विदिशा

गंदगी और बदबू के बीच अंतिम संस्कार को मजबूर ग्रामीण, आनंदपुर में मुक्तिधाम की बदहाली पर उठे सवाल,

आनंदपुर डेस्क:                             सीताराम यादव

विदिशा जिले की सीमा पर स्थित बड़ी पंचायतों में शुमार आनंदपुर आज भी विकास की राह ताक रहा है। हालात इतने खराब हैं कि यहां अंतिम संस्कार जैसे भावनात्मक और गंभीर कार्य भी गंदगी, बदबू और अव्यवस्था के बीच करने पड़ते हैं। वर्तमान में नगर का एकमात्र मुक्तिधाम पूरी तरह जर्जर स्थिति में है, जहां बारिश के दौरान अंतिम संस्कार करना बेहद कठिन हो जाता है।

नगर के समाजसेवी अमित सोनी, ब्रजेश कुशवाह, लालाराम अहिरवार ने बताया कि आनंदपुर भले ही राजनीतिक दृष्टि से प्रभावशाली क्षेत्र माना जाता है यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के दिग्गज पदाधिकारी हैं लेकिन मूलभूत सुविधाएं तक उपेक्षित हैं। मुक्तिधाम की दुर्दशा इस कदर है कि आसपास काँटेदार झाड़ियाँ, मरे जानवरों की दुर्गंध और बैठने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है।

छत के नाम पर टूटी-फूटी दीवारें और जर्जर छत औपचारिकता निभा रही हैं। बारिश हो जाए तो अंतिम संस्कार तक रोकना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि इससे ज्यादा पीड़ादायक स्थिति क्या हो सकती है कि परिजनों को अपने प्रियजन का अंतिम संस्कार भी सुकून से नसीब न हो।

करीब 13 साल पहले तत्कालीन सरपंच मुकेश सोनी ने शासकीय भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराकर दो बीघा में यह मुक्तिधाम तैयार करवाया था। लेकिन इसके बाद न तो बाउंड्रीवाल बनी, न छाया की व्यवस्था हुई और न ही पेयजल या बैठने की सुविधा। नतीजा यह है कि अंतिम संस्कार के दौरान लोगों को कांटों के बीच खड़ा रहना पड़ता है और बदबू सहनी पड़ती है।

आनंदपुर के पूर्व सरपंच प्रेम सिंह बघेल और मुकेश सोनी ने भी माना कि सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की सहायता नहीं मिलती, जिसके चलते नगर की अन्य समस्याओं की तरह मुक्तिधाम की हालत भी बद से बदतर होती चली गई।

वर्तमान सरपंच हरिवल्लभ शर्मा ने स्वीकार किया कि आनंदपुर जैसे बड़े ग्राम में भी अंतिम संस्कार के लिए कोई ढंग की सुविधा न होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने बताया कि पंचायत के पास फिलहाल कोई निधि उपलब्ध नहीं है, लेकिन यदि किसी मद से राशि प्राप्त होती है, तो मुक्तिधाम में बाउंड्रीवाल, छाया और छत की मरम्मत जरूर कराई जाएगी।

नगरवासियों की मांग है कि शासन और जनप्रतिनिधि इस विषय को प्राथमिकता में लें और कम से कम एक सम्मानजनक विदाई के लिए न्यूनतम सुविधाएं तो उपलब्ध कराएं। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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