भोपाल

हजारों गैस पीड़ितों ने आयुष्मान के फॉर्म भरे, डेढ़ साल बाद भी कार्ड नहीं बने

भोपाल डेस्क :

पिछले साल जनवरी में आयुष्मान योजना में भोपाल गैस पीड़ितों को शामिल किया गया था। इसके बाद गरीबी रेखा से ऊपर आने वाले 18 हजार गैस पीड़ितों ने कार्ड बनवाने के लिए फॉर्म भरे लेकिन एक का भी रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका। बीपीएल श्रेणी के गैस पीड़ितों के कार्ड बने हैं लेकिन इनका आरोप है कि योजना में कई तरह की बीमारियां और सपोर्टिव केयर शामिल नहीं है। इसलिए उन्हें निजी अस्पताल जाने के लिए बोला जाता है। आधिकारिक डाटा के मुताबिक 5.74 लाख लोग 1984 के गैस हादसे के पीड़ित हैं।

अब तक इनका इलाज गैस राहत अस्पतालों और डिस्पेंसरीज में होता रहा है, जो आयुष्मान में शामिल होने के बाद बंद हो गया। जहांगीराबाद निवासी नीलेश दुबे की मां पुष्पा की ब्रेन हेमरेज से कई महीने जूझकर कुछ हफ्ते पहले मौत हो गई। दुबे के मुताबिक आयुष्मान कार्ड के लिए उन्हें अपात्र घोषित कर दिया गया। गैस राहत विभाग से राशि मांगी थी पर नहीं मिली। इसी तरह छोला निवासी शालिनी की मां पुष्पा एंथोनी स्टमक कैंसर से पीड़ित हैं। अब तक जवाहरलाल नेहरू हॉस्पिटल में इलाज मिला पर अस्पताल ने 10 जून को आगे इलाज से मना कर दिया।

सीटी स्कैन, कीमोथेरेपी के साइड इफैक्ट आदि कवर नहीं

गैस पीड़ितों के लिए काम करने वाली रचना ढींगरा का कहना है कि पहले सभी इलाज गैस अस्पतालों में मिल जाते थे। अब कई सपोर्टिव केयर और बीमारियां जैसे सीटी स्कैन, ब्लड कैंसर के लिए ब्लड ट्रांस्फ्यूजन, कीमोथेरेपी के साइड इफैक्ट और स्टमक कैंसर की सपोर्टिव केयर योजना में कवर्ड नहीं है। ढींगरा का आरोप है कि इसके अलावा एक भी गरीबी रेखा से ऊपर वाले परिवार के कार्ड नहीं बन सके हैं। एपीएल मरीजों के इलाज के लिए गैस राहत विभाग की तरफ से राशि सीधे अस्पताल को देने का प्रावधान है लेकिन यह देर से आती है। कई बार मिल भी नहीं पाती। गंभीर बीमारियों में देर से सहायता का मतलब नहीं। गैस पीड़ित संगठन आरोप लगाते हैं कि आज तक गैस पीड़ितों के बीपीएल होने या अन्य डाटा उपलब्ध नहीं है।

अफसर ने स्वीकारी कमी- 18 हजार फॉर्म कई बार केंद्र को भेजे, लेकिन वापस आ गए
सीएमओ गैस रिलीफ डॉ. एसएस राजपूत ने बताया कि बीपीएल से ऊपर पीड़ितों के 18000 फॉर्म भरे और केंद्र को भेजे। कई बार डाटा में गलती होने से वापस आ गया। अभी फिर भेजा है। उम्मीद है, स्वीकृत हो जाएगा। उनके मुताबिक चिह्नित अस्पतालों जवाहरलाल नेहरू, चिरायु और नवोदय में इलाज नहीं मिला तो दूसरी जगह इलाज के लिए राशि जारी कर देते हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई मॉनिटरिंग कमेटी के सचिव डॉ. पंकज शुक्ला ने स्वीकार किया, आयुष्मान में पूरा इलाज कवर्ड नहीं है। ये तथ्य हाई कोर्ट की 11 जुलाई की सुनवाई में देंगे। उन्होंने माना, बीपीएल व अन्य श्रेणी के पीड़ितों का अलग डाटा अभी तक नहीं मिला।

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