काले पत्थर से निर्मित हैं 11वीं शताब्दी का शिव मंदिर: इसी के नाम पर गांव का नाम पड़ा कालादेव

आनंदपुर डेस्क : सीताराम वाघेला
मध्य प्रदेश के विदिशा ज़िले के आनंदपुर से 12 किलोमीटर दूर ग्राम कालादेव में 11वीं शताब्दी का परमार कालीन शिव मंदिर है। कहा जाता है कि यह मंदिर सैकड़ो बर्ष पुराना है और इस मंदिर का गुंबद नहीं था। काले पत्थर के इस मंदिर की हालत बहुत ही जर्जर थी। और आस-पास की ज़मीन पर भी अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया। बर्ष 2006 में कैबिनेट मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा के प्रयासों से पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को अपने संरक्षण में ले लिया। और बाउंड्री वॉल बनवाकर मंदिर का गुंबज सहित व्यवस्थित रूप से मूर्तियों को स्थापित कराया और एक शानदार गार्डन भी तैयार किया। जिसमें चंदन, पारिजात, पीपल मृगनयनी, बड, शमी सहित अनेकों फल फूल वाले पेड़ पौधे लगाए गए हैं।

राजस्थान के श्री जी मंदिर की तर्ज पर बना है मंदिर
रामेश्वर शर्मा बताते हैं कि यह काला देव का मंदिर राजस्थान में डिग्गी सरकार ( श्री जी) मंदिर की तर्ज पर बना है हमें तो पता नहीं की यह मंदिर कब बना है यहां पर कल्याण जी राव भगवान का मंदिर है मंदिर के अंदर लक्ष्मी जी गणेश जी की पत्थर पर मूर्तियां बनी हुई है उनके सामने ही भगवान शंकर की शिवलिंग स्थापित है। सावन के महीने में यहां पर शिव भक्तों की भीड़ लगती है क्षेत्र में श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक भी माना जाता है।

मंदिर के नाम पर ही पड़ा है गांव का नाम
11वीं शताब्दी के परमार कालीन इस काले पत्थर के मंदिर के नाम पर ही काला देव गांव का नाम पड़ा है। मंदिर के अंदर लक्ष्मी जी गणेश जी की पत्थर पर मूर्तियां बनी हुई हैं उनके सामने भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है मंदिर के प्रत्येक पत्थर में हाथी, सप्त ऋषि सहित विभिन्न प्रकार की मूर्तियां बनी हुई कुछ तो नग्न अवस्था की मूर्तियां भी बनी हुई है।

अनोखा पत्थर मार युद्ध भी होता है
विजयदशमी के दिन ग्राम कालादेव में देशभर में प्रसिद्ध अनोखा गोफान से पत्थर मार युद्ध दशहरे का आयोजन भी किया जाता है। एक तरफ राम सैनिक बीच मैदान में लगे ध्वज की परिक्रमा करने जाते हैं तो दूसरी ओर रावण दल के सैनिक गोफान से पत्थरों की बरसात करते हैं। लेकिन यह पत्थर किसी को नहीं लगता, यदि लगता भी है तो उसको कोई गंभीर चोट नहीं आती। ग्रामीण जन बताते हैं कि नवाबी कल में भी इस अनोखे पत्थर मार युद्ध दशहरे का आयोजन किया जाता था उस समय नवाब साहब के सेनापति को पता चला तो उन्होंने इसे रोकने का प्रयास किया और कहा कि तुम लोग जानबूझकर पत्थर नहीं मारते, उस समय उन्होंने कहा कि यदि आपकी आस्था इतनी ही है तो बंदूक की गोली से निशाना लगाएंगे यदि किसी में बंदूक की गोली लग गई तो यह दशहरा आज से ही बंद हो जाएगा और नहीं लगी तो आप इसी प्रकार दशहरे का आयोजन करते रहना। जब गोली चलाई गई तो किसी भी राम सैनिक को गोली छु भी नहीं पाई तब से ही बड़े स्तर पर इस दशहरे का आयोजन किया जाता है।




