
न्यूज़ डेस्क :
आज 3 जनवरी को भारत की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले की 194वीं जयंती मना रहा है।
सावित्रीबाई फुले का जीवन भारतीय समाज के बदलाव और सामाजिक सुधारों के लिए प्रेरणादायक है। उनका जीवन संघर्ष एक ऐसे समय में हुआ जब समाज में महिलाओं और दलितों के अधिकारों को पूरी तरह से नकारा जाता था। सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर सामाजिक असमानता, जातिवाद, और पितृसत्ता के खिलाफ मजबूत कदम उठाए।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के नायगांव में एक दलित परिवार में हुआ। उस समय लड़कियों की शिक्षा को पाप समझा जाता था, लेकिन उनके पति ज्योतिबा फुले ने उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। सावित्रीबाई ने अपनी शिक्षा पूर्ण कर समाज में महिलाओं और दलितों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया।
महिलाओं की शिक्षा के लिए संघर्ष
सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में पहला महिला विद्यालय स्थापित किया। यह भारत में महिलाओं के लिए पहली स्कूल थी।
जब वह स्कूल पढ़ाने जाती थीं, तो लोग उन पर गंदगी, गोबर और पत्थर फेंकते थे।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और महिलाओं की शिक्षा का प्रचार-प्रसार जारी रखा।
वह खुद अपने स्कूल की पहली शिक्षिका बनीं और महिलाओं को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित किया।
जातिवाद के खिलाफ लड़ाई
सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले ने दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए भी स्कूल खोले।
उन्होंने “सत्यशोधक समाज” की स्थापना की, जो जातिवाद और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ एक आंदोलन था।
सावित्रीबाई ने समाज में व्याप्त छुआछूत और भेदभाव को खत्म करने के लिए कड़ी मेहनत की।
महिलाओं के अधिकार और सुधार कार्य
सावित्रीबाई ने महिलाओं के लिए कई सुधार किए, जैसे:
विधवा पुनर्विवाह को बढ़ावा देना।
बाल विवाह का विरोध।
विधवाओं और गर्भवती महिलाओं को आश्रय प्रदान करना।
विधवाओं के लिए “बालहत्या प्रतिबंध गृह” खोला, जहां उन्हें सुरक्षित रखा जाता था।
मृत्यु और विरासत
सावित्रीबाई फुले ने 10 मार्च 1897 को प्लेग महामारी के दौरान संक्रमित लोगों की सेवा करते हुए अपने प्राण त्याग दिए। उनकी सेवा, शिक्षा और समर्पण आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करती है।
उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका और नारी मुक्ति आंदोलन की अग्रदूत के रूप में याद किया जाता है।
सावित्रीबाई फुले का जीवन हमें सिखाता है कि संघर्ष और साहस से समाज में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं। उनका योगदान न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल है।