इंदौर

ये हैं मध्यप्रदेश के इंदौर के गौरव: शहर के गौरवशाली इतिहास को बयां करते कुछ ऐतिहासिक तथ्य

इंदौर डेस्क :

देवी अहिल्या बाई के जन्मोत्सव को इंदौर गौरव दिवस के रूप में मना रहा है। इंदौर का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। इसकी अलग पहचान रही है। चाहे इंदौर नगर की प्लानिंग हो, शिक्षा हो, चिकित्सा हो, सभी क्षेत्र में ये विश्व पटल पर छाया रहा है। इंदौर को इंदौर बनाने में उन अनगिनत हस्तियों का योगदान रहा है, जिन्होंने सड़क, बिजली, पानी, ब्रिज, अस्पताल, स्कूल सहित कई सारी सुविधाएं आने वाली पीढ़ियों के लिए जुटाईं।

इंदौर के विकास की इबारत लिखने में शुरुआती दौर के इंजीनियर, व्यापारी, डॉक्टर्स, शिक्षक सहित कई समाजसेवियों की अहम भूमिका रही है। इंदौर की कपड़ा मिल प्रसिद्ध है तो उसके पीछे सैकड़ों लोगों की मेहनत है जो इसे शहर में स्थापित करने में सफल हुए। ऐसे लोग, जिन्होंने ब्रिज बनवाए। सड़कें बनवाईं। अस्पताल बनवाए।

60 साल में 10 गुना हो गया शहर का विस्तार
ऐसेे उद्योगपति भी शहर का गौरव रहे हैं, जो सबसे पहले गाड़ियों के शोरूम लेकर इंदौर आए। 60 के दशक में इंदौर की आबादी 3 लाख 59 हजार थी। 55.8 वर्ग किमी में शहर फैला था। अब यह तेजी से बढ़ गया है। 550 वर्ग किमी के हिसाब से मास्टर प्लान तैयार हो रहा है।

औद्योगिक क्षेत्र, कपड़ा मिलें, पेयजल से लेकर रेलवे ट्रांसपोर्ट में राजा-महाराजाओं का योगदान

1958 में हुई पोलोग्राउंड औद्योगिक क्षेत्र की शुरुआत

तब… 30 अक्टूबर 1956 में केंद्रीय रक्षा मंत्री महावीर त्यागी ने इंदौर में 3 औद्योगिक क्षेत्रों के विकास का शिलान्यास किया। मार्च 1958 में केंद्रीय वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने पोलो ग्राउंड औद्योगिक क्षेत्र का उद्घाटन किया। इस औद्योगिक इकाई में कई तरह की इंडस्ट्री थी। यह इंदौर शहर की पहली सुव्यवस्थित औद्योगिक बस्ती थी, जिसने इंदौर व इंदौर के आसपास कारीगरों को रोजगार उपलब्ध कराया।

और अब – पोलोग्राउंड में इस समय करीब 200 उद्योग संचालित हो रहे हैं। करीब 5 हजार लोगों को यहां रोजगार मिलता है। मशीनरी के साथ कुछ फार्मा कंपनी भी यहां स्थापित है।

हाथी पर खंडवा से लाए थे मिल की बड़ी-बड़ी मशीनें

तब… पहली कपड़ा मिल यानी पुतलीघर का निर्माण महाराजा तुकोजीराव होलकर ने 1866 में करवाया था, जिस पर आज का न्यू सियागंज स्थापित है। निर्माण के समय हाथी द्वारा खंडवा से मिल की बड़ी-बड़ी मशीनें लाई गई थीं। शहर में द मालवा यूनाइटेड मिल का उद्घाटन 1907 में हुआ था। वहीं 25 मार्च 1916 में 15 लाख से हुकुमचंद मिल का निर्माण किया गया। उसके बाद अन्य मिलें स्थापित हुईं।

और अब – टेक्सटाइल सेक्टर में बड़ी ग्रोथ, परदेशीपुरा क्षेत्र में बना रेडीमेड कॉम्प्लेक्स। पीथमपुर सेंट्रल इंडिया का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बन चुका है। 4 हजार से ज्यादा उद्योग हैं।

1866 में पहली बार इंदौर में नल लगना शुरू हुए थे

तब… 1866 में पहली बार इंदौर (कागदीपुरा) में नल लगना शुरू हुए थे। शहर में पेयजल समस्या के समाधान के लिए ठोस कदम महाराजा यशवंतराव होलकर द्वितीय ने उठाए। 1939 में इंदौर से 15 मील दूर गंभीर नदी पर बांध बनवाया। रोज 70 लाख गैलन पानी लिया जा सकता था। यह चित्र यशवंत सागर के बांध के निर्माण के समय का है, जिसमें स्टेट के इंजीनियर यशवंत सागर बांध का निरीक्षण कर रहे हैं।

