मध्यप्रदेश विधानसभा में नियमों के विरुद्ध 65 की उम्र के बाद दे दी संविदा नियुक्ति: राज्यपाल से शिकायत
भोपाल डेस्क :
मप्र विधानसभा में संविदा नियुक्ति को लेकर मामला पेचीदा हो गया है। विधानसभा में सचिव शिशिरकांत चौबे की आयु 65 साल होने के बावजूद उन्हें संविदा नियुक्ति दे दी गई है। इसी तरह अंडर सेक्रेटरी से रिटायर हुए रमेश चंद्र रूपला को पहले तो दो साल की सेवावृद्धि दी गई और बाद में आगे संविदा नियुक्ति दे दी गई है।
इस मामले की शिकायत राज्यपाल को सौंपी गई है। हालाकि इस मामले में विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का कहना है कि संविदा नियुक्ति में कहीं कोई नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ है। राजस्थान और उत्तरप्रदेश में सचिव 70 साल के हैं तो मप्र में क्यों नहीं हो सकते।
शिकायत होने पर उन्होंने कहा, शिकायत करने वालों का क्या है, वे करते रहते हैं। दरअसल विधानसभा में सचिव शिशिरकांत चौबे न्यायिक सेवा से सेवानिवृत्त हैं, उनकी जब विधानसभा में नियुक्ति की गई, उस दौरान वित्त विभाग की स्वीकृति नहीं थी। इसलिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार में उन्हें हटा दिया गया था, लेकिन बाद में संविदा पर दोबारा नियुक्ति दे दी गई।
नियम स्पष्ट- 65 की आयु तक ही दी जा सकती है संविदा नियुक्ति
विधि-विधायी विभाग के 22 मार्च 2018 को जारी नोटिफिकेशन में मप्र के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की संविदा नियुक्ति के नियम बताए गए हैं। इसमें स्पष्ट है कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के मामले में संविदा नियुक्ति 65 वर्ष की आयु तक ही दी जा सकती है। इस नियम (4) में तीन प्रकार के पद परिभाषित किए गए हैं जिनमें एेसे पद हैं, जो विभागीय सेट-अप में संविदा के रूप में स्वीकृत हों। या फिर सामान्य प्रशासन विभाग की सहमति से विभागीय सेटअप में नियमित स्थापना में स्वीकृत पद भरे जाने में अपरिहार्य कारणों से एक वर्ष से अधिक लगना संभावित हो।
वित्त विभाग ने जताई थी असहमति
2018 में चौबे को सचिव पद पर संविदा नियुक्ति दी गई थी। नियुक्ति वित्त विभाग की सहमति की प्रत्याशा में दी गई, लेकिन वित्त विभाग ने संविदा नियुक्ति पर असहमति व्यक्त की। तब 2018 में उनकी संविदा नियुक्ति समाप्त कर दी गई। लेकिन, 2020 में दोबारा संविदा नियुक्ति दे दी गई, जबकि वित्त विभाग की इस बारे में सहमति नहीं ली गई। इधर, विधानसभा में सचिव के पद पर कार्यरत वीडी सिंह अनुसूचित जनजाति से हैं। उनकी पदोन्नति पर आपत्ति जताई गई है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण का मामला चल रहा है और पूर्व के आदेशों में पदोन्नति पर रोक है तो पदोन्नति किस आधार पर की गई। हालाकि इस आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि यह पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट के अंतिम आदेश के दायरे में आएगी।