विदिशा

150 साल पुरानी परंपरा माचिस से नहीं बंदूक से होता होलिका दहन: टोंक रियासत के नवाब ने होली जलाने पर बैन लगाया, गुस्से में घास रखकर चलाई गोली

सिरोंज डेस्क :

7 मार्च यानी मंगलवार को होलिका दहन का पर्व मनाया जा रहा है। इसे लेकर देशभर में अलग-अलग परंपरा है। ऐसी ही अनूठी परंपरा मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के सिरोंज में भी है। यहां मशाल या माचिस से नहीं होली नहीं जलाई जाती। यहां बंदूक से दागी गई गोली से निकली आग से होली जलाई जाती है। सदियों पुरानी इस परंपरा का निर्वहन इस बार भी हुआ। सोमवार रात 1 बजे मुहूर्त अनुसार इस बार होलिका दहन किया गया।

सिरोंज में सबसे पुरानी और बड़ी होली पचकुंइया हनुमान मंदिर के पास जलाई जाती है। इस होली का दहन माचिस से नहीं बंदूक से होता है। होलिका दहन के पहले होली की पूजा पं. नलिनीकांत शर्मा द्वारा करवाई जाती है। होली सजाकर उसके पास घास का ढेर रखा जाता है, फिर उसी घास के ढेर को निशाना बनाकर बंदूक से गोली दागी जाती है। घास में चिंगारी लगते ही, तत्काल वह आग सामने सजी होली में डाली जाती है। होली के जलते ही उल्लास उमड़ पड़ता है। इसी होली की आग से शहर की अन्य होली और घर-घर में जलाई जाने वाली होली की आग भी सुलगती है।

150 साल पुरानी परंपरा
माथुर परिवार के वंशज संजीव माथुर बताते हैं कि करीब 150 साल पहले सिरोंज में रावजी की हवेली के पीछे मुन्नू भैया की हवेली थी। इसे 52 चौक की हवेली कहा जाता था। यहां कानूनगो रहा करते थे, जिनका ओहदा तहसीलदार के बराबर माना जाता था। ये कानूनगो मुन्नू भैया के नाम से जाने जाते थे। टोंक रियासत का दौर था। कानूनगो मुन्नू भैया के समय ही एक बार यहां टोंक रियासत के नवाब ने होलिका दहन पर बंदिश लगा दी थी। इससे हिन्दुओं की भावनाएं आहत हुई थीं, लेकिन कोई कुछ नहीं कर पा रहा था।

अंदर ही अंदर सब कसमसा रहे थे कि सांकेतिक ही सही होली तो जलना चाहिए, इसलिए कुछ सनातनी लोगों ने योजना बनाई। चुपके से लकड़ी-कंडों का ढेर लगाकर उसे सूखी घास के गट्ठों से ढंक दिया गया। ऊपर से यह ढेर घास का था। योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक परंपराओं का निर्वहन करने होलिका दहन की रात माथुर परिवार के सदस्यों ने इसी ढेर पर बंदूक चला दी, जिससे होली जल उठी। इसके बाद त्योहार की रस्म पूरी हुई, तभी से यहां होलिका दहन बंदूक से करने की परंपरा चल पड़ी।

माथुर परिवार कर रहा परंपरा का निर्वहन

धर्माचार्य पं. नलिनीकांत शर्मा का कहना है कि होलकर राज्य में यह रावजी की होली कहलाती थी। उस समय भी सूखी घास, रुई रखकर बंदूक से फायर कर आग उत्पन्न की जाती थी, उसी आग से होली जलाई जाती थी। बाद में होलकर स्टेट के कानूनगो परिवार ने बंदूक से फायर कर होली जलाई जाने लगी, जो आज भी जारी है। वर्तमान में भी कानूनगो माथुर परिवार इस परंपरा का निर्वहन कर रहा है। इस परिवार के वंशज महेश माथुर ने एक कथा भी इस संदर्भ में बताई। उन्होंने कहा कि जब सिरोंज में नवाबी शासन आया, तो इस परंपरा पर रोक लगाने का प्रयास किया। तब होली के चबूतरे पर घास का एक ढेर (गंज) लगा दिया। जिