंतव्य तक जा रहे हैं। इसमें वे घंटों ट्रैफिक जाम में फंसते हैं। इतना ही नहीं इन सड़कों की निर्माण लागत भी कई गुना बढ़ गई।
हालत यह है कि 12 एमआर में से 6 सड़कें एमआर-2, एमआर-3, एमआर-5, एमआर-6, एमआर-8 व एमआर-12 तो कागजों पर ही आकार लेती रहीं। 6 सड़कों का निर्माण शुरू हुआ, लेकिन यह अब भी अधूरी हैं। रिंग रोड तो टुकड़ों-टुकड़ों में बनी, पश्चिमी रिंग रोड के एक हिस्से पर तो कॉलोनियां बस गईं। शहर की बसाहट व व्यावसायिक गतिविधियां बायपास, सुपर कॉरिडोर तक पहुंच गईं। जनसंख्या 6.60 लाख से 33 लाख हो गई। वाहन 25 लाख पार हो गए। मौजूदा सड़कें इनके बोझ से हांफ रही हैं। पुराने मास्टर प्लान की सड़कें बन नहीं पाईं और मास्टर प्लान-2035 की तैयारी चल रही है।
कलेक्टर इलैया राजा टी का कहना है सरकार ने मास्टर प्लान की प्रमुख सड़कों के लिए राशि का आश्वासन दिया है। यह मिलते ही काम शुरू कर देंगे।
समझिए वे कौन सी सड़कें हैं, जो बनाई जाना थीं, लेकिन नहीं हुईं पूरी
- एमआर-2 यह सड़क चंद्रगुप्त चौराहा, स्कीम 54, सुखलिया क्षेत्र के लिए एमआर-10 व 11 के बीच की महत्वपूर्ण लिंक है। इसके निर्माण से बायपास, रिंग रोड की ओर लोगों को आवाजाही आसानी होगी। वर्तमान में िवजय नगर, स्कीम नंबर 114 से होते हुए 2 से 3 किमी का चक्कर लगता है।
- एमआर-3 शहर के पश्चिमी क्षेत्र में बायपास तक पहुंचने के लिए महत्वपूर्ण सड़क है। ग्रीन बेल्ट में होने से मुश्किल आ रही है। बनने से अन्नपूर्णा, कलेक्टोरेट की ओर से बायपास जाने में आसानी होती है। वर्तमान में खंडवा रोड ही एकमात्र विकल्प है। दूसरा एबी रोड होकर राऊ चौराहा से 4 से 5 किलोमीटर लंबा चक्कर लगाना होता है।
- एमआर – 4 यह मेजर रोड सरवटे बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, आईएसबीटी के बीच एक सुगम ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर है। इससे पूर्वी व मध्य इंदौर का सीधे जुड़ाव होगा। इसके बनने से बीआरटीएस के ट्रैफिक में भी कमी आएगी। मध्य-पश्चिमी शहर की ओर से सुखलिया, बापट की ओर व उज्जैन रोड की ओर सीधे जा सकेंगे। 2 से 3 किमी का चक्कर बचेगा।
- एमआर – 5 यह सड़क सुपर कॉरिडोर को राजबाड़ा क्षेत्र से सीधे जोड़ेगी। इसका निर्माण राजबाड़ा, लक्ष्मीबाई नगर मंडी होकर सुपर कॉरिडोर तक हाेगा। इसके बनने से मध्यक्षेत्र से सुपर कॉरिडोर के लिए सीधे एयरपोर्ट, बाणगंगा की ओर से नहीं जाना होगा।
- एमआर-12 एबी रोड लसूड़िया थाने के आगे से कैलोदहाला रेलवे क्रॉसिंग को पार करते हुए यह सड़क लवकुश चौराहे तक जाएगी। इसके बनने से बायपास, एबी रोड के भारी वाहनों का ट्रैफिक सीधे उज्जैन रोड, सुपर कॉरिडोर पहुंच जाएगा। इससे एमआर-10 व 11 शहर की सघन क्षेत्र की मुख्य सड़कें बन जाएंगी।
रिंग रोड भी ब्लॉक
पूर्वी रिंग रोड-1 देवास नाका से राजीव गांधी चौराहे तक बन गई है। रिंग रोड-2 नेमावर रोड आरटीओ तक बन रही है। इसके आगे एबी रोड राऊ के समीप तक जाती है पर अलाइनमेंट तय नहीं है। पश्चिमी रोड सिर्फ रेती मंडी से चंदन नगर तक बनी है। इसके आगे ब्लॉक है। रिंग-2 सिर्फ सुपर कॉरिडोर का हिस्से के रूप में बनी है।
अतिक्रमण में एमआर
एमआर-6 महू नाके से चंदन नगर तक बनना है पर समाजवाद नगर, चांदमारी का भट्टा के अतिक्रमण के कारण रुकी है। एमआर-9 अनूप टॉकीज के समीप व रिंग रोड के आगे ब्लॉक है। एमआर-11 बायपास से लसूड़िया मोरी तक नहीं बन सकी है। एमआर-8 भी बिचौली हप्सी से बायपास के बीच बनना है।
- सभी एमआर सड़कें की कुल लंबाई 112 किमी है। इनमें से मात्र 48 किमी का निर्माण हो सका है।
- पूर्वी व पश्चिमी रिंग रोड की लंबाई 79 किमी है। इसमें मात्र 40 किमी बन सकीं।
समय, ईंधन का नुकसान, मुकाम तक पहुंचने में देरी
- शहर में रोजाना 13.26 लाख लोग काम के लिए निकलते हैं। 2041 में यह संख्या करीब 22 लाख हो जाएगी।
- ट्रैफिक में फंसने से रोज इनका 1 घंटे से ज्यादा समय बर्बाद होता है।
- 35 से 40% ज्यादा पेट्रोल-डीजल की खपत ज्यादा होती है, जिससे खर्च भी बढ़ता है। ट्रैफिक जाम न हो तो खपत कम होगी।
सड़कों की बढ़ रही लागत को इन उदाहरण से समझें
- मास्टर प्लान तय होने के 10 साल में क्रियान्वयन शुरू हो जाना चाहिए, पर इन सड़कों पर अमल 1995 में शुरू हुआ।
- एमआर-3 का निर्माण 2005 में प्रस्तावित हुआ। तब लागत करीब 34 करोड़ आंकी गई। अब यह 48 करोड़ हो गई।
- एमआर-4 की लागत 2014 में 42 करोड़ थी। अब यह 60 करोड़ हो गई। तय लंबाई-चौड़ाई में भी नहीं बन रही।
समाधान
निर्माण एजेंसियों में तालमेल न होने से ऐसे हाल हैं
मास्टर प्लान-1975 के क्रियान्वयन को लेकर दो एजेंसियों में तालमेल नहीं होने से यह स्थिति बनी है। इसलिए इसकी सड़कों का निर्माण अब तक 50% भी नहीं हो सका। कुछ सड़कें तो आवासीय बसाहट होने से भविष्य में भी नहीं बन सकेंगी। वर्तमान में जिन सड़कों के लिए जमीन उपलब्ध है, उन्हें तत्काल बनाना चाहिए। देरी के कारण जमीनों पर आवासीय या व्यावसायिक अनुमतियां दे दी जाती हैं। इससे बाद में तय रोड बनाने के लिए जमीन लेने में दिक्कत आती है। मौजूदा परिस्थितियां इसी कमी का उदाहरण हैं। – जयवंत होलकर, मास्टर प्लान विशेषज्ञ