विदिशा

रामकथा: पक्ष का झंडा और धर्म का दंडा हो वह ग्रुप है,धर्म नहीं है: बापू बोले – अनअधिकारी के हाथ में शास्त्र शस्त्र बन जाता है, अधिकारी के हाथ में शस्त्र भी शास्त्र बन जाता है।

हमारे यहां स्कूल खुलते ही छाप तिलक पकड़वा देते हैं! गुरु स्वाधिनता प्रदान करता है।।
जो विचार जिया ना जाए वह विचार जहर बन जाता है।।

आनंदपुर डेस्क :

सदगुरुदेव की सेवा भूमि साधना भूमि से प्रवाहित रामकथा के दूसरे दिन बहुत सी जिग्यासायें आ रही है।। वैसे कहा गया है संसार में कितने गुरु?मानस के आधार पर देखें, क्योंकि हमें आखिर वहीं देखना है।। श्रुति राम कथा है,हमारा वेद रामकथा है।। वेद की अवहेलना नहीं है।। मानस में गुरु की श्रेणियां है एक है- कुलगुरु।वशिष्ठ कुलगुरू है,यद्यपि वशिष्ठ सब कुछ है।। दूसरा धर्मगुरु- धर्म तो कई है। प्रधान धर्म का उल्लेख किया जाता है सबको धर्म का लेबल लगाना अच्छा नहीं।। पक्ष का झंडा और धर्म का दंडा हो वह ग्रुप है, धर्म नहीं है।। इस्लाम,ईसाई, बौद्ध,जैन और सनातन।। मूल कौन? अपने अपने धर्मगुरु होते हैं।अपने धर्म की शिक्षा सबको देते हैं।। बापू ने रमुज में कहा कि आजकल एक गूगल गुरु है! गुरु पूज्य भी होता है और प्रामाण्य भी होता है।। धर्मगुरु तो कभी-कभी धर्म के लिए बहुत कुछ करता है,अनअधिकारी के हाथ में शास्त्र शस्त्र बन जाता है अधिकारी के हाथ में शस्त्र भी शास्त्र बन जाता है।। शस्त्र तो केवल राम के हाथ में शोभा देता है ऐसा ओशो ने कहा है।।विनोबाजी में एक बात प्यारी कहीं: दो धर्मों के बीच में कभी लड़ाई नहीं होती,दो अधर्म के बीच में ही लड़ाई होती है।।धर्म के नाम पर लड़े तो यह अधर्म ही है।। उपनिषद ने सतगुरु शब्द का प्रयोग किया ही नहीं।। सद्गुरु मध्यकालीन समय में लगाया गया। जब नानक, एकनाथ,कबीर के काल में असद्गुरु भी फूट निकले इसलिए सद शब्द से अलग किया गया है।। एक होता है मंत्रगुरु।जो मंत्र देता है।। आखिर में सद्गुरु है। उसे केंद्र में रखकर हम गा रहे हैं।।सद्गुरु साधु त्रिभुवन गुरु उनके लक्षण ग्रंथों में बताएं है।। लेकिन ग्रंथ गुरु को देखकर लिखता है, गुरु अपने आपको भी पहचान नहीं सकता।। शास्त्र ने कहा वह नहीं लेकिन जो गुरु है वही शास्त्र में लिखा है।। चार बार सद्गुरु शब्द का प्रयोग हुआ है। सद्गुरु के चार लक्षण मैंने अपने गुरु को देख कर पाए हैं: एक- किसी को पराधीन नहीं करता, स्वतंत्र देता है।। मंत्र, कंठी,छाप-तिलक जबरदस्ती थोपेगा नहीं।। हमारे यहां स्कूल खुलते ही छाप तिलक पकड़वा देते हैं।। आज्ञा देते हैं मगर पराधिन नहीं करते।। स्वाधीनता प्रदान करते हैं।। मुक्ति बांटने आया है वह जकड़ रखे तो क्या होगा! दूसरा-कोई भी प्रकार की अपेक्षा नहीं रखता और किसी की उपेक्षा नहीं करता।। तीसरा-शोषण ना करें हमारा पोषण करें।। और चौथा- हमें कभी अरसिक ना होने दे।


तुम ही निवेदित भोजन करहि।
प्रभु प्रसाद नित पट धरहि।।

माता के पेट में बच्चा पैदा होने से पहले ही मर जाए तो जहर फैल जाता है ऐसे ही जो विचार जिया ना जाए वह विचार जहर बन जाता है।। वह मूल सहित नाश करता है।। एक प्रश्न ऐसा भी आया नव दिन हम सुनने जा रहे हैं।।हमारा लक्ष्य क्या है?इश्वर या सद्गुरु?मुझे पूछो तो मेरा अंतिम लक्ष्य मेरा सद्गुरु है।। वहां पहुंचे और बात खत्म! एक साधु पुरुष को किसी ने पूछा कि आई लाइक यू और आई लव यू के बीच में तफावत क्या है? सुबह-सुबह आप बगीचे में जाते हैं गुलाब का फूल देखते हैं और आप बोल उठते हैं आई लाइक यू,और फिर तोड़ देते हैं।। जो तोड़ता है वह लाइक करता है लेकिन यदि आप लव करते हैं तो गुलाब के पौधे को सिंचते हैं।। बापू ने कहा कि कौन सात मुनि?पहले दो बालकांड में आए- याज्ञवल्क्य और भरद्वाज, फिर वशिष्ठ और विश्वामित्र,अत्री और अगत्स्य, सुतीक्षण और लोमेश।। सनकादिक मुनि भी है।। बापू ने एक वार्ता कहीं:
एक बाप की दो बेटी, एक को कुंभार के घर और एक को किसान के घर शादी कराई थी। बाप बेटी के घर गया किसान के घर की बेटी ने कहा कि एक तकलीफ है,बीज बोए लेकिन बारिश नहीं हो रही।। कुंभार के घर गया तो बेटी ने कहा कि मिट्टी के वासण रखे हैं बारिश ना हो तो अच्छा है।।यह वार्ता कहती है।एक है प्रवृत्ति और एक निवृत्ति हमारी दो बेटी है। प्रवृत्ति को राजी करो तो निवृत्ति नाराज होती है!एक साथ दोनों को राजी नहीं रख सकते।। लेकिन मैं यह कहानी आगे बढ़ाता हूं। मेरे पास आए तो मैं कहता हूं कि थोड़ी ओंस गिर जाए, जाकल तो फसल भी पक जाती है और मिट्टी के वासिणों भी भिगेंगे नहीं। विश्व की कोई समस्या ऐसी नहीं जिनका हल रामचरितमानस में ना हो, यह भरोसा के साथ बोल रहा हूं।। चार घाट पर चार महापुरुष याज्ञवल्क्य मुदिता से भरे हैं।। बुद्ध के पास करुणा, मैत्री,मुदिता और उपेक्षा है।किसी पीठ के पास मैत्री है।शरणागति की तुलसी के पीठ के पास करुणा है और उपेक्षा भी है।। यह चतुर्वेद दर्शन है।।बुध्धपुरुष मन का निर्माता भी है ज्ञाता भी है। सद्गुरु मति को व्यभिचारिणी बनाने से रोकता है।चित् को विक्षेप से बचाता है सरल तरल और नीर अभिमान बनाता है।। यह पंक्ति हमें कहती है कि संसार सागर में हमारी देहरुपी नौका यदि वायु अनुकूल ना हो और यदि सानुकूल वायु हो लेकिन नौका सुद्रढ ना हो, नौका सुद्रढ हो, अच्छा कर्णधार गुरु ना मिले तब तक नौका पार उतरती नहीं है।।

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