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MP के लोग अजब, गजब परंपरा: इस गांव में नहीं जलती होली; कभी पूरा गांव जल गया था, कोई घर लौटकर नहीं आया

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मध्यप्रदेश के सागर जिले में एक ऐसा गांव है जहां होली खेली जाती है, लेकिन होलिका दहन नहीं होता। हम बात कर रहे हैं, सागर से 65 किमी दूर देवरी ब्लॉक की ग्राम पंचायत चिरचिरा के आदिवासी बाहुल्य ग्राम हथखोह की। यहां होलिका दहन की रात सन्नाटा पसरा रहता है। ग्रामीणों की मान्यता है कि होलिका दहन किया तो उनके गांव की रक्षक देवी मां रुष्ट हो जाएंगी।

ग्रामीण बताते हैं कि कई साल पहले गांव में होली पर भीषण आग लगी थी। उसे गांव की झारखंडन माता की कृपा से बुझाया जा सका था। लोक मान्यता और अंधविश्वास की बारीक लाइन के बीच झूलती नई पीढ़ी भी कहती है कि हमने गांव में कभी होलिका दहन नहीं देखा। यही वजह है कि इस बार भी इस गांव में होलिका दहन नहीं किया गया। जानते हैं क्या है यह कहानी…

गांव में लग गई थी भीषण आग

दैनिक भास्कर की टीम हथखोह गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने होली न मनाने के पीछे की कहानी सुनाई। यह कहानी एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सुनाई जा रही है। हर बार की तरह नई पीढ़ी अपने पुरखों की कहानी पर भरोसा करती है और होलिका दहन से दूर रहती है। गांव के चंद्रभान लोधी बताते हैं कि मैंने तीन पीढ़ियों से गांव में होलिका दहन होते नहीं देखा। दादा बताते थे कि बहुत साल पहले जब गांव बसा था, उस समय ग्रामीणों ने होली पर्व पर गांव में होलिका दहन की तैयारी की। पूरे गांव के लोग वहां गए, लेकिन वे घर नहीं लौट पाए और गांव के घरों (झोपड़ियों) में आग लग गई।

आग कैसे लगी किसी को पता नहीं चला। आग लगातार बढ़ती जा रही थी। लोग बुझाने का प्रयास कर रहे थे। आग ने विकराल रूप लेते हुए पूरे गांव को चपेट में ले लिया था। आग बुझाने के सारे के सारे जतन विफल हो चुके थे। जब इंसान का बस नहीं चलता तो वो दैवीय शक्ति की शरण लेता है, यहां भी ऐसा ही हुआ। जब आग नहीं बुझी तो सभी गांव वाले पास के जंगल में विराजी मां झारखंडन के दरबार में पहुंचे और विनती करने लगे कि मां आप इस आग को बुझा दो नहीं तो हमारा गांव जल जाएगा। जब गांव ही उजड़ जाएगा तो तुझे पूजने वाला कौन होगा?

लोग बताते हैं कि मां तो मां होती है फिर ये तो हमारी गांव की रक्षक है। मां ने हमारी सुनी और थोड़े से प्रयास के बाद ही आग को बुझा लिया गया। तब से गांव के लोगों ने होलिका दहन करना बंद कर दिया। मान्यता यह भी है कि मां झारखंडन ने गांव वालों को दर्शन देकर कहा था कि कभी होली दहन मत करना।

पड़ोसी गांव गोपालपुरा में होलिका दहन देखने जाते

गांव के कोमल आदिवासी बताते हैं कि होलिका दहन गांव में नहीं होता है, लेकिन होली पर्व पूरा गांव मनाता है। गांव के लोग होलिका दहन की रात पास के गांव गोपालपुरा, चिरचिरा, मुर्रई आदि गांवों में जाते हैं। पड़ोसी गांव के लोगों को भी पता है कि हमारे यहां होलिका दहन नहीं होता, ऐसे वे हमें होली दहन कार्यक्रम में बुलाते हैं। खूब आवभगत करते हैं। हम वहां गाजे-बाजों के साथ होलिका दहन कराते हैं, इसके बाद अपने घर लौटते हैं।

माता को गुलाल चढ़ाने के बाद खेलते हैं होली

आज भी गांव के लोग होलिका दहन करने की बात सुन घबरा जाते हैं। वे कहते हैं कि हमारे गांव में न कभी होलिका दहन हुआ है और न आगे होगा। ग्रामीण मानते हैं कि मां झारखंडन गांव की रक्षा करती हैं। होलिका दहन से माता रुष्ट हो सकती है, इसलिए वे होलिका दहन नहीं करते। धुलेंडी के लिए सुबह से गांव के लोग माता मंदिर पर पहुंचते हैं। जहां फाग गाकर माता को गुलाल चढ़ाते हैं। इसके बाद गांव आकर एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की बधाइयां देते हैं।

गांव के जलने के बाद नया नाम पड़ा हथखोह

ग्राम पंचायत चिरचिटा में ग्राम हथखोह आता है। यह गांव आदिवासी बाहुल्य है। गांव में 80 से अधिक घर हैं। ग्रामीणों के अनुसार वर्षों पहले उनके पूर्वज यहां रहने आए थे। वे टोला बनाकर यहां रहने लगे, जिसके बाद लोग आते गए और बसते गए। धीरे-धीरे टोला गांव में बदल गया। सदियों पहले गांव में होलिका दहन के दिन आग लगी और पूरा गांव धधक उड़ा। आग लगने से गांव खो गया था, इसलिए इस गांव का नाम बाद में हथखोह पड़ा।

घर में परेशानी हो तो भी ग्रामीण अपनी रक्षक के पास जाते हैं

मंदिर में अक्सर कोई न कोई पूजा होती रहती है। लोगों के घर में परेशानी आती है या कोई लगातार बीमार भी रहता है तो गांव के लोग मां झारखंड के मंदिर जाते हैं, यहां मन्नतें मानते हैं। जब सब ठीक हो जाता है तो यहां वे पूजा अर्चना करते हैं। कई लोग भोज भी देते हैं। भूतबाधा जैसी दिक्कतों के लिए यहां के लोग अपनी रक्षक देवी पर भरोसा करते हैं।

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