‘बेटी की पेटी’ योजना: पहल सफल होती, उससे पहले ही पुलिस ने खुद ही बेटियों के भरोसे को तोड़ दिया
41 जगह लगाई थी ‘बेटी की पेटी
ग्वालियर डेस्क :
स्कूल, कॉलेज और कोचिंग जाने वाली लड़कियों का भरोसा व विश्वास जीतने के लिए पुलिस ने चार साल पहले ‘बेटी की पेटी’ योजना इसलिए शुरू की थी कि वे अपने साथ आए दिन होती छेड़खानी, फब्तियां व अन्य तरह के शोषण की शिकायत बिना संकोच के कर सकें। लेकिन यह पहल सफल होती, उससे पहले ही पुलिस ने खुद ही बेटियों के भरोसे को तोड़ दिया। स्थिति यह है कि शहर के जिन 41 स्थानों पर बेटी की पेटी लगाई गई थी, वहां पर कई पेटी खुली पड़ी है, कहीं उस पर लगे ताले में जंग लगी हुई है और कहीं पेटी सिर्फ धागे से बंधी हुई है।
कुल मिलाकर पूरी कवायद औपचारिकता से अधिक कुछ नहीं है। केआरजी कॉलेज की एक छात्रा ने नाम ने बताने की शर्त पर बताया कि लड़कियां अपनी समस्याएं कहां बताएं? पुलिसवाले सुनते नहीं हैं, सुनते भी हैं तो प्रश्न इतने होते हैं कि खुद को ही शर्म आने लगती है। घर वाले भयभीत हो जाते हैं, समाज के लोग सुनेंगे नहीं
शहर में इन स्थानों पर पुलिस ने रखवाईं थीं बेटी की पेटी
शहर में प्रेस्टीज कॉलेज में 1, मुरार गर्ल्स कॉलेज में 1, एमिटी यूनिवर्सिटी में 1, आईएचएम में 1, रायसिंह का बाग कोचिंग एरिया में 3, पड़ाव कोचिंग एरिया में 8, कंपू पर 8, थाटीपुर पर 8, माधौगंज पर 8 पेटी लगवाई थीं।
जानिए… कहां-क्या है ‘बेटी की पेटी’ की स्थिति
कॉर्मल कॉन्वेंट स्कूल
इस स्कूल की बाहरी दीवार पर गुलाबी रंग की यह पेटी लगी हुई है, जिसमें ताला भी नहीं है, जबकि हरे रंग की प्लास्टिक की डोरी से पेटी को बांध दिया गया है। आसपास पूछने पर पता चला कि छात्राएं इसमें शिकायत ताे डालती हैं लेकिन पिछले एक साल से कोई भी पुलिसकर्मी पेटी को खोलने के लिए नहीं आया।
शा. गजराराजा स्कूल
महाराज बाड़ा स्थित शासकीय गजराराजा स्कूल के बाहर पेटी नहीं थी। कैंपस के अंदर जाने पर एक दीवार पर पेटी लगी हुई दिखाई दी। जिस पर जंग लगा हुआ सालों पुराना एक ताला लटका हुआ है। छात्राओं से पूछने पर पता चला कि उन्होंने इस पेटी में कई बार शिकायत डाली, लेकिन निदान कभी नहीं हुआ।
पदमा सीएम राइज स्कूल
कंपू स्थित पदमा स्कूल में तीन से चार ‘बेटी की पेटी’ लगाई गईं थी, लेकिन एक साल बाद मेन गेट पर लगाई गई पेटिका को हटा दिया गया। पीछे कैंटीन के बगल में लगी हुई पेटी खुली हुई थी, उसमें कोई शिकायत पत्र नहीं था। छात्राओं ने बताया कि उन्हें नहीं पता कि यह बेटी की पेटी है या कुछ और।
केआरजी कॉलेज
कॉलेज में प्राचार्य कक्ष के बाहर ‘बेटी की पेटी’ लगी हुई है। इसमें ताला डला हुआ है और उस ताले पर सफेद रंग का कागज चिपकाकर उसे सील किया गया है, जिससे केवल उसे पुलिस ही खोल पाए। छात्राओं ने बताया कि पुलिसने एकाध बार पेटी तो खोली, लेकिन समस्या का निदान कभी नहीं किया।
यह थी योजना
अधिकांश लड़कियां समाज और पुलिस के सवालों के डर से अपनी शिकायत थाने में दर्ज नहीं करना चाहती हैं। इसलिए बेटी की पेटी योजना को वर्ष 2019 में तत्कालीन एडीजी रामबाबू सिंह ने शुरू किया था। इन पेटियों को गर्ल्स स्कूल, कॉलेज और कोचिंग परिसर के आसपास लगाया गया था। हर सप्ताह इनको संबंधित क्षेत्र का टीआई खोलता था। शिकायत के आधार पर आवारा और मनचले लड़कों पर कार्यवाही होती थी। महिला सुरक्षा के लिए इन पेटियों को पिंक थीम पर डिजाइन किया गया था। एडीजी रामबाबू सिंह के स्थानांतरण होने के बाद यह योजना सिर्फ औपचारिकता मात्र बनकर रह गई।
पुलिस प्राथमिकता से संचालित करे योजना
जो बेटियां अपनी समस्या किसी से कह नहीं पाती थीं, उनके लिए वरदान थी यह योजना। मैं स्वयं इस योजना को मॉनीटर करता था। बेटियां को अपना नाम तक लिखने की जरूरत नहीं होती थी और हफ्ते में एक बार हमारी टीम स्कूलों में जाकर पेटी खोलकर लेटर लाती थी और बेटियों की शिकायतों पर तत्काल कार्यवाही होती थी। इससे शहर सुरक्षित था और बेटियों में हिम्मत जाग्रत हो गई थी। इसे प्राथमिकता से संचालित करने की जरूरत है।
-राजाबाबू सिंह, पूर्व एडीजी पुलिस
हमारी टीम जल्द ही स्कीम को फिर से शुरू करेगी
हमारी टीम जल्द ही इस योजना को बेटियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए रेगुलर ढंग से मॉनीटरिंग करेगी। इसके लिए स्कूल और काॅलेजों में छात्राओं को जागरूक किया जाएगा।
-हिना खान, डीएसपी महिला अपराध