
भोपाल डेस्क :
मध्य प्रदेश का राज्य सूचना आयोग पिछले करीब चार महीने से बंद पड़ा है। यहां मार्च तक मुख्य सूचना आयुक्त और सभी सूचना आयुक्तों का कार्यकाल पूरा होने के बाद से नई नियुक्तियां ही नहीं हुई हैं। इस बीच रोज 50-60 नई अपीलें लंबित हो रही हैं। मार्च में यहां लंबित प्रकरणों की संख्या करीब 5 हजार थी, जो चार महीने में बढ़कर 14 हजार के आसपास पहुंच गई है।
10 साल में पहली बार ऐसी स्थिति बनी है, जब जब आयोग में सुनवाई के लिए एक भी आयुक्त नहीं है। सूचना अधिकार कानून के मुताबिक यदि आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और एक सूचना आयुक्त नहीं हैं, तो इसका मतलब आयोग है ही नहीं। मप्र के अलावा झारखंड, त्रिपुरा, गोवा और तेलंगाना में भी सूचना आयुक्तों के सभी पद खाली पड़े हैं।
चुनावों के बीच सरकार ने मांगी थी अनुमति
लोकसभा चुनावों के दौरान मप्र सरकार ने आयेाग में खाली पड़े पदों को भरने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग की अनुमति ली थी। प्रक्रिया शुरू हुई तो सरकार को राज्य सूचना आयुक्त के लिए 185 और मुख्य सूचना आयुक्त के 59 आवेदन मिले। लेकिन, चुनाव होने के बाद केंद्र में नई सरकार का गठन भी हो गया, पर सूचना आयोग में पद अभी खाली ही पड़े हैं। दिल्ली की आरटीआई एक्टिविस्ट और सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान की सदस्य अंजलि भारद्वाज ने 28 जुलाई को ही मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष को आयोग के पद भरने के लिए एक पत्र भेजा है।
प्रक्रिया चल रही…
^सूचना आयुक्तों के पद भरने की प्रक्रिया चल रही है। यह कब तक पूरी हो पाएगी, यह मैं नहीं कह सकता।
– मनीष रस्तोगी, प्रमुख सचिव सामान्य प्रशासन विभाग
वंचित कर रही सरकार
^मुख्य सूचना आयुक्त और कम से कम एक सूचना आयुक्त होना जरूरी है। राज्य सरकार गठन नहीं कर रही है वह लोगों को सूचना के अधिकार से वंचित कर रही है। सत्यानंद मिश्रा, पूर्व सूचना आयुक्त, केंद्रीय सूचना आयोग



