भोपाल

प्रदेश की राजधानी भोपाल में धर्म-धम्म सम्मेलन: राष्ट्रपति बोलीं- जो सब को धारण करे, वही धर्म है, धर्म की आधारशिला मानवता पर टिकी है, राष्ट्रपति बोलीं-

भोपाल डेस्क :

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में कहा, धर्म का जहाज हिलता-डुलता है, लेकिन डूबता नहीं। यह सम्मेलन मानवता की दिशा में एक बड़ी जरूरत को पूरा करने के लिए सार्थक प्रयास है। राज्यपाल ने कहा, यह सम्मेलन युद्ध और पीड़ा से कराहते विश्व को शांति का मार्ग दिखाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, धर्म-धम्म का पहला सिद्धांत सभी जीवों के साथ दया और सम्मान के साथ व्यवहार करना है।

भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे सभागार में हो रहे 7वें अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन में 15 देशों के 350 से ज्यादा विद्वान और 5 देशों के संस्कृति मंत्री शामिल हुए। ‘नए युग में मानववाद’ के सिद्धांत पर केंद्रित सम्मेलन 5 मार्च तक चलेगा। पहले दिन सम्मेलन में संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर और सांची बौद्ध-भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. नीरजा गुप्ता भी शामिल हुईं। धर्म-धम्म के वैश्विक विचारों को मंच प्रदान करने वाले सम्मेलन में भूटान, मंगोलिया, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाइलैंड, वियतनाम, नेपाल, दक्षिण कोरिया, मॉरिशस, रूस, स्पेन, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन की सहभागिता है।

राष्ट्रपति के भाषण की प्रमुख बातें…

जो सब को धारण करे, वही धर्म है

  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा, महर्षि पतंजलि, गुरु नानक, भगवान बुद्ध ने दुख से निकलने के मार्ग सुझाए हैं। मानवता के दुख के कारण का बोध करना और इस दुख को दूर करने का मार्ग दिखाना पूर्व के मानववाद की विशेषता है। ये आज के युग में और अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।
  • महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की पद्धति स्थापित की। भगवान बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग प्रदर्शित किया। गुरु नानक देव जी ने नाम सिमरन का रास्ता सुझाया, जिसके लिए कहा जाता है- नानक नाम जहाज है, चढ़े सो उतरे पार…।
  • कभी-कभी कहा जाता है कि धर्म का जहाज हिलता-डुलता है, लेकिन डूबता नहीं है। धर्म-धम्म की अवधारणा भारत चेतना का मूल स्तर रही है। हमारी परंपरा में कहा गया है- धारयति- इति धर्मः। अर्थात जो सब को धारण करे, वही धर्म है। धर्म की आधारशिला मानवता पर टिकी है।
  • राग और द्वेष से मुक्त होकर, अहिंसा की भावना से व्यक्ति और समाज निर्माण करना पूर्व के मानववाद का प्रमुख संदेश रहा है। नैतिकता पर आधारित व्यक्तिगत आचरण और समाज पूर्व के मानववाद का व्यवहारिक रूप है।

हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव

  • हमारी परंपरा में कहा जाता है कि जिस समाज में धर्म की रक्षा की जाती है, वो समाज भी धर्म को प्राप्त करता है। मुझे यह देखकर गर्व होता है कि हमारे देश की परंपरा में धर्म को समाज व्यवस्था और राजनीतिक कार्यकलापों में प्राचीनकाल से ही केंद्रस्थ स्थान प्राप्त है।
  • आज से 2000 साल पहले हमारे देश में धर्म महात्मा के बोध को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता था। स्वाधीनता के बाद हमने जो लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनाई, उस पर धर्म-धम्म का गहरा प्रभाव है। हमारे राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न को सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है।
  • हमारे राष्ट्रीय ध्वज में धर्म चक्र सुशोभित है। लोकसभा के अध्यक्ष की कुर्सी के पीछे धर्म चक्र प्रवर्तनाय का प्राचीन देव वाक्य अंकित है। ये सारनाथ में दिए गए भगवान बुद्ध के प्रथम प्रवचन की याद दिलाता है। हमारे लोकतंत्र को उस महान शिक्षा से जोड़ता है।
  • राष्ट्रपति भवन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसके सबसे प्रमुख कक्ष में भगवान बुद्ध की लगभग 1500 साल पहले की एक प्रतिमा शोभायमान है, जो अभय मुद्रा में सभी को आशीर्वाद देती है। भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां भी हैं।

महात्मा गांधी बुद्ध के संदेश को प्रसारित करते थे

  • गया में पीपल के जिस वृक्ष के नीचे समाधिस्थ होकर सिद्धार्थ गौतम भगवान बुद्ध बने थे, उसके दो पौधे मंगवाकर राष्ट्रपति भवन में लगाए गए हैं। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ये पौधे लगाए। राष्ट्रपति भवन के स्टेट कॉरिडोर में धर्म-धम्म का कलात्मक रूप देखा जा सकता है।
  • राष्ट्रपति भवन हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है। इसके सबसे प्रमुख कक्ष में भगवान बुद्ध की लगभग 1500 साल पहले की एक प्रतिमा शोभायमान है, जो अभय मुद्रा में सभी को आशीर्वाद देती है। भगवान बुद्ध से जुड़ी अनेक कलाकृतियां भी हैं।
  • महात्मा गांधी ने आदर्श राज्य की अवधारणा को रामराज्य का नाम दिया था। वे भगवान बुद्ध के अहिंसा तथा करुणा के संदेश को अपने जीवन मूल्यों और कार्यों के द्वारा प्रसारित करते थे। उनकी प्रार्थना का आरंभ बोद्ध मंत्र से होता था। गीता और अन्य उपनिषद के श्लोक भी पढ़ते थे।
  • धर्म-धम्म का हमारी परंपरा में सर्वे भवन्तु सुखिनः, भवन्तु सर्व मंगलम … की प्रार्थनाएं हमारे जीवन का हिस्सा रही हैं। यही आज के सबसे बड़े युग की जरूरत भी है। यह सम्मेलन मानवता की दिशा में एक बड़ी जरूरत को पूरा करने के लिए सार्थक प्रयास है।

