मणिपुर हिंसा में आदिवासियों की हत्या और दो आदिवासी युवतियों का गैंगरेप कर निर्वस्त्र परेड कराने के विरोध में निकाला मसाला जुलूस: राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन
वायरल वीडियो 2 महीना पुराना बताया जा रहा है
न्यूज़ डेस्क :
मणिपुर में दो युवतियों का गैंगरेप व निर्वस्त्र कर सार्वजनिक रूप से परेड कराने और हिंसा में आदिवासी समुदाय के लोगों की निर्मम हत्या के विरोध में मध्यप्रदेश के विदिशा जिले की लटेरी तहसील में आदिवासी समुदाय सहित अन्य सामाजिक संगठनों के सैकड़ो लोगों ने काली पट्टियां बांधकर एक मसाल जुलूस निकाला।
यह मसाल जुलूस लटेरी नगर के प्रमुख मार्गो सहित मुख्य बाजार से होता हुआ थाना परिसर पहुंचा जहां पर थाना प्रभारी को देश की महामहिमा राष्ट्रपति के नाम एक ज्ञापन सौंपा गया।
ज्ञापन के माध्यम से बताया गया है कि गत 3 मई से मणिपुर में भड़की हिंसा ढाई माह बाद भी थमने का नाम नहीं ले रही। आधिकारिक मीडिया आंखड़ो के अनुसार अभी तक मृतकों की संख्या 160 से अधिक, 419 घायलों की संख्या सार्वजनिक की गई है। जिसमें बड़े बुजुर्ग महिला बच्चे आदि सम्मिलित हैं।
मणिपुर एक शांतिप्रिय आदिवासी बहुल प्रदेश है जहां 40% आबादी आदिवासी है और वहां के कई क्षेत्र पांचवी अनुसूची अंतर्गत आते हैं विगत दिनों ही हिंसा में हुए एक अमानवीय शर्मनाक वीडियो जो अभी वायरल है के माध्यम से ज्ञात हुआ कि दो आदिवासी युवतियों को सरेआम सार्वजनिक रूप से सैकड़ो की संख्या में एकत्रित हुए लोगों द्वारा निर्वस्त्र कर परेड कराई जा रही है। इस दौरान शामिल लोगों द्वारा उक्त दोनों महिलाओं के गुप्तांग से छेड़छाड़ करते स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं।
वीडियो इतना शर्मिंदगी भरा है कि मानवता को तार-तार करता हुआ आदिवासी समाज को विश्व पटेल पर बदनाम करता है। इससे देश की साफ सुरक्षा व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है।
जानकारी के अनुसार यह घटना मई महीने की है जिसमें कुछ पुरुष असहाय महिलाओं के साथ छेड़छाड़ करते दिखे, जबकि महिलाएं रोती और गुहार लगाती नजर आई। बताया जा रहा है कि यह घटना चार मई की है।
घृणित घटना राजधानी इंफाल से 35 किलोमीटर दूर कांगपोकपी जिले में हुई है।
घटना का वीडियो असहनीय होकर देखने में नहीं आता और स्थानीय शासन शासन की लापरवाही को उजागर करता है वह की बदनाम कानून व्यवस्था सरकार की निरंकुशता को दर्शाता है क्योंकि आरोपी को वीडियो वायरल करने के बाद स्वयं माननीय सुप्रीम कोर्ट के सीजी देश के मननीय प्रधानमंत्री सहित संपूर्ण जिम्मेदारों ने सख्त कदम उठाने की बात कहने पर एकमात्र आरोपी की गिरफ्तारी की जाती है। जबकि यह अमानवीय कृत्य दो माह पूर्व का है। इससे साबित होता है कि शासन स्तर पर भी इस हेतु कोई प्रयास नहीं किए गए।
चूंकि आप देश के सर्वोच्च पद पर महामहिम राष्ट्रपति और मणिपुर राज्य की महा महिमा राजपाल महोदय भी आदिवासी समुदाय से हो तो आपकी जिम्मेदारी दुगनी हो जाती है।
संविधान की पांचवी एवं छठवीं अनुसूची आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी आबादी के हितों संबंधी रक्षा करता है पांचवी अनुसूची क्षेत्र के आदिवासियों के हितों संबंधी रक्षा हेतु राज्य के राज्यपाल के पास विशेष संवैधानिक शक्तियों व जिम्मेदारियां होती हैं जिम्मेदारियां में राज्य सरकार के लिए विधायिका के कृत्य के प्रभाव को प्रतिबंधित करने के आदेश जारी करना भी शामिल है जबकि छठी अनुसूची में स्वशासन है जनजातीय समुदाय को अपनी स्थितियों पर नियंत्रण दिया गया है जिसमें कानून बनाने सामाजिक ढांचा का विकास संबंधी केंद्र सरकार से धन प्राप्त करने की स्वतंत्रता भी शामिल है अनुसूचित क्षेत्र के संरक्षण के तौर पर महामहिम राज्यपाल सार्वजनिक सूचना द्वारा यह निर्देश दे सकते हैं कि संसद या राज्य विधान मंडल का कोई भी विशेष अधिनियम राज्य के राज्यों के किसी भी अनुसूचित क्षेत्र या उसके भूभाग पर लागू नहीं होगा या राज्य के किसी हिस्से को अपवादों और संसाधनों के अधीन किया जा सकता है महा महिमा राज्यपाल के किसी भी क्षेत्र के शांति और अच्छी सरकार के लिए नियम बना सकते हैं जो फिलहाल अनुसूचित क्षेत्र में है।
