अजब लोग गजब परंपरा: गांव की शादी गांव में, सैकड़ों साल पुरानी परंपरा लेकिन तलाक का एक भी केस नहीं
न्यूज़ डेस्क :
गांव में खुशी का माहौल है। जैसा कि आम शादियों में होता है ठीक वैसा ही। आत्माराम पटेल के यहां से बारात गाजे-बाजे के साथ निकली। 15-20 मकान छोड़कर सुखीराम पटेल के घर जाकर ठहर गई। पहले हमें लगा कि यहां से भी कुछ बाराती शामिल होने वाले हैं। इसके बाद ये बारात निकलेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बारात ने यहीं डेरा डाल दिया। आवभगत शुरू हो गई। दोनों गांववालों के बीच रिश्तेदारी बन गई। ये नजारा है इसी साल जून के आखिरी हफ्ते में हुई एक शादी का।
शहडोल जिले के खन्नाथ गांव में हुई ये कोई पहली शादी नहीं है, जिसमें गांव की रिश्तेदारी गांव में ही कायम हुई हो। यहां के कुर्मी पटेल समुदाय में पिछले 500 बरसों से चली आ रही परंपरा का ही ये एक हिस्सा है। आलम ये है कि गांव के एक व्यक्ति के गांव के दूसरे व्यक्ति से कम से कम तीन-चार रिश्ते हैं। तलाक का एक भी केस अभी तक सामने नहीं आया है। आज बात इसी गजब परंपरा की जिसे सैकड़ों साल से कुर्मी पटेल समुदाय ने सहेजकर रखा है।
क्यों करते हैं गांव की शादी गांव में, पढ़िए पूरी कहानी
शहडोल जिला मुख्यालय से 30 किमी दूर है खन्नाथ गांव। कुर्मी पटेल समुदाय का पूरा गांव आपस में रिश्तेदार है। जब गांव में किसी के यहां कोई आयोजन या विशेष कार्य होता है तो पकवान बनाकर ट्रैक्टर की ट्रॉली में रखा जाता है। निमंत्रण में पूरा गांव उमड़ आता है। दरअसल, इन सबके पीछे गांव में सदियों पुरानी चली आ रही एक परंपरा है। इस अनोखी परंपरा के कारण गांव के लड़के-लड़कियों की शादी गांव में हो रही है। जिस कारण आज पूरा गांव एक-दूसरे का रिश्तेदार बन गया है। हालांकि अब कुछ शादियां गांव के बाहर भी होने लगी हैं, लेकिन उनकी संख्या अभी भी न के बराबर है।
गांव में 60 फीसदी आबादी पटेलों की
ग्रामीणों के अनुसार गांव की गांव में होने वाली शादियों की संख्या 500 के पार जा चुकी हैं। 4 हजार से ज्यादा की आबादी वाले इस गांव की कुल आबादी में से 60 प्रतिशत से ज्यादा पटेल समुदाय के लोग रहते हैं। इस कारण इस गांव को पटेलों का भी गांव कहा जाता है। खन्नाथ समेत आसपास के कुल 8 गांव हैं, जहां पटेल समुदाय की लगभग पूरी रिश्तेदारी जद में आ जाती है। इनमें बोडरी, पिपरिया, खैरहा, नौगांव, चौराडीह, कंचनपुर, बंडी, नदना शामिल है। गांव के बाहर यदि कुछ शादियां होती भी हैं तो इन्हीं गांव से बारात आएगी या जाएगी।
अपना जीवनसाथी चुनने की भी आजादी
खन्नाथ गांव में रहने वाले 81 वर्षीय बुजुर्ग बताते हैं कि हमारे यहां लड़के और लड़कियों की शादी गांव में ही करने की परंपरा 500 साल से ज्यादा पुरानी है। हमारे दादा, परदादा समेत उनके भी परिजनों की शादी गांव में होती थी। उनके बाद आने वाली पुश्तों ने इस परंपरा को आज भी जीवित रखा है।