और अब – नर्मदा नदी के इंदौर में अब तक तीन चरण आ गए हैं। शहर की 25 लाख से अधिक आबादी को नर्मदा का पानी नलों के माध्यम से सप्लाय किया जा रहा है।

तुकोजीराव द्वितीय के प्रयासों से इंदौर को मिली रेल

तब… होलकर स्टेट रेलवे का निर्माण महाराजा तुकोजीराव द्वितीय द्वारा कराया गया था। पहला ट्रायल 1 जनवरी 1875 में महू से इंदौर के बीच हुआ था। 1877 में यह लाइन संपूर्ण खंडवा से जोड़ दी गई थी। 1878 में इस पर आवागमन शुरू हुआ। पातालपानी के 32 मील की ऊंचाई में कई टनलों के निर्माण में जटिलताएं आईं। इस तरह इंदौर पहली बार रेलवे से कनेक्ट हुआ।

और अब – 70 के दशक के बाद रेल सुविधाओं का तेजी से इजाफा हुआ। इन दिनों शहर में 80 से अधिक ट्रेनें हर दिन आती-जाती हैं। देश के सभी बड़े शहरों से कनेक्टिविटी है।

सुगम यातायात की पहली सीढ़ी – 1953 में मिली थी पहले रेलवे फ्लायओवर की सौगात

तब… इंदौर शहर का पहला रेलवे फ्लायओवर 12 जनवरी 1953 में बनकर तैयार हुआ था। इसका विधिवत उद्घाटन तत्कालीन परिवहन मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने किया था। इसी वजह से इस ब्रिज का नाम शास्त्री ब्रिज पड़ा, जिसने इंदौर शहर के ट्रैफिक को कई दशकों तक संभाला।

और अब – ट्रैफिक सुधार के लिए बायपास पर चार फ्लाय ओवर का निर्माण कार्य शुरू होना है। शहर के भीतर तीन फ्लाय ओवर का काम चल रहा है

व्यवस्थित बसाहट के गौरव – राजबाड़ा के आसपास क्षेत्रों की प्लानिंग, यशवंत सागर डैम की टीम में रहे शामिल

होलकर साम्राज्य में टाउन प्लानर रहे हेमचंद्र डे के योगदान को नहीं भुलाया जा सकता। शहर की सबसे पहली सुनियोजित कॉलोनी मनोरमागंज को बसाने का श्रेय उन्हें ही जाता है। फडनीस कॉलोनी व राजबाड़ा के आसपास क्षेत्रों की प्लानिंग में उनका योगदान रहा। यशवंत सागर डैम जब बनाया जा रहा था, तब वे उस टीम का भी हिस्सा थे। परिवार की डॉ. हीना डे बताती हैं उन्होंने प्लानिंग ऐसी की थी कि किस तरह लोगों के लिए सुविधाएं जुटाई जाएं।

ऑटोमोबाइल लेकर आए – वर्ष 1953 में शहर में कार के शोरूम लाए सांघी मोटर्स और लीलाराम हसीजा

सबसे पहला कार शोरूम सांघी मोटर्स (टाटा का) लेकर आए और लीलाराम हसीजा हिंदुस्तान मोटर्स के डीलर्स रहे। जब आबादी बमुश्किल 5 लाख भी नहीं थी, उस दौर में कार के शोरूम इंदौर में आ चुके थे। यह 1947 से 50 के दशक के बीच की बात है। एकसाथ ही दोनों शोरूम इंदौर में खुले थे। उनके पोते कौशल हसीजा कहते हैं कि उस समय ऐसा लगता भी नहीं था कि यहां गाड़ियां बिक सकती हैं। इंदौर के आसपास के लोग भी खरीदने आते थे। ये शोरूम भोपाल और इंदौर में एकसाथ शुरू किया था।

चिकित्सा में सेवक बने – एमजीएम में मेडिसिन विभाग के पहले प्रोफेसर बने, 60 साल तक सेवा की

डॉ. एसके मुखर्जी। यह नाम मप्र के चिकित्सा क्षेत्र की पहचान रहा है। कोलकाता में 1898 में जन्मे डॉ. संतोष कुमार मुखर्जी ने 1925 में केईएच मेडिकल स्कूल में जॉइन किया था। 1948 में एमजीएम मेडिकल कॉलेज में स्थापित पहले मेडिसिन विभाग में यह प्रोफेसर थे। डॉ. मुखर्जी एकमात्र डॉक्टर हैं, जिनकी मूर्ति एमवायएच में स्थापित है। एमवायएच को स्थापित व विस्तारित करने में योगदान रहा है। उन्होंने केईएच मेडिकल स्कूल को मेडिकल कॉलेज में बदलवाया। चिकित्सा के क्षेत्र में 60 साल तक उन्होंने इंदौर के लोगों की सेवा की।

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