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मध्यप्रदेश स्थापना दिवस: आखिर कैसा अस्तित्व में आया, कितने राज्यों के विलय के बाद बना मध्य प्रदेश, पहले मुख्यमंत्री बने थे पंडित रविशंकर शुक्ला

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देश का दिल मध्यप्रदेश 1 नवंबर 2022 यानी आज अपना 67वां स्थापना दिवस मना रहा है। चार राज्यों महाकौशल, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल को मिलाकर मध्यप्रदेश बनाया गया। 1956 में गठन से लेकर आज तक प्रदेश का सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा हैं। प्रदेश ने भयंकर गैस त्रासदी देखी, तो गौरवान्वित करने वाले पल भी देखे।

इन 66 वर्षों में प्रदेश में 19 मुख्यमंत्री भी रहे। इनमें कुछ दो से तीन बार सीएम रहे। सबसे ज्यादा चार बार सीएम रहने का रिकॉर्ड शिवराज सिंह चौहान के नाम है। प्रदेश के पहले मुख्यंमत्री के रूप में पंडित रविशंकर शुक्ल ने शपथ ली थी। उनके पहले सीएम बनने की कहानी भी दिलचस्प है।

पहले जानते हैं प्रदेश के सीएम पंडित रविशंकर शुक्ल की कहानी

पंडित रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1877 को सागर में हुआ था। प्राथमिक शिक्षा सागर में हुई। 1898 में अमरावती में हुए कांग्रेस के 13वें अधिवेशन में पंडित शुक्ल ने पहली बार शिक्षक के साथ भाग लिया था। 1906 में वकालत शुरू की। देश को आजाद कराने में वह वकालत छोड़कर गांधीजी के असहयोग आंदोलन में शामिल हो गए। आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। 1930 में उन्हें 3 साल की सजा भी हुई। जब मध्यप्रदेश अस्तित्व में आया, तो मध्य प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल चारों राज्यों में सबसे सीनियर नेता थे।

ऐसे में सर्वसम्मति से उन्हें कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना गया। वे पुनर्गठित मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने। मप्र में विलय होने वाले चारों राज्यों की विधानसभाओं में कांग्रेस की पूर्ण बहुमत की सरकार थी। पहली विधानसभा में किसी भी विपक्षी दल के विधायकों की संख्या इतनी नहीं थी कि उनके नेता को मान्यता प्राप्त ‘नेता प्रतिपक्ष’ का दर्जा मिल पाता।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक विजय दत्त श्रीधर बताते हैं कि भोपाल के मिंटो हॉल (वर्तमान में नाम बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर) में 31 अक्टूबर 1956 की मध्यरात्रि में पहली सरकार का शपथ ग्रहण समारोह हुआ। पहले राज्यपाल डॉ. पट्‌टाभि सीतारमैया को मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्ला ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके बाद राज्यपाल ने पं. रविशंकर शुक्ल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई।

पं. रविशंकर शुक्ल के साथ तख्तमल जैन, शंभुनाथ शुक्ल, डॉ. शंकरदयाल शर्मा, मिश्रीलाल गंगवाल, भगवंतराव मंडलोई, शंकरलाल तिवारी, वीवी द्रविड़, राजा नरेशचंद्र सिंह, मौलाना तरजी मशरिकी, गणेशराम अनंत और रानी पद्मावती देवी को मंत्री पद की शपथ दिलाई। नरसिंहराव दीक्षित, राजा वीरेंद्र बहादुर सिंह, केएल गुमास्ता, सज्जन सिंह विश्नार, अब्दुल कादिर सिद्दीकी, मथुरा प्रसाद दुबे, जगमोहन दास, सवाई सिंह सिसोदिया, दशरथ जैन, श्यामसुंदर नारायण मुशरान और शिवभानु सिंह सोलंकी को उपमंत्री बनाया गया। 1956 में अस्तित्व में आई पहली विधानसभा मात्र चार महीने ही चल पाई।

जब शपथ के वक्त चौंक गए थे पंडित शुक्ल

1 नवंबर 1956 को जिस समय मध्यप्रदेश का जन्म हुआ, उस दिन अमावस्या की रात थी। शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था, तभी किसी ने याद दिलाया कि ‘आज तो अमावस्या की रात है’। इसके बाद शपथ ले रहे शुक्ल पहले तो थोड़ा असहज हुए, फिर बोले ‘पर इस अंधेरे को मिटाने के लिए हजारों दीये तो जल रहे हैं’। वह शपथ वाली रात दीपावली की भी रात थी।

उसी शाम को शुक्ल पुराने मध्यप्रदेश की राजधानी नागपुर से भोपाल, जीटी एक्सप्रेस के प्रथम श्रेणी के कूपे में बैठकर पहुंचे थे। उनका जगह-जगह पर स्वागत हुआ। इटारसी रेलवे स्टेशन पर शुक्ल का ऐतिहासिक अभिनंदन किया गया। जब वे भोपाल पहुंचे, तो स्टेशन से उन्हें जुलूस की शक्ल में ले जाया गया।

