टॉप-10 में मप्र की कोई यूनिवर्सिटी नहीं: शोधगंगा में थीसिस लोड करने में इंदौर-ग्वालियर से पिछड़ा बीयू , देशभर की 678 यूनिवर्सिटी शोधगंगा में कर रही हैं कॉन्ट्रीब्यूट
नई दिल्ली डेस्क :
पीएचडी थीसिस की जांच करने के लिए बनाए गए शोधगंगा साॅफ्टवेयर में थीसिस जमा करने के मामले में बीयू प्रदेश की अन्य यूनिवर्सिटी से पिछड़ा हुआ है। यहां हर साल लगभग 300 पीएचडी अवाॅर्ड होने के बाद भी इसकी सत्यता की जांच के लिए शोधगंगा में लोड नहीं किया जा रहा। खास बात यह है कि थीसिस लोड करने में टॉप 10 कांट्रीब्यूटर में मप्र की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है।
इसमें देश भर की 678 यूनिवर्सिटी कांट्रीब्यूट कर रही हैं। प्रदेश में शोधगंगा में थीसिस लोड करने के मामले में इंदौर का देवी अहिल्या विवि (डीएवीवी) आगे है। डीएवीवी ने अब तक सबसे ज्यादा 2269 थीसिस शोधगंगा में अपलोड की हैं। वहीं बीयू ने केवल 110 थीसिस ही इसमें लोड की हैं। हाल में यूजीसी ने भी सभी यूनिवर्सिटी के कुलपतियो को शोधगंगा में थीसिस लोड करने के निर्देश दिए हैं।
जीवाजी, दुर्गावती और एपीएस विश्वविद्यालय भी बीयू से आगे
ग्वालियर की जीवाजी यूनिवर्सिटी और रीवा स्थित अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी (एपीएस) भी शोधगंगा में थीसिस लोड करने के मामले में बीयू से आगे हैं। जीवाजी में 1944 थीसिस लोड की गई हैं, यह प्रदेश में दूसरे स्थान पर है। जबकि एपीएस रीवा ने 528 थीसिस लोड की हैं। वहीं जबलपुर की रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी से 350 थीसिस शोधगंगा में लोड हुई हैं।
विक्रम है पीछे
प्रमुख यूनिवर्सिटी में उज्जैन के विक्रम विवि ही बीयू से मामूली रूप से पीछे है। यहां से 95 थीसिस शोधगंगा में जमा है। टेक्निकल यूनिवर्सिटी में आरजीपीवी ने 345 थीसिस जमा की है जबकि यहां बीयू की तुलना में अपेक्षाकृत कम पीएचडी अवॉर्ड होती हैं।
थीसिस की सत्यता प्रमाणित करता है शोधगंगा
शोधगंगा के माध्यम से यह पता चल जाता है थीसिस की कहीं से नकल तो नहीं की गई है। यह इसकी सत्यता को प्रमाणित करता है। अगर किसी ने नकल कर थीसिस लिखी है तो यह साॅफ्टवेयर पकड़ लेता है। यह वाक्यों के साथ ही शब्दों का भी मिलान करता है। इससे थीसिस की मौलिकता का पता चल जाता है।
बिना लोड किए पीएचडी अवाॅर्ड ही नहीं होना चाहिए
शोधगंगा में पीएचडी थीसिस की सत्यता पता चलती है। यह अनिवार्य होना चाहिए कि जब तक शोधगंगा में पीएचडी की थीसिस लोड न की जाए तब तक पीएचडी अवाॅर्ड भी नहीं हो। यूनिवर्सिटी को इसके लिए यह नियम बनाना चाहिए।
डॉ. एचएस त्रिपाठी, पूर्व रजिस्ट्रार, बीयू