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मध्यप्रदेश में शराब पर सियासी बवाल: दिग्विजय-कमलनाथ के समय मोनोपॉली, शिवराज सिंह चौहान के राज्य में क्या है

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मध्यप्रदेश सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 में शराब से 14 हजार करोड़ से अधिक का राजस्व जुटाने का लक्ष्य रखा है। नई शराब नीति भी जल्द आने वाली है। दूसरी ओर प्रदेश में शराब के खिलाफ मोर्चा खोले बैठीं पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती चेतावनी दे रही हैं कि यदि नीति में उनके सुझाव शामिल नहीं किए तो परिणाम भुगतने होंगे।

दिग्विजय सिंह से लेकर शिवराज सिंह चौहान तक के कार्यकाल में प्रदेश में शराब ठेकों की पॉलिसी की पड़ताल की तो पता चला कि नियमों में फेरबदल कर शराब से खजाना भरने में कोई सरकार पीछे नहीं रही है।

जानिए… दिग्विजय से शिवराज तक किस नेता के कार्यकाल में क्या रही पॉलिसी

2003 से पहले (दिग्विजय मुख्यमंत्री थे।)

जिले वार केंद्रीयकृत व्यवस्था (मोनोपॉली) थी। जिला अधिकारी के विवेक पर था कि वह जिसे चाहे जिले का ठेका सौंप देता था। फिर वह 10%, 5% या 3%… घटाकर दे या बढ़ाकर दे।

2003 के बाद (उमा भारती मुख्यमंत्री थीं।)

हर जिले में दुकानों के समूह बनाए गए। हर समूह में तीन-चार दुकानें रखी गईं। इन समूहों को लाटरी के जरिए ठेके दिए गए।

2005 के बाद (शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री रहे।)

जिलों की शराब दुकानों का पुनर्गठन। हर समूह में एक-दो दुकानें ऐसी रखी जो ज्यादा चलती हों। नई शॉप खोलीं। ऑन-ऑफ व्यवस्था की। ऑन मतलब अहातों के साथ और ऑफ बिना अहातों के। जिले में रेवेन्यू 100 करोड़ है तो 80 करोड़ से कम यानी 80% राजस्व से कम पर रिन्यूवल नहीं करने का नियम बना। ये बाद में 70% हुआ। यह पूरा नहीं होने पर पूरे जिले का टेंडर किया। एमआरपी व एमएसपी में 20% अंतर किया।

2018 के बाद (कमलनाथ)

दिग्विजय शासन की पॉलिसी फिर लागू। 16 महानगर व बड़े जिलों में केंद्रीयकृत व्यवस्था की। जिले का ठेका एक व्यक्ति, एक फर्म काे दिया। बाकी जिलों में कुछ राशि बढ़ाकर रिन्युवल से टेंडर कराए।

2020 के बाद (शिवराज )

दोबारा फुटकर समूह में टेंडर। पहली बार 85% खपत जरूरी। कंपोजिट पॉलिसी लाए। देसी में विदेशी, विदेशी में देसी शराब बिकने लगी। पहले वैट जोड़कर एमएसपी बनती थी, अब एमएसपी बनाकर वैट जोड़ रहे। पहली बार समूह 60% घटकर गए।

नई नीति में ये संभावित

85% शराब की खपत का जरूरी नियम बन रहा है जो अनावश्यक है। वैट 10% एमएसपी से जुड़ा रहेगा। एमआरपी और एमएसपी के बीच का अंतर बढ़ेगा या नहीं, स्पष्ट नहीं। ठेकेदारों का प्रॉफिट कैसे बढ़ेगा यह साफ नहीं किया। यह भी साफ नहीं है कि कोरोना काल में हुए आबकारी के बकायादारों को वर्ष 2023-24 की टेंडर प्रक्रिया के लिए पात्र माना जाएगा या नहीं। पात्रता नहीं मिली तो स्वस्थ प्रतिस्पर्धा प्रभावित होगी।

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