श्रीराम कथा के वार्षिक पाठ उत्सव का शुभारंभ: मैथिलीशरण महाराज बोले – भक्तों को भगवान संध्याकाल में ही मिलते हैं मैथिलीशरण महाराज
आनंदपुर डेस्क :
श्री सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट के श्री रामदास हनुमान मंदिर पर श्री राम कथा का वार्षिक पाठ उत्सव का आज दोपहर 3:00 बजे से शुभारंभ हो गया है यह कथा मैथिली शरण जी महाराज द्वारा अपने श्री मुखारविंद से समस्त भक्त जनों को सुनाई जा रही है इस कथा का मुख्य विषय हनुमत चरित्र का बखान है आज कथा के प्रथम दिवस मैथिली शरण महाराज में कहा कि भक्तों को भगवान ऐसे ही नहीं मिल जाते और भगवान को प्राप्त करने के लिए आपको विशेष कुछ नहीं करना बस आप लगन के साथ राम राम जपते रहिए तो आपको ईश्वर बड़ी ही आसानी से मिल जाते हैं ईश्वर कभी दिन और रात में नहीं बल्कि दिन और रात के बीच में जो संध्याकाल होता है उसी में भगवान अपने भक्तों को प्राप्त होते हैं जिस प्रकार भक्त पहलाद को हुए थे उस समय हिरण कश्यप ने भगवान की तपस्या कर उनसे वरदान मांगा था कि मुझे ना ही कोई दिन में मार सके और ना ही रात में नाही देव नाही दानव ना ही अस्त्र-शस्त्र से तब भगवान ने उसे वरदान दीया और अपने परम शिष्य पहलाद की करुण पुकार पर भगवान एक खंबे में से प्रकट होकर सम्मुख आए और उन्होंने हरण कश्यप को ना ही ऊपर ना ही नीचे ना ही अंदर नाही बाहर और ना ही दिन और ना ही रात में बल्कि अपने दोनों पैरों पर महल दरवाजे के बीच पैरो पर रखकर अपने नाखूनों से उसका सीना चीर कर वध किया। वह संध्याकाल ही था।

भगवान किस को मिलते हैं इस बार कहा कि जो व्यक्ति अपने सारे कार्य छोड़ कर सत्संग में आ गया है गुरुदेव की सेवा में आ गया है उसे भगवान से यही प्राप्त हो जाते हैं। लेकिन आजकल के व्यक्तित्व भगवान को जो भी दान करते हैं उसकी रसीद लेते हैं जबकि भगवान को किसी चीज की जरूरत नहीं है भगवान तो सहज और सरल ही निश्चल मन से जाप करने पर ही मिल जाते हैं।
साथ ही मैथिली शरण महाराज जी ने हनुमान जी के अनेकों चरित्रों का बखान करते हुए कहा कि जिस प्रकार हनुमान जी ने भगवान राम की सेवा कर उन्हें अपने बस में कर लिया था उसी तरह से कोई भी व्यक्ति निस्वार्थ निष्काम सेवा के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त कर लेता है। यह कथा प्रतिदिन दोपहर 3:30 से शाम को 6:30 बजे तक और सद्गुरु सेवा संघ ट्रस्ट के मंगल भवन में रामचरितमानस का संगीतबद्ध पाठ सुबह 8:30 से 12:30 तक किया जा रहा है जो कि महाशिवरात्रि तक चलेगा।