राज्यपाल बोले, सम्मेलन का उद्देश्य दो सभ्यताओं के बीच सद्भाव बढ़ाना

  • राज्यपाल मंगुभाई पटेल ने कहा, हमारे देश की सदियों पुरानी परंपरा विश्व जाति और मानव जाति के कल्याण में विश्वास रखती है। इसे बढ़ावा देती है। हमारी मान्यता इस विश्वास में निहित है कि विश्व सबके लिए है, युद्ध की कोई आवश्यकता नहीं है। मानवता के कल्याण के लिए शांति, प्रेम और विश्वास जरूरी है।
  • ऋषियों का चिंतन ही आज के समय में समाधान का रास्ता प्रस्तुत करता है। इस सम्मेलन का उद्देश्य दो प्राचीन सभ्यताओं के बीच सद्भाव को बढ़ा देना है। मुझे उम्मीद है कि यह सम्मेलन युद्ध और पीड़ा से कराहते विश्व को शांति का मार्ग दिखाने में सक्षम होगा।

मुख्यमंत्री बोले, हम सभी में एक ही चेतना…

  • सम्मेलन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा, यह मध्यप्रदेश का सौभाग्य है कि धर्म-धम्म सम्मेलन भोपाल में हो रहा है। धर्म-धम्म का पहला सिद्धांत सभी जीवों के साथ दया और सम्मान के साथ व्यवहार करना है। एक ही चेतना सब में है। आज विद्वानों के चिंतन से जो अमृत निकलेगा, मुझे विश्वास है कि वो विश्व को दिग्दर्शन देगा।
  • भारत अत्यंत प्राचीन और महान राष्ट्र है। एक ही चेतना समस्त जड़ और चेतन में विद्यमान है, यही भारत का मूल चिंतन है। इसीलिए भारत में कहा गया- सियाराम मय सब जग जानी, अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।
  • भगवान बुद्ध ने कहा- युद्ध नहीं शांति, घृणा नहीं प्रेम, संघर्ष नहीं समन्वय, शत्रुता नहीं मित्रता…। यही वो मार्ग है, जो भौतिकता की अग्नि में दग्ध विश्व मानवता को शांति का दिग्दर्शन कराएगा। भारत के गांव-गांव में बच्चा-बच्चा यह उद्घोष करता है कि धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो।

कई भारत को लूटने आए, लेकिन ज्यादातर सीखने आए

  • श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज ने कहा, मैं वेदों, भगवान शंकराचार्य, भगवान बुद्ध और सीखने की भूमि पर आप सभी का स्वागत करता हूं। भारतवर्ष ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भूमि है। कई इस भूमि को लूटने आए, लेकिन ज्यादातर यहां सीखने आए।
  • ये बुद्धिमत्ता की भूमि है। कुछ ने कहा- रोशनी ईस्ट से आती है। लेकिन, स्वामी विवेकानंद ने कहा- ये भारत से आती है। यह रोशनी की भूमि है। ये वो भूमि है, जिसने सभी का स्वागत किया। किसी पर आक्रमण नहीं किया। हमारे द्वार मानवता के लिए हमेशा खुले रहे।
  • धर्म-धम्म साथ आकर भविष्य के विश्व की उम्मीद बनेंगे। अहिंसा का मतलब सिर्फ दूसरे को नुकसान पहुंचाने से रोकना ही नहीं, अपार प्रेम करना भी है। पूरे विश्व को प्यार करना ही अहिंसा है। इसकी आज जरूरत भी है। उम्मीद है यह सम्मेलन मानवता को रोशनी देगा।

दूसरे देशों के संस्कृति मंत्री रखेंगे विचार

शुभारंभ सत्र में श्रीराम जन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज का उद्बोधन हुआ। अतिथि ‘द पेनारोमा ऑफ इंडियन फिलोसफर्स एंड थिंकर्स’ पुस्तक का विमोचन किया गया। पहले दिन के दूसरे-सत्र में इंडिया फाउंडेशन की गवर्निंग काउंसिल के सदस्य राम माधव की अध्यक्षता में मिनिस्टर-सत्र में भूटान, श्रीलंका, नेपाल और इंडोनेशिया के संस्कृति मंत्री विचार रखेंगे।

4 मुख्य सत्र में 25 विद्वानों का होगा संबोधन

तीन दिवसीय सम्मेलन में 4 मुख्य सत्र होंगे। 25 विद्वान विचार रखेंगे। इसी दौरान 15 समानांतर सत्र भी होंगे, जिसमें सम्मेलन की थीम ‘नए युग में मानववाद का सिद्धांत’ पर केंद्रित 115 शोध-पत्र पढ़े जाएंगे।

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