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राजगढ़ जिले की खास पहचान: यहां तालाब का आकार चिड़िया जैसा है 1978 में चिड़ी खो को अभ्यारण्य घोषित किया गया, सैकड़ों प्रजाति के जीव दिखते हैं

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चिड़ीखो अभ्यारण्य केवल शहर ही नहीं राजगढ़ जिले की खास पहचान है। कभी उमठ परमार राजवंश की शिकारगाह इस जंगल में थी। बाद में सन 1978 में भारत सरकार ने इसे अभयारण्य घोषित किया और आज यह पूरा वन्य क्षेत्र अलग-अलग प्रजातियों के पशु- पक्षियों और जीव-जंतुओं के आवास की एक सुरक्षित जगह बन गया है। पूरे साल देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग चिड़ीखो की सैर के लिए आते हैं।

यहां प्राकृतिक तालाब है जिसका आकार चिड़िया की तरह दिखाई देता है। इसी के नाम पर इस पूरे जंगल का नाम चिड़ीखो प्रचलित हुआ। तालाब को अतीत में स्थानीय राजवंश ने पक्का भी करवाया था। मध्य प्रदेश का राज्य पक्षी दूधराज भी चिड़ीखो में पाया जाता है। तो अब जब भी आप नरसिंहगढ़ के बाहर फोरलेन से होकर निकलें तो चिड़ीखो जाना ना भूलें। यहां निर्धारित शुल्क पर रात को रुकने की सुविधा भी है और अभयारण्य में घूमने के लिए अलग-अलग श्रेणी के वाहनों के अलग-अलग किराए निर्धारित हैं।

वन्य क्षेत्र का क्षेत्रफल:
57. 197 वर्ग किलोमीटर
तालाब का क्षेत्रफल:
22 हेक्टेयर समुद्र तल से ऊंचाई- 462. 07- 576.08 मीटर
पाए जाने वाले जीव जंतु:
तेंदुआ , लकड़बग्घा , लोमड़ी , अजगर , जंगली सूअर , चीतल , सांभर , नीलगाय , बारहसिंघा , पेंगोलिन , काला हिरण , नेवला , लंगूर , खरगोश , बंदर , गिलहरी , लकड़बग्घा , करैत , कोबरा , जंगली बिल्ली आदि।

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