ऐसा नहीं है कि गांव में ही शादी करने के कारण उनके ऊपर बहुत बंदिशें लगा दी हैं। अगर कोई अपना जोड़ा चुनता है तो गांव के लोग उसकी भावना को समझते हुए उसकी शादी कराते हैं।
गांव के वीरेंद्र पटेल बताते हैं कि हमारे समुदाय में लड़के लड़कियों को गांव में शादी करने की पूरी आजादी दी जाती है। वो अपनी पसंद से अपना जोड़ा चुन सकते हैं। पसंद के बाद लड़के लड़कियां इसकी जानकारी अपने परिजनों को देते हैं, उसके बाद परिजन कुर (कुनबा/गोत्र) इत्यादि देखकर उनकी शादी की तैयारी शुरू कर देते हैं। गांव में हर साल 4 से 5 शादी होती है। जिसमें बारात एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले में निकलती है।
बिना दहेज के ही रिश्ता करते हैं सही-पक्का
खन्नाथ गांव में रहने वाला पटेल समुदाय आज भी दहेज के खिलाफ है। यहां गांव की शादी गांव में बिना दहेज के ही सदियों से होती चली आ रही है। 51 रुपए में तिलक की रस्म अदा कर ली जाती है। गांव के बुजुर्ग प्रीतम पटेल बताते हैं कि जब लड़का और लड़की एक-दूसरे को पसंद कर लेते हैं तो दोनों पक्ष एक-दूसरे को अपने-अपने घर भोज के लिए आमंत्रित करते हैं। भोज के बाद एक-दूसरे को नेग देने की भी परंपरा है। इसके बाद रिश्ते को सही पक्का मान लिया जाता है।
हर घड़ी होते हैं एक-दूसरे के साथ
सदियों पुरानी इस परंपरा को गांव में आज भी जिंदा रखने के कई मायने हैं। ग्रामीणों का मानना है कि शादी गांव में ही करने से उन्हें कई प्रकार के फायदे होते हैं। किसी भी प्रकार के त्योहार, कार्यक्रम, संकट के समय, दुख में वो एक-दूसरे के साथ होते हैं। बात खेती की हो या फिर मजदूरी की दोनों पक्ष एक-दूसरे का हाथ बंटाने में परहेज नहीं करता है। यदि किसी प्रकार की कोई आर्थिक समस्या भी आती है तो एक पक्ष दूसरे पक्ष का खुलकर सहयोग करता है।
तलाक का कोई केस नहीं
गांव के 90 साल के बुजुर्ग बोध प्रसाद पटेल जिन्हें गांव के लोग शादीराम घरजोड़े के नाम से भी पुकारते हैं, बताते हैं कि अकेले मैंने 50 से ज्यादा शादियां गांव की गांव में कराई है। मेरे घर की 18 शादियां इस मोहल्ले से उस मोहल्ले में हुई हैं। हमारे गांव में आज तक तलाक का एक भी मामला सामने नहीं आया है।
यदि किसी कारणवश दंपती के रिश्तों में खटास आती भी है या कोई हादसा हो गया तो सामाजिक बैठक कर उसका फिर से नया रिश्ता बना दिया जाता है।
आर्थिक गतिविधि कम होने से मिलता है बल
गांव के युवा आशीष पटेल बताते हैं कि इस रिवाज के जिंदा होने की मुख्य वजह आर्थिक गणित भी है। गांव की शादी गांव में होने से कम खर्च में शादी हो जाती है। मसलन बारात पैदल ही एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले चली जाती है, रात रुकने के लिए कोई अतिरिक्त व्यवस्था नहीं करना पड़ता है। टेंट, कैटरर भी एक कर लिया जाता है। रिश्तेदार पूरे गांव में होते हैं तो सब आसानी से एक-दूसरे के घर पहुंच जाते हैं। कम खर्च में शादी होने के कारण इस परंपरा को आज भी बल मिल रहा है।