महामहिमा मई माह में भड़की हिंसा के एक दिन पहले मुख्यमंत्री वीरेंद्र सिंह का बयान भी सुर्खियों में रहा है जिसमें वह कह रहे हैं मणिपुर म्यांमार से बड़े पैमाने पर अवैध प्रवासन हुआ है के खतरे का सामना कर रहा है उन्होंने कहा अप्रवासियों की जांच के लिए गठित समिति ने 2000 से अधिक म्यांमार के लोगों की पहचान की है जो अपने देश में संघर्ष के कारण मणिपुर आ गए हैं उन्होंने ऐसे लोगों की जांच करवाने की बात भी कही थी।
उनके इस बयान के एक दिन बाद ही 3 मई को मेटेई समाज को st का दर्जा देने के विरोध कुकी आदिवासियों का प्रदर्शन था और इस दौरान वह हिंसा भड़क उठी जिसका परिणाम आज पूरा देश देख रहा है।
एक गैर जिम्मेदाराना बयान और शासन के चलते आज संपूर्ण मणिपुर जल रहा है जानकारी अनुसार 50000 से अधिक लोगों ने अपना घर छोड़ दिया। 17000 घर जलकर राख हो गए। 250 से अधिक धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया गया। हिंसा की भयावहता ने आदिवासियों को घरों से बेघर कर सड़कों पर ला दिया। आज हजारों आदिवासी जंगलों पहाड़ों से होकर भूखे प्यासे बच्चों बड़े बुजुर्ग महिलाओं के साथ उसे जगह से बाहर निकालने के लिए भाग खड़े हुए हैं।
हिंसा सुनियोजित प्रतीत होती है। धार्मिक स्थलों से छेड़छाड़ आदिवासी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ उनका बलात्कार फिर हत्या जैसे मामलों में संपूर्ण आदिवासी समाज को झकझोर कर रख दिया है।
महामहिम राष्ट्रपति महोदय महामहिमा राजपाल महोदय आप आदिवासी क्षेत्र अनुसूचित क्षेत्र के संवैधानिक संरक्षक हैं पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के मामलों में भलाई के लिए निर्णय लेने की स्वतंत्रता स्थानीय सरकार या राज्यपाल पर निर्भर करती है इस संविधान में किसी बात के होते हुए ही राज्यपाल सार्वजनिक सूचना द्वारा यह निर्देश दे सकते हैं कि संसद या राज्य विधान मंडल का कोई विशेष अधिनियम राज्य के किसी अनुसूचित अनुसूचित क्षेत्र या उसके किसी भू भाग पर लागू नहीं होगा या किसी अनुसूचित क्षेत्र द्वारा लागू नहीं होगा या राज्य के राज्य में उसके किसी भी हिस्से में ऐसे अपवादों और संशोधनों संसाधनों के अधीन किया जा सकता है जैसा कि वह अनुचित सूचना में निर्देश कर सकता है और इस उप पैराग्राफ के तहत दिए गए किसी भी निर्देश को पूर्व व्यापी प्रभाव के लिए दिया जा सकता है।
राजपाल किसी राज्य के किसी भी क्षेत्र की शांति और अच्छी सरकार के लिए नियम बना सकता है जो फिलहाल अनुसूचित क्षेत्र में है आप महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा एवं महामहिम राज्यपाल महोदय से आदिवासी समुदाय उपरोक्त बिंदुवार घटनाक्रम को संज्ञान में लेकर अपनी संवैधानिक शक्तियों का उपयोग करते हुए मणिपुर हिंसा में शामिल प्रत्येक दोषियों पर देशद्रोही के मुकदमे चलाए जाएं। गैंगरेप कर परेड करवाने वाले छेड़छाड़ करने वाले दोषियों को फांसी की सजा दिलवाई जाए।
साथ ही राज्य सरकार की लापरवाही पर भी कड़े कदम उठाकर नुकसान की भरपाई और बेघर आदिवासियों की ससम्मान वापस घर/भूखंड उपलब्ध कराने हेतु शक्ति से त्वरित कार्रवाई हो। इनके बिंदुसार निवेदन के साथ संपूर्ण आदिवासी समाज आपकी और आशान्वित होकर कार्यवाई की रहा देख रहा है।
देश प्रदेश में लगातार बढ़ते आदिवासियों पर अत्याचार शोषण बलात्कार हत्याकांड आदि से प्रताड़ित होकर आदिवासियों में आक्रोश व्याप्त है अतः त्वरित कार्यवाही करने का अनुरोध है। ना होने की दशा में आदिवासियों द्वारा विभिन्न सामाजिक संगठनों के बैनर तले आव्हान कर संपूर्ण भारत बंद कर आंदोलन करने के लिए मजबूर होगा जिसकी जिम्मेदारी शासन प्रशासन की रहेगी।