पहले मंत्रिमंडल में 12 कैबिनेट और 11 उपमंत्री

1952 के पहले आम चुनाव में मध्यप्रांत, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल राज्य की विधानसभाओं के लिए चुने गए थे। वहीं, एक नवंबर 1956 को नवगठित मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य थे। 16 अक्टूबर 1956 को मध्यप्रांत की राजधानी नागपुर में इन चारों विधानसभाओं के कांग्रेस विधायकों की संयुक्त बैठक कुंजीलाल दुबे की अध्यक्षता में हुई। कांग्रेस के कुल 274 विधायकों में से 212 विधायक इस बैठक में मौजूद थे। कांग्रेस के महासचिव श्रीमन्नारायण पर्यवेक्षक थे। पहले मंत्रिमंडल में 12 कैबिनेट और 11 उपमंत्री थे।

दो महीने बाद हार्ट अटैक से निधन

अगले विधानसभा चुनाव की टिकट के सिलसिले में पं. रविशंकर शुक्ल दिल्ली गए थे। 31 दिसंबर 1956 को वहां दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह मात्र दो महीने ही सीएम रह पाए। पं. शुक्ल के बाद सबसे वरिष्ठ विधायक भगवंतराव मंडलोई को मुख्यमंत्री बनाया गया। बाद में चुनाव हुए और कैलाश नाथ काटजू को सीएम बनाया गया।

अब जानते हैं के प्रदेश के गठन की कहानी...

आजादी के छह साल बाद भाषायी आधार पर प्रांतों के पुनर्गठन के लिए 1953 में न्यायमूर्ति फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग बनाया गया। आयोग के सदस्यों (केएम पणिक्कर और हृदयनाथ कुंजरू) ने महाकौशल, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल का दौरा किया। 9 अक्टूबर 1955 को कांग्रेस कार्यसमिति ने आयोग की रिपोर्ट पर सहमति की मुहर लगा दी। 10 अक्टूबर 1955 को राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट पब्लिश हुई।

वरिष्ठ जानकर बताते हैं कि मप्र के गठन का किस्सा भी दिलचस्प है। प्रदेश चार राज्यों को मिलाकर बनाया गया है। मध्य प्रांत- इसमें विदर्भ वाला हिस्सा महाराष्ट्र में चला गया। महाकौशल और छत्तीसगढ़ (पहले इसे दक्षिण कौशल कहते थे)।

ब्रिटिश शासन से भी अस्तित्व में था मध्यप्रदेश

वैसे तो मध्यप्रदेश का अस्तित्व ब्रिटिश शासन से ही था। तब इसे सेंट्रल इंडिया के नाम से जाना जाता था। जो पार्ट ए, पार्ट बी और पार्ट सी भाग में बंटा था, जबकि राजधानी भोपाल में गर्वनर नहीं, बल्कि चीफ कमिश्नर हुआ करते थे। पार्ट-ए की राजधानी नागपुर थी। इसमें बुंदेलखंड और छत्तीसगढ़ की रियासतें शामिल थीं। इसी तरह पार्ट-बी की राजधानी ग्वालियर और इंदौर थी, इसमें मालवा-निमाड़ की रियासतें शामिल थीं।

चारों राज्यों के विलय के दौरान मध्यप्रांत के 150 विधायक, मध्यभारत के 88, विंध्यप्रदेश के 60 और भोपाल के 30 विधायकों समेत 328 विधायकों से मप्र की विधानसभा बनी। राज्य पुनर्गठन आयोग को सभी सिफारिशों पर विचार-विमर्श करने में करीब 34 महीने यानी ढाई साल लग गए। तब जाकर मध्यप्रदेश का असली स्वरूप सामने आया।

नए राज्य के गठन में कई मोड़ भी आए

उस वक्त तत्कालीन महाकौशल राज्य का नेतृत्व मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल और महाकौशल कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सेठ गोविंददास कर रहे थे। मध्यभारत के नेता मुख्यमंत्री तख्तमल जैन और मिश्रीलाल गंगवाल थे। वे मध्यभारत को अलग राज्य बनाए रखने के पक्ष में थे। इन नेताओं की इच्छा थी कि भोपाल राज्य का विलय मध्यभारत में कर दिया जाए। मध्यभारत के दो पूर्व मुख्यमंत्री लीलाधर जोशी और गोपीकृष्ण विजयवर्गीय मध्यप्रदेश के गठन के पक्ष में थे।

आखिरकार 30 अप्रैल 1956 को राज्य पुनर्गठन विधेयक संसद में पेश किया गया। 11 सितम्बर को विधेयक पारित हुआ। 1 नवंबर 1956 को नया मध्यप्रदेश अस्तित्व में आ गया।

भोपाल राजधानी की दिलचस्प कहानी

भोपाल के मुख्यमंत्री डॉ. शंकरदयाल शर्मा नए मध्यप्रदेश के खिलाफ नहीं थे। उनकी रणनीति थी कि भोपाल मध्यप्रदेश की राजधानी बने। विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शंभुनाथ शुक्ल और दूसरे बड़े नेता कप्तान अवधेश प्रताप सिंह थे। विंध्य अंचल में पृथक राज्य बनाए रखने या उत्तर प्रदेश में विलय की इच्छा थी, लेकिन राज्य पुनर्गठन आयोग की रिपोर्ट के बाद उन्होंने नए मध्यप्रदेश को स्वीकार कर लिया। आयोग ने नए प्रदेश की राजधानी के लिए जबलपुर की अनुशंसा की थी, परंतु मौलाना अबुल कलाम आजाद के समर्थन से भोपाल को राजधानी बनाने का निर्णय किया गया।

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