विदिशा

50 साल की विरासत और संस्कृति को बचाए रखने के लिए आदर्श रामलीला मंडल कर रहा संघर्ष

आनंदपुर डेस्क :

आदर्श रामलीला मंडल ग्राम आनंदपुर की 50 साल पुरानी रामलीला विरासत और संस्कृति को बचाने के लिए लगातार जद्दो जहद कर रहा है।
यह रामलीला मंडल सीमित से भी कम संसाधन और व्यवस्थाओं के बीच भी पिछले 50 वर्षों से लगातार आनंदपुर में रामलीला का मंचन कर रहा है आनंदपुर की रामलीला ग्राम ही नहीं बल्कि संपूर्ण ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रसिद्ध है।
एक समय था जब ग्रामीण जनों को खबर लग जाती थी कि आनंदपुर में रामलीला का मंचन होने जा रहा है तो ग्रामीण जन रामलीला देखने के लिए हर हाल में आनंदपुर पहुंच जाते थे समय बीतता गया और इस विरासत को अब बढ़ाने की कवायत शुरू करना पड़ रहा है।
वर्तमान समय में रामलीला मंडल के पास पर्याप्त वस्त्र भी नहीं है ना ही सजावट का सामान लेकिन फिर भी ग्रामीण जन और मंडल के सदस्यों के सहयोग से ही यह रामलीला पिछले 50 वर्षों से निरंतर चल रही है।

50 साल पुरानी है विरासत

रामलीला मंडल के वरिष्ठ कार्यकर्ता राजेंद्र सिंह बघेल ने बताया कि ग्राम में 50 सालों से रामलीला का मंचन हो रहा है जब हमने रामलीला की शुरुआत की थी उस समय ₹5000 के वस्त्र वृंदावन से खरीद कर लाए थे वह वस्त्र पुराने होने के साथ ही जगह-जगह से फट गए इसके बाद संस्कृति मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने भी वर्ष 2011-12 में आदर्श रामलीला मंडल को रामलीला में वस्त्र भेंट किए थे।
आज उन कपड़ों को भी लगभग 12-13 वर्ष हो चुके हैं जगह जगह से फट गए हैं कई वस्त्रो का कलर भी उड़ गया सही से धनुष बाण भी नहीं बचे फिर भी हम गांव की जो एक परंपरा बन गई थी उसी को जीवित रखने के लिए आज भी रामलीला का मंचन कर रहे हैं।

इतने सामान की है आवश्यकता।

समय के अनुसार देखा जाए तो वर्तमान में रामलीला में जो पात्र बनते हैं उनके लिए लगभग 45 जोड़ वस्त्र , एक दर्जन पर्दा, 24 जोड़ मुकुट, 12 धनुष बाण और गधा, त्रिशूल और तलवार आदि की आवश्यकता है।

रामलीला मंडल के वरिष्ठ कार्यकर्ता बिशन सिंह बघेल ने बताया कि यदि यह सारा सामान उपलब्ध हो जाए तो रामलीला में और भी उत्साह से कार्यकर्त्ता काम कर सकेंगे क्योंकि अभी सामान के अभाव में कार्यकर्ता सही तरीके से कार्य नहीं कर पा रहे हैं उनका मन तो है लेकिन जब वस्त्र ही नहीं है समान ही नहीं है तो व्यक्ति अकेला क्या कर सकता है।

पिछले 15 वर्षों से हनुमान जी का रोल अदा कर रहे महेश पाराशर ने बताया कि रामलीला में उत्साह तभी आता है जब सर जरूरी सामान उपलब्ध हो। लेकिन जरूरी सामान न होने के कारण नए पात्र रामलीला में कार्य करने के लिए आगे नहीं आ पा रहे ना ही गवर्नमेंट से कोई फंड मिलता छोटे-मझौले व्यापारी, किसान और मजदूर आपसी जन सहयोग कर गांव की विरासत और संस्कृति को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

नीरज श्रीवास्तव ने बताया कि जब पुराने कलाकार हुआ करते थे जिनमें प्रमुख रूप से दुर्गा प्रसाद महाराज, सरदार सिंह बघेल, प्रेम सिंह बघेल, जय किशन सेन, इनके कई साथी कलाकार तो दुनिया भी छोड़ चुके हैं तब उनमें जो उत्साह रामलीला के प्रति था वह देखते ही बनता था लेकिन नई पीढ़ी में सामान के अभाव में वह कम होता जा रहा है जिसका कारण प्रमुख रूप से वस्त्र, डेकोरेशन, संगीत आदि का अभाव माना जा रहा है।

भरत को अयोध्या का राज और राम को 14 वर्ष का वनवास मांगा।

 

रामलीला के पांचवें दिन राजा दशरथ से महारानी कैकई ने अपने दो वरदान मांगे। महारानी के दो वरदान मांगने से पहले राजा दशरथ से महारानी कैकई ने राम की सौगंध खिलवाई, तब राजा दशरथ ने कहा रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए, यह रघुकुल की रीत है कि अपने प्राण चले जाएं तो भी कोई गम नहीं पर अपना वचन नहीं जाने देते आप दो वरदान मांगो। महारानी के खाने अपने दो वरदान मांगे। जिसमें पहले वरदान में भरत को अयोध्या का राजतिलक और दूसरे वरदान में राम को तपस्वी भेष में 14 वर्ष का वनवास हो यह बात सुनते ही राजा दशरथ मूर्छित होकर गिर जाते हैं और कहते हैं कि हे प्राण प्रिय रानी तू मुझसे मेरे प्राण मांग लेती तो मैं हंसते हुए दे देता लेकिन तूने मुझसे यह क्या मांग लिया।

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