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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन में पाया कि भारत में हर साल करीब 50 लाख मौतें मेडिकल नेग्लिजेंस की वजह से होती हैं

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5 साल पहले यानी वर्ष 2017 में अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने एक अध्ययन में पाया कि भारत में हर साल करीब 50 लाख मौतें मेडिकल नेग्लिजेंस की वजह से होती हैं। देश के हेल्थ सिस्टम पर इस स्टडी ने बहुत बड़े सवाल खड़े किए। लेकिन आज भी स्थिति में कोई बड़ा सुधार हुआ हो ऐसा नहीं लगता।

इलाज में लापरवाही करने वालों पर अगर आरोप साबित हो भी जाएं तो महज छह महीने की जेल या फिर 500 रुपए जुर्माना देने भर से ही आरोपी राहत पा लेते हैं। सवाल है कि मेडिकल नेग्लिजेंस करने वालों पर लगाम कैसे लगेगी।

आइए, सबसे पहले मेडिकल नेग्लिजेंस के इन मामलों को पढ़ लेते हैं।

केस-1

चेन्नई के एक सरकारी अस्पताल में 15 नवंबर 2022 को फुटबॉलर की सर्जरी के बाद हालत बिगड़ने से मौत हो गई। ग्रेजुएशन फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट प्रिया के दाहिने घुटने का लिगामेंट फट गया था, जिसके लिए चेन्नई के एक सरकारी अस्पताल में उनकी आर्थोस्कोपी सर्जरी की गई। लेकिन सर्जरी के कुछ घंटों बाद उन्होंने पैर में सूजन और दर्द की शिकायत की।

प्रिया को पेन किलर दिया गया लेकिन उनकी हालत बिगड़ती गई। ब्लड क्लॉट का संदेह होने पर उन्हें चेन्नई के राजीव गांधी सरकारी अस्पताल (RGGH) ले जाया गया, जहां उन्हें बचाया नहीं जा सका।

तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री मा सुब्रमण्यन ने आरोप लगाया कि डॉक्टरों की लापरवाही से प्रिया की मौत हुई। उनका कहना था, ‘सर्जरी के बाद खून रोकने के लिए लगाया गया कम्प्रेशन बैंड बहुत टाइट था जिससे ब्लड सर्कुलेशन ठीक से नहीं हो पाया। इस वजह से प्रिया की जान गई।’

केस-2

इसी तरह, उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज में 22 नवंबर को डिलीवरी के लिए आई एक महिला को डॉक्टरों ने घंटों सिर्फ इसलिए नहीं छुआ क्योंकि वह एचआईवी पॉजिटिव थी। इस डॉक्टरी लापरवाही के कारण इस महिला के बच्चे ने जन्म लेने के कुछ देर बाद ही दम तोड़ दिया।

मेडिकल नेग्लिजेंस’ के इन केस में कोई फर्जी डॉक्टर या स्टाफ शामिल नहीं थे बल्कि सरकारी मेडिकल या फिर मान्यताप्राप्त प्राइवेट हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने ऐसा किया, जो गंभीर सवाल खड़े करता है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर साल मेडिकल नेग्लिजेंस की वजह से 50 लाख लोगों की जान चली जाती है। सवाल है-डॉक्टर ऐसी लापरवाही करें तो इसके लिए क्या उन्हें कोई सजा है?आखिर मेडिकल नेग्लिजेंस क्या है?अगर किसी डॉक्टर-नर्स या मेडिकल स्टाफ की लापरवाही और गलत इलाज की वजह से किसी मरीज की जान चली जाए या उसके शरीर को नुकसान हो तो उसे मेडिकल नेग्लिजेंस कहा जाता है।जब एक डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ या हेल्थकेयर इंस्टीट्यूट मरीज की देखरेख, डायग्नोज या इलाज करते समय जरूरी स्टैंडर्ड नहीं अपनाते हैं तो ऐसे मामले सामने आते हैं। इसे मेडिकल मैलप्रैक्टिस (Medical Malpractice) के तौर पर जाना जाता है।नई दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ. सुरनजीत चटर्जी कहते हैं कि मेडिकल नेग्लिजेंस के मामलों को पूरी तरह जाने बिना उस पर कोई कमेंट करना ठीक नहीं।डॉ. सुरनजीत चटर्जी ने कहा, ‘अस्पताल में किसी की जान जाती है तो वो केवल डॉक्टर की लापरवाही के कारण नहीं होती, उसके कई पहलू होते हैं। पहले इन्वेस्टिगेशन (जांच) रिपोर्ट के आने का इंतजार करना चाहिए। वैसे कोई भी प्रोफेशनल जानबूझ कर मरीज के कॉम्प्लिकेशन को नजरअंदाज नहीं करता। इसके बावजूद भी मेडिकल नेग्लिजेंस की आशंका रहती है।’

मेडिकल नेग्लिजेंस होने की मूल वजह क्या हैरिटायर्ड डिप्टी सीएमओ डॉ.एम.एस. चौहान के मुताबिक, डॉक्टरों की लापरवाही के पीछे कई तरह के कारण हो सकते हैं। डॉक्टर ने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं समझा या फिर एक मेडिकल प्रोफेशनल के तौर पर उसकी जानकारी कम थी, जिस वजह से वह बीमारी की पहचान ठीक से नहीं कर पाया।ऑपरेशन के दौरान एनेस्थीसियोलॉजिस्ट की भूमिका सबसे अहम होती है। इसके बाद सर्जन और मेडिकल स्टाफ का रोल मायने रखता है। इन सब स्थितियों में सही वक्त और सही निर्णय बेहद अहम होता है। इनमें थोड़ी सी चूक ही मेडिकल नेग्लिजेंस की वजह बनती है।आइए सबसे पहले समझते हैं वे बातें जो आपको इलाज के दौरान ध्यान में रखनी चाहिए-आपको इलाज से जुड़े हर डॉक्यूमेंट को संभालकर रखना है।डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ के प्रेस्क्रिप्शन और निर्देशों को लिखित में लेना है।हर एक दवाई की प्रॉपर डिटेल्स अपने पास रखनी हैं।मरीज के टेस्ट और सर्जरी की जानकारी और उससे जुड़ी सभी रिपोर्ट संभाल कर रखनी हैं।मान लीजिए आपके पास मरीज के इलाज से जुड़ी कोई जानकारी नहीं है तो आप मेडिकल प्रशासन से आरटीआई (RTI) के जरिए जानकारी ले सकते हैं।अगर किसी के साथ मेडिकल नेग्लिजेंस का मामला सामने आता है तो क्या करें?दिल्ली, कड़कड़डूमा कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे एडवोकेट दिलीप कुमार से मेडिकल नेग्लिजेंस की शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया समझते हैं।एडवोकेट दिलीप कुमार ने बताया कि सबसे पहले हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को लिखित शिकायत दी जाती है। उसी कंप्लेन की एक कॉपी चीफ मेडिकल ऑफिसर (CMO) को देनी होगी।अगर इसके बाद आप किसी तरह की कार्रवाई या जवाब से संतुष्ट नहीं हैं तो आप अपने राज्य की मेडिकल काउंसिल में शिकायत कर सकते हैं।

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