नई दिल्ली डेस्क :
इटली ने चीन को संकेत दिया है कि वह चाइना के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) से बाहर निकल सकता है। इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने शनिवार 9 सितंबर को चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग को निजी तौर पर ये जानकारी दी। दोनों नेताओं की G20 मीटिंग से इतर मुलाकात हुई थी। इटली ने चीन के साथ 2019 में समझौता किया था।
भारत में हुई G20 समिट कई मायनों में ऐतिहासिक रही। सभी देशों की सहमति से 10 सितंबर को समिट का दिल्ली घोषणा पत्र जारी हुआ। वहीं, भारत, यूरोप और मिडिल ईस्ट यानी खाड़ी देशों के बीच एक इकोनॉमिक कॉरिडोर बनाने पर सहमति बनी।
भारत, यूरोप, मिडिल ईस्ट इकोनॉमिक कॉरिडोर डील को चीन के दो प्रोजेक्ट्स का जवाब माना जा रहा है। ये हैं- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या CPEC। एक लिहाज से CPEC को BRI का ही हिस्सा माना जाता है।
मेलोनी ने थोड़ा वक्त मांगा
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, इतालवी पीएम मेलोनी ने चीन के BRI प्रोजेक्ट से हटने का फैसला सुनाने के लिए वक्त मांगा है। उन्हें इस बात की भी चिंता है कि इसको लेकर व्यापार पर असर पड़ सकता है।
ब्लूमबर्ग ने 2023 की शुरुआत में बताया था कि इटली BRI प्रोजेक्ट से खुद को हटा सकता है। मेलोनी कई महीनों तक इसी उहापोह में रहीं कि चीन सरकार को अपना फैसला कैसे सुनाया जाए।
इटली को धमकी चुका है चीन
मेलोनी कह चुकी हैं कि आने वाले महीनों में वे चीन जाएंगी और संवेदनशील मु्द्दे पर बात करेंगी। वहीं, इटली में चीन के एम्बेसडर ने चेतावनी दी थी कि अगर इटली BRI समझौते से बाहर होता है तो इसके नतीजे भुगतने होंगे।
डील की खास बातें
- सबसे ज्यादा फायदा तीनों रीजन (भारत, यूरोप, मिडिल ईस्ट) में पड़ने वाले गरीब और मिडिल इनकम वाले देशों को होगा। अमेरिका के डिप्टी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर जॉन फिनर ने मीडिया से कहा- इसके नतीजों के लिए 10 साल इंतजार नहीं करना पड़ेगा। बहुत जल्द आप बहुत बड़ी तब्दीलियां देखेंगे।
- USA टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक- प्रेसिडेंट बाइडेन के लिए यह समिट बहुत खास साबित हो रही है। वो चीन के मामले में नर्म माने जाते थे, लेकिन उन्होंने जबरदस्त जवाब दिया और दुनिया को BRI का विकल्प दे दिया। इसमें भारत समेत हर ताकतवर देश अमेरिका के साथ है।
- अब मिडिल ईस्ट रीजन भारत और यूरोप के साथ न सिर्फ रेल बल्कि पोर्ट के जरिए भी सीधे जुड़ेगा। इससे हर किसी को फायदा होगा। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) ऑयल इकोनॉमी को बिजनेस बेस्ड बनाना चाहते हैं। उन्हें मालूम है कि यह उनके विजन 2030 को पूरा करेगा।
- अमेरिका के डिप्टी एनएसए फिनर ने खुद कहा- यह कितनी बड़ी कामयाबी है, इसका जल्द पता चलेगा। इस डील के बारे में लोग तब ज्यादा समझ पाएंगे, जब इसका काम शुरू होगा। इससे हर क्षेत्र में तनाव भी कम होगा।
- हालिया वक्त में चीन की कोशिश रही है कि वो UAE और सऊदी अरब में दबदबा बढ़ाकर अमेरिका और भारत को यहां कमजोर करे। अब सऊदी क्राउन प्रिंस ने एक बार फिर अमेरिका के पाले में जाने की तरफ इशारा कर दिया है। ये इसलिए भी अहम है, क्योंकि कोरोना के दौर के बाद चीन की इकोनॉमी दिन-ब-दिन कमजोर हो रही है। पिछली चार तिमाही में उसका ग्रोथ रेट हर बार कम रहा है।
- इकोनॉमी के लिहाज से देखें तो इस डील में शामिल हर देश तेजी से विकास कर रहा है। अब चूंकि यूरोपीय यूनियन भी इसका हिस्सा है तो आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि कम से कम 27 देश इस डील में सिर्फ इस यूनियन से होंगे।
जॉर्जिया मेलोनी के बारे में जानें…
मेलोनी इटली की पहली महिला प्रधानमंत्री हैं। वो एक धुर दक्षिणपंथी नेता हैं। उन्होंने 2022 में ही चुनाव जीतकर इतिहास रचा था। मेलोनी पर एलजीबीटी विरोधी, फासीवादी और इस्लामोफोबिक होने के आरोप लगते हैं. हालांकि वो इनसे इनकार करती हैं और अपनी छवि सुधारने पर भी काम कर रही हैं।
जॉर्जिया मेलोनी 2008 में 31 साल की उम्र में इटली की सबसे युवा मंत्री बनी थीं। इसके चार साल बाद यानी साल 2012 में उन्होंने ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी बनाई। टीनेजर रहते हुए निओ फासिस्ट मूवमेंट में शामिल हुईं। इसकी शुरुआत इटली के पूर्व तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी के समर्थकों ने की थी। 2021 में मेलोनी की किताब ‘आई एम जॉर्जिया’ आई। इसमें भी उन्होंने इसी बात पर जोर किया कि वो फासीवादी नहीं हैं। साथ ही खुद को मुसोलिनी का वारिस भी बताया।