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काम की गुणवत्ता से खिलवाड़: न बारिश, न तूफान, फिर भी धंसा ब्रॉडगेज, आड़ी हो गई रेल लाइन

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खंडवा-अकोला सेक्शन में टाकल और गुड़ीखेड़ा स्टेशन के बीच पिपलौद-खास के पास ब्रॉडगेज का हिस्सा धंसने से रेलवे लाइन आड़ी हो गई। निर्माण के दौरान बिना किसी बारिश और तूफान के रिटेनिंग वॉल टूटने और ट्रैक के धंसने की घटना हुई। बंद रेलवे ट्रैक होने के कारण कोई जनहानि नहीं हुई, जबकि ट्रैक से कुछ देर पहले ही नई रेल लाइन लेकर मालगाड़ी गुजरी थी। यदि उस दौरान ट्रैक धंसता हो बड़ा हादसा हो सकता था।

इधर, ट्रैक के किनारे बनी कांंक्रीट की दीवार में सरिया न होना निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल खड़े कर रहा है। नई रेल लाइन निर्माण के दौरान लगभग 500 से 700 मीटर ट्रैक क्षतिग्रस्त हुआ है, वहीं 2.5 किमी रेलवे ट्रैक को नुकसान पहुंचने का अनुमान है। इससे लगभग 10 करोड़ रुपए की राशि की रेलवे को हानि हुई है।

गौरतलब है कि साउथ सेंट्रल रेलवे नांदेड मंडल‎ खंडवा-अकोला के बीच ब्रॉडगेज कन्वर्जन का काम कर रहा है। रेलवे ने ट्रैक निर्माण के लिए सूर्य नारायण रेड्डी कंपनी को ठेका दिया है। कंपनी पांच साल से ट्रैक का निर्माण कर रही है। रेलवे ट्रैक निर्माण के दौरान पहले भी कमियां सामने आई हैं।

इधर, हादसे के बाद रेलवे के अधिकारी मामले पर कुछ बोलने के बजाय उसे दबाने में जुटे रहे। सूर्य नारायण रेड्डी कंपनी के प्रोजेक्ट इंचार्ज प्रदीप रेड्डी ने बताया दीवार की दूसरी तरफ खेत की ओर से मुरम का दबाव नहीं था। दीवार के गिरने का मुख्य कारण ऊंचाई का ज्यादा होना है।

सीआरएस की तैयारी

दिसंबर तक खंडवा-अमूल्ला खुर्द ट्रैक के सीआरएस निरीक्षण की चल रही थी तैयारी साउथ सेंट्रल रेलवे नांदेड मंडल‎ ने ब्रॉडगेज ट्रैक का सीआरएस निरीक्षण दिसंबर-2023 में कराने की तैयारी कर रहा था। इसके लिए खंडवा से अमूल्ला खुर्द रेलवे ट्रैक का‎ निर्माण नवंबर-2023 और खंडवा-गुड़ी ट्रैक के लिए‎ जून महीने की डेडलाइन मंडल‎ ने निर्माण कंपनी को दी थी। खंडवा से वाया गुड़ी‎ अमूल्लाखुर्द तक ट्रैक की लंबाई‎ 52 किमी है। इधर, एससीआर‎ ने खंडवा यार्ड में रेलवे ओवर‎ ब्रिज से घासपुरा-गणगौर घाट‎ की ओर काम कर रहा है। पिछले महीने प्लेटफाॅर्म नंबर-5 को अकोला‎ रूट से जोड़ दिया गया है।

“रेलवे लाइन के किनारे बनाई गई रिटेनिंग वाॅल के गिरने से यह हादसा हुआ, क्योंकि ट्रैक की ऊंचाई के लिए बनाई दीवार के दूसरे साइड में मुरम का दबाव नहीं होना बताया गया है। हमें खेत की ओर से मुरम पत्थर डालना था, तब दीवार टिकी रहती।”
– आशुतोष कुमार, आईओडब्ल्यू, नांदेड मंडल, साउथ सेंट्रल रेलवे

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