न्यूज़ डेस्क

1921-22 की खुदाई में, दो ‘बौद्ध सभ्यताएँ’ आईं प्रकाश में! : (कृपया अवश्य पढ़ें!)

विद्वान साथी संजय जी की वॉल से पुरातात्विक जानकारी सादर उद्धृत-


न्यूज़ डेस्क :

भारत में रेल की पटरियां बिछाने के लिए पत्थरों की जरूरत थी, एक अंग्रेज इंजीनियर पत्थरों की खोज करता हुआ; ऐसी जगह पहुंचा जंहा जमीन के अंदर पत्थर की ईंट दफन थी। एक स्थानीय नागरिक से जब वह दफन पुरानी ईंटों के बारे में उसने पूछा; तो नागरिक ने बताया; कि-

“वहाँ तो सभी के घर, जमीन के नीचे से निकली दफन ईंटों से ही बने हैं।”

अंग्रेज इंजीनियर के दिमाग में बिजली कौंधी और उसने सोचा; कि जमीन के अंदर ऐसी आधुनिक ईंटें कैसे निकल रही हैं? उसने उस जगह की खुदाई करवाई; तो पता चला; कि जमीन के नीचे तो पूरा का पूरा घर बना हुआ था।

उसके बाद हाल ही (1920) में अंग्रेजी सरकार द्वारा स्थापित “आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया” (भारतीय पुरातत्व विभाग) की देख-रेख में दयाराम साहनी जैसे पुरातत्व वैज्ञानिक ने 1921 में हड़प्पा टीले की खुदाई की और धरती में छिपी प्रचीन ‘सिन्धु सभ्यता’ मिली।

उसके बाद 1922 में पुरातत्व विभाग के पश्चिमी सर्किल के अध्यक्ष राखलदास बनर्जी को सिन्धु नदी के किनारे एक ‘बौद्ध स्तूप’ दिखा, उन्होंने यह सोचकर स्तूप की खुदाई करवाई; कि शायद कुछ बौद्ध धम्म सम्बंधित सामग्री प्राप्त होगी; किन्तु वहाँ तो पूरा मोहनजोदड़ो (मुअन जो-दाडो) ही प्राप्त हो गया।

1921 इसे पूर्व भारत के प्रचीन इतिहास के नाम पर वेद और पुराण ही प्रचलित थे; जिनमें इतिहास नाम मात्र का गल्प कथाएं अधिक भरी पड़ी थी; जिससे प्राचीन इतिहास का जानना बेहद कठिन काम था। उनमें बौद्ध धर्म का थोड़ा बहुत था भी; तो नकारात्मक रूप से, बुद्ध को चोर तक कह दिया गया था।

अंग्रेजों द्वारा सिन्धु सभ्यता की खोज ने भारत का इतिहास सुलेरिया, बेबीलोन व मिश्र की प्राचीन सभ्यताओं के समयकालीन ला खड़ा कर दिया था।

डाक्टर हुंट्ज ने शिलालेख तथा मुद्रालेखों का अध्ययन अध्यक्ष बन ‘भारतीय इतिहास’ में ऐतिहासिक पड़ाव ला दिया, सम्राट अशोक के शिलालेख खोज निकाले गए। बुद्ध के साथ- साथ मौर्य और नन्द-वंश को वैदिक साहित्यों में लुप्त कर दिया गया था, उन्हें; फिर पुनः स्थापित किया जाने लगा।

ब्रिटिश सरकार ने बौद्ध धर्म ग्रन्थों का संग्रह कर उनका अंग्रेजी में अनुवाद छपवाया, शिलालेखों और ऐतिहासिक घटनाओं की खोज की।

तक्षशिला, मथुरा, कोसल, सारनाथ, पाटलिपुत्र, नालन्दा, राजगिरि, साँची, कालीबंग, भरहुत आदि जगहों में से पुरातत्व विभाग ने प्राचीन स्मारक आदि खोज निकाले और हमारे प्रचीन राजनैतिक व सांस्कृतिक इतिहास को सही दिशा दे हजारों साल पीछे स्वर्णिम काल में ले गए।

उन्होंने शाक्य-मुनि को फिर से स्थापित किया, अन्यथा आज भी बुद्ध भारतीयों के लिए लुप्त ही रहते और ‘सिन्धु सभ्यता’ केवल धरती में दफन ईंटों का खंडर होता और सम्राट अशोक के शिलालेख पत्थर के टुकड़े होते और हम अब भी पौराणिक कहानियों में उलझे रहते।

स्त्रोत : भारतीय पुरातत्व विभाग दस्तावेज़ और संबंधित सहित सामग्री।
सन्दर्भ : मोहनजोदड़ो सभ्यता एवं सिंधु घाटी सभ्यता, पुरातात्विक अन्य सामग्री (भारत)

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