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रामकथा दूसरा दिन: सूत्रों और मंत्रों को घुट घुट कर जिसने पिया हो, उसने भजन को बहुत घूंटा हो उसी के वचनों मैं विश्वास ही गुरुपूजा है। बापू

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रामकथा के दूसरे दिन स्तुति में प्रवेश करते हुए बापू ने कहा की ये स्तुति के बारे में भी हमें ज्ञान है।। बालकांड प्रथम सोपान में विश्वामित्र भगवान राम और लक्ष्मण को मांगने दशरथ के पास आए।। दोनों भाई विश्वामित्र के यज्ञ के बाद जनकपुर में एक धनुष यज्ञ था वहां जा रहे हैं।। सुंदर सदन में निवास करने के बाद दूसरे दिन गुरु के लिए पुष्पवाटिका में फूल चुनने जाते हैं।।उसी वक्त सीता जी गौरी पूजन के लिए आ रही है।।बापू ने कहा कि मैं बार-बार कहता रहा हूं हमारे देश के युवकों को गुरुपूजन करना चाहिए।।गुरुपूजा व्यक्ति पूजा नहीं है और व्यक्ति पूजा गुरु पूजा नहीं है।।गुरु को व्यक्ति मानना अपराध है व्यक्ति को गुरु कहना भी अपराध है।। जिस अनुभव से भजन पुरुष को कुछ मिला है उसी सूत्रों और वचनों की सेवा वही गुरुपूजा है।। बनारस या अयोध्या कोई की घटना है।।एक युवा महात्मा रोज शाम को स्नान के लिए जाते हैं, उसी जगह गणिका की कोठी। हर रोज गणिका ऊपर से पूछती है: है युवा महात्मा! आप कच्चे हो कि पक्के हो? साधु पवित्र भाव से रोज देखता, कुछ बोलता नहीं।।एक दिन नहीं आया,छ महीने तक चला था, मालूम हुआ कि साधु समाधि लेने वाला है।। साधु ने कहा कि मुझे उसी रास्ते पर से ले चलो, और वहीं फिर एक बार गणिका ने पूछा:कच्चे हो की पक्के? साधु ने कहा कि आज मैं पक्का हुं।आखिर एक ही प्रायश्चित हुआ। अपना धंधा छोड़कर साधु की कुटिया के पास बैठ गई।।गुरु पूजा में कलयुग है कौन सच्चा कौन पक्का वो मालूम नहीं।। लेकिन सूत्रों और मंत्रों को घुट घुट कर जिसने पिया हो, उसने भजन को बहुत घूंटा हो उसी के वचनों मैं विश्वास।। सनातन धर्म में राम कृष्ण शिव दुर्गा सूर्य ये परम तत्व है। लेकिन केंद्र में सीताराम है।।हमारे देश के युवतिओं को गौरी पूजा करनी चाहिए, विवाहिता माता सब कर सकती हैं।। युवान शिव उपासक, शक्ति दुर्गा उपासक हो।।


ये स्तुति में २० पंक्ति है।। वैसे दुर्गा बीस भुजाओं वाली हम मानते हैं।। मानों एक-एक पंक्ति एक-एक भूजा का संकेत करती है।।हमारे यहां प्रार्थना,स्तुति, स्तोत्र सब हम बोलते हैं।। स्तुति के आठ लक्षण हैं।। किसी भी देवता गुरु की वंदना विनती प्रार्थना स्तुति के आठ लक्षण को ध्यान में रखना चाहिए।। ईश्वर और देवताओं की स्तुति ज्यादातर अष्टक के रूप में आई है।।जैसे दुर्गाअष्टक,रुद्राष्टक,भवानी अष्टक, वल्लभाचार्य ने मधुराष्टक।।ये आठ स्तुति की विधा दिखाते हैं।।स्तुति खुशामत या झूठी प्रशंसा के लिए या अपनी मांग प्रधान न बन जाए सबसे बचते हुए आठ बाबत देखनी चाहिए।। एक-जो भी देवता की स्तुति करें विनय के रूप में होनी चाहिए।।अविनय और हुकुम नहीं।। आर्द्र भाव से करना चाहिए। अहंकार से नहीं।। आजकल बहुत लोग विनय के बदले अहंकार से गुरु की महिमा का काम करते हैं।। दूसरा-स्तुति प्रीति प्रधान होनी चाहिए।। कभी-कभी किसी को मजाक के रूप में-आप कर्ण के अवतार हैं, जगड़ु शाह के अवतार हैं,भामाशाह है ऐसा कहते हैं! तीसरा-श्रेय के लिए स्तुति होनी चाहिए,प्रेय-लाभ के लिए नहीं।। श्रेय का मतलब है: कल्याण।।सर्वे भवंतु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया-ये श्रयेष्कर है। सभी के श्रेय में हमारा श्रेय भी आ जाता है।।
बापू ने कहा इस सर्वजन सुखाय के साथ अब- सर्वभूत सुखाय,सर्वभूत हिताय,सर्वभूत प्रिताय भी होना चाहिए।। क्योंकि हमने जल, प्रकृति, जंगल प्राणी सब को प्रदूषित किया है।।चौथा है- खुशामत के लिए नहीं करना चाहिए।। पांचवा- पवित्र भाव से स्तुति होनी चाहिए।। बहुत भजन ऐसे हैं जो एकांत में किसी कोने में बैठकर गाने योग्य है।। छठा है- नकल – गतानुगतिकता नहीं। सबको अपनी निजता होनी चाहिए।। आजकल नकल शुरू हुई है।। सातवां- अपेक्षा मुक्त स्तुति होनी चाहिए और आठवां-श्रद्धा के साथ स्तुति होनी चाहिए।।
बापू ने कहा आनन,षडानन, मुखचंद्र के सभी में मुख की बात है।।अप्रगट बात गुरु मुख से ही प्रकट होती है।।
फिर आज बापू ने मनसुखराम मास्तर की कहानी, बड़ोदरा के पास छाणी के मनसुखराम मास्तर के जीवन में बनी एक सत्यघटना की बात भाव से कही और कथा के क्रम में आगे चले।।

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