
आनंदपुर डेस्क :
मृत्युभोज एक ऐसी प्रथा है जिसे व्यक्ति न चाहते हुए भी करने को मजबूर हैं। प्राचीन काल में इसे आरंभ करने कुछ कारण थे। किंतु अब इसे जीवित रखने का कोई ओचित्य नहीं। इन्हीं सब कारणों से अनेक समाजों में अब इसके विरोध में आवाज उठने लगी है। जिसका हालिया उदाहरण आनंदपुर कस्बा में भी देखने को मिला। जहां पर 72 वर्षीय मृतक के परिजनों द्वारा मृत्युभोज ना करवाने का संकल्प लिया। मृतक खिलान सिंह के ज्येष्ठ पुत्र धर्मेंद्र द्वारा बतलाया की मेरे पिताजी का देहांत गुरुवार को हो गया था। मेरे फुफेरे भाई धर्मेंद्र पाटीदार जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं जो नशामुक्ति और मृत्युभोज से संबंधित समाज को लगातार जागरूक करने के कार्य करते हैं। हमने यह निर्णय उन्हीं के कहने पर लिया है। नसोवर्री निवासी जगदीश बाबू पटेल ने कहा की मृतक मेरे परिवार से ही हैं। मैं अक्सर मीडिया और सोशल मीडिया मृत्युभोज से संबंधित खबर पढ़ता था। एवम अनेकों बार समाज की बैठकों में भी इसे त्यागने की चर्चाएं हुईं। किंतु ऐसा संभव हमारे परिवार या समाज में प्रथम बार हुआ। मोहनपुर निवासी विक्रम सिंह भी पाटीदार परिवार के इस निर्णय से संतुष्ट दिखे। उन्होंने कहा की मृतक मेरे फूफाजी थे उनके परिजनों ने समय के साथ सराहनीय निर्णय लिया है। जो समाज के अन्य वर्गों के लिए प्रेरित करेगा। कस्बा के ही राजेंद्र लोधी ऊर्फ डॉक्टर भिंडिया भी मृतक के परिजनों के इस निर्णय से संतुष्ट दिखे। उन्होंने कहा की मृत्युभोज समाज में एक अभिशाप की तरह है। जिसके कारण अनेकों बार व्यक्ति कर्जा में तक डूब जाता है। मृतक खिलान सिंह मेरे पड़ोसी थे। उनकी अंत्येष्टि में मैं भी सम्मिलित हुआ था। मुक्तिधाम में आयोजित हुई शोकसभा में मृतक के भानेज और कस्बा के प्रमुख समाजसेवी धर्मेंद्र पाटीदार द्वारा मृत्युभोज ना करवाने के संबंध में जब उपस्थित जन समूह के समक्ष प्रस्ताव रखा तो मैने भी उसका समर्थन किया। इस अवसर पर राजपुर के निरपाल पटेल, रामनगर से हीरालाल सहित अनेक समाजजन उपस्थित रहे।