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भारत जोड़ो यात्रा: पर्दे के पीछे का हीरो कौन और किसने बनाई राहुल की यात्रा की प्लानिंग, आइए जानते हैं भारत जोड़ो यात्रा के डायरेक्टर की कहानी

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राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा 2 हजार किलोमीटर का सफर पूरा करने के बाद मध्यप्रदेश से होकर गुजर रही है। इस यात्रा की पूरी प्लानिंग और रणनीति पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तैयार की है। इसके पहले दिग्विजय नर्मदा परिक्रमा कर मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी करा चुके हैं। 6 से ज्यादा प्रदेशों में प्रभारी रहे दिग्विजय को देश की राजनीति की भी समझ है। यह यात्रा 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से राहुल गांधी के लिए महत्वपूर्ण है। दिग्विजय सिंह ने कहा है कि राहुल गांधी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का प्रतीक बन गए हैं। यात्रा के बाद वह नए अवतार में नजर आएंगे।

दिग्गी को पता है कठिनाइयां और चुनौतियां

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं कि कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का बतौर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री लंबा राजनीतिक अनुभव है। इसके अलावा नर्मदा यात्रा में एक यात्री के तौर पर भी उन्हें खासा तजुर्बा है। 2017 में नर्मदा यात्रा के दौरान दिग्विजय को जो भी अनुभव मिले होंगे। संभव है कि जरूर उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल किए होंगे, जिससे राहुल की यह यात्रा आसान हो सके। दिग्विजय सिंह को पता है कि एक यात्रा के दौरान कैसी कठिनाई आती है और किस तरह की चुनौतियां सामने होती हैं। इसके अलावा कैसे जमीनी स्तर का इनपुट जुटाया जा सकता है। 

हिंदी पट्‌टी में भारत यात्रा के लिए बड़ी चुनौती

राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि भारत जोड़ो यात्रा की रणनीति काफी सोच-समझकर बनाई गई है। इसका उद्देश्य यह है कि राहुल ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिल सकें और पूरे भारत को समग्रता से समझ सकें। इसके साथ वे अपनी सोच और विजन के बारे में लोगों को बताएं, जिससे उनके बारे में प्रचलित भ्रांतियां खत्म हों। यह रणनीति कितनी कारगर होगी, इसका आकलन करना अभी मुश्किल है। अभी यात्रा का दक्षिण भारत में एक पड़ाव पूरा हुआ है और मप्र का पूरा होने को है। हिंदी पट्‌टी में 2019 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद से कांग्रेस पार्टी लगातार पतन की ओर जा रही है।

110 सीटों से होकर गुजरी थी नर्मदा परिक्रमा

हालांकि दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा राजनीतिक यात्रा नहीं थी। वह केवल एक या दो प्रदेश तक सीमित होकर एक आध्यात्मिक यात्रा थी। इस दौरान वे साधु संतों से मिलते थे। गांवों में प्रवास करते थे और साधारण भोजन करते थे। सिंह की यात्रा मध्यप्रदेश के करीब 110 विधानसभा सीटों से होकर गुजरी थी। जिस भी क्षेत्र से नर्मदा यात्रा गुजरती थी, वहां के कार्यकर्ता और नेता सिंह से मिलने आ जाते थे। वे सामान्य चर्चा में ही जमीनी हकीकत का जायजा ले लेते थे। साथ ही, कांग्रेस की स्थिति का आकलन भी करते थे। कहीं न कहीं 2018 चुनावों में दिग्विजय सिंह के इस होमवर्क का नतीजा भी कांग्रेस को मिला, जिससे पार्टी सत्ता पर काबिज हो सकी।

1000 से ज्यादा आवेदन आए थे

भारत जोड़ो यात्रा के संयोजक भी दिग्विजय सिंह हैं। वे सिर्फ यात्रा में साथ ही नहीं चल रहे हैं, बल्कि इस यात्रा में राहुल गांधी के साथ चलने वाले भारत यात्रियों के चयन की जिम्मेदारी भी उन्होंने ही निभाई थी। 1000 से ज्यादा लोगों ने भारत जोड़ो यात्रा में राहुल के साथ चलने के लिए आवेदन किया था। उनमें से 120 यात्रियों का चयन हुआ। आवेदकों के इंटरव्यू दिग्विजय ने ही लिए थे। 

देश में उनके समर्थकों का तगड़ा नेटवर्क

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के बाद वे पूरे देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका में रहे। मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद हैं। उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, गोवा समेत कई राज्यों के प्रभारी रहे। छत्तीसगढ़, गुजरात और महाराष्ट्र की राजनीति को भी करीब से समझते हैं। सभी राज्यों में कार्यकर्ताओं और समर्थकों का एक तगड़ा नेटवर्क है, इसलिए भी कांग्रेस पार्टी को एक ऐसा नेता की जरूरत थी जो जमीन पर एक्टिव होकर इस यात्रा को कोऑर्डिनेट कर सके।

राजीव गांधी ने समझाया था कि सियासत में कोई किसी का गुरु नहीं होता

दिग्विजय सिंह को करीब से जानने वाले एक नेता के मुताबिक किस्सा 1987 का है, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। उन्होंने एक दिन अचानक दिग्विजय को दिल्ली बुलाकर बताया कि वे उन्हें मध्यप्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। दिग्विजय ने यह बात अपने राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह को बता दी। इसके बाद तत्काल ही अर्जुन सिंह, राजीव गांधी से मुलाकात करने पहुंच गए थे। राजीव ने इसके बाद दिग्विजय को बुलाकर पूछा कि अर्जुन सिंह को यह बात कैसे पता चली। दिग्गी ने अपनी गलती मान ली। तब राजीव ने उन्हें समझाया था कि सियासत में कोई किसी का गुरु नहीं होता, सब एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी होते हैं। 

कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व के लिए तैयार किया

अल्पसंख्यक समर्थक बयानों के लिए अक्सर विरोधियों के निशाने पर आने वाले दिग्विजय ने ही कांग्रेस को सॉफ्ट हिंदुत्व का रास्ता दिखाया। सोनिया गांधी इसको लेकर असहज थीं, लेकिन दिग्विजय ने उन्हें भी तैयार कर लिया। इसी दौरान उन्होंने सिवनी के पास दिघौरी में तीन शंकराचार्यों को एक मंच पर जमा किया और राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस के लिए अलग रणनीति का रास्ता तैयार किया। दिघौरी में धर्म गुरुओं के मंच पर सोनिया को खड़ा कर दिग्विजय पहली बार यह संदेश देने में सफल रहे थे कि हिंदुत्व पर किसी एक पार्टी का अधिकार नहीं है। वहीं कांग्रेस हिंदुओं की विरोधी नहीं है।

राजस्थान में भी मिल चुका पायलट को यात्रा का फायदा

दिग्विजय सिंह ने 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले नर्मदा यात्रा की थी। इसके जरिए बीजेपी की हिंदुत्व की पॉलिटिक्स को काउंटर करने का दांव सफल रहा था। इसके अलावा दिग्विजय की छवि एक गंभीर राज नेता की भी बनी थी। ऐसे ही सचिन पायलट ने राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के खिलाफ प्रदेश में पदयात्रा कर माहौल बनाया था। इसका नतीजा था कि कांग्रेस दोनों ही राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही हैं।

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