इंदौर में पंडित प्रदीप मिश्रा बोले- सनातन सबका पिता: कहा- जो सनातनी है वो हमारे लिए सर्वोपरि है
इंदौरियों को बताया मस्त
इंदौर डेस्क :
‘सनातन सभी धर्म का मूल है। सभी का पिता है। जितने भी धर्म निकले हैं, सब सनातन धर्म से ही निकले हैं। उस सनातन धर्म की छत्र छाया में हम सब बैठे हैं। जीवन में जब दुख की घड़ी आती है, कोई संकट आता है, तब-तब सनातन धर्म हमारे साथ खड़ा होता है।’
यह कहना है कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा का। वे सोमवार को एक दिन की शिव चर्चा के लिए इंदौर आए थे। इस दौरान प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने सनातन की डेंगू, मलेरिया और कोरोना से तुलना करने वालों को भी जवाब दिया। इंडिया बनाम भारत, वर्तमान राजनीति और राजनीति में संत समाज की हिस्सेदारी पर भी उन्होंने बेबाकी से अपनी बात रखी।
तो वो भी कोरोना की ही औलाद हैं…
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि जो लोग सनातन धर्म को कोरोना, डेंगू या मलेरिया कह रहे हैं। तो पहले उनसे उनके पिता जी का, उनकी माता जी, उनके दादा-परदादा का नाम पूछा जाए। वो पूर्व में क्या रहे हैं। वो भी तो सनातनी ही हैं। अगर वो सनातन को कोरोना कह रहे हैं, तो वो भी कोरोना की ही औलाद हैं। ये तो उन पर निर्भर करता है कि वे अपने पूर्वजों को किस ओर लेकर जाएंगे।
पढ़िए किस विषय पर क्या बोले पं. मिश्रा…
सनातन धर्म पर विवादित टिप्पणी पर
पं. मिश्रा ने कहा कि सनातन धर्म प्रेरणा और संस्कार प्रदान करता है। वर्तमान समय में हमारे बच्चों की परिभाषाएं, रहन-सहन, संस्कार और आचरण बदल रहे हैं। बच्चे अगर आपको फादर-फादर कहेंगे, बिना आपके चरण स्पर्श किए सामने से निकल जाएंगे, आपको सम्मान नहीं देंगे, तो आपको भी बुरा लगेगा, हमें भी बुरा लगेगा।
किस पार्टी के साथ हैं?
कांग्रेस और भाजपा नेताओं के लिए कथा करने और समय-समय पर दोनों दलों के नेताओं की तारीफ करने के सवाल पर पं. मिश्रा ने कहा, जो सनातनी है वो हमारे लिए सर्वोपरि है। वो चाहे कांग्रेस से हो या भाजपा हो। मूल चीज ये है कि जो हमारे राष्ट्र के लिए कार्य करे, जो सनातन धर्म के लिए कार्य करे और जो किसी ना किसी रूप में किसी दुखी की आंख का आंसू पोंछने के लिए तत्पर रहे, वो हमारे लिए सर्वोपरि है। उसमें हम ये नहीं देखते कि किस पद पर है, किस पार्टी का है। मूल बात यह है कि वो हमारे सनातन धर्म के लिए कार्य कर रहा है। वो हमारे सनातन धर्म की स्थापना कर रहा है उसे नष्ट नहीं कर रहा।
इंडिया बनाम भारत पर
हाल के दिनों में हमारे देश के नाम इंडिया और भारत को लेकर चल रहे विवाद पर पं. मिश्रा ने कहा, हमारे यहां पहले से ही भारत नाम प्रसिद्ध है। इंडिया तो बाद में उसे लोगों ने धीरे-धीरे जब अंग्रेजों के समय से उपयोग में आया, जब उन्होंने इंडियन कहना प्रारंभ किया, तब लोगों ने इंडिया नाम अपनाया। भारत या भारतीय कहने में अंग्रेजों को शर्मिंदगी होती थी, क्योंकि इस शब्द में बोल्डनेस है, बुलंदी है। कहने में भी व्यक्ति की छाती चौड़ी होती है कि मेरे देश का नाम भारत है और मैं भारतीय हूं।
राजनीति में संतों के आने पर
पं. मिश्रा ने संत की परिभाषा पर चर्चा करते हुए कहा कि संत वो होना चाहिए जो राष्ट्र की बात करे, राष्ट्रहित की बात करे। अपना मठ-मंदिर बनाने के लिए संत राजनीति में आए तो वो संत किसी काम का नहीं है। संत राजनीति में आएं, इसके लिए मना थोड़ी ना है। अगर संत आएंगे राजनीति में तो हमारा सनातन धर्म और मजबूत होगा। लेकिन जरूरी ये है कि वो राष्ट्रहित की बात करें। केवल अपना मठ तैयार करने की या जमीन लेने की बात करेंगे तो कोई मतलब नहीं।
संपूर्ण राष्ट्र को प्रेरणा देने की बात करेंगे तो फिर संत राजनीति में आएं। पूर्व में कई संत राजनीति में आए जिन्होंने केवल अपना ही भरण-पोषण किया और राजनेता बनकर वे अपना ही पेट भरते रहे और जनमानस को कुछ नहीं दिया। वहीं हमारे राष्ट्र के कुछ संत ऐसे भी हैं, उप्र में बैठे हैं आदरणीय योगी जी वो प्रेरणा देते हैं। कुछ संत ऐसे भी हैं जो प्रेरणा प्रदान करते हैं कि हमें केवल जनमानस के लिए, राष्ट्रहित के लिए कार्य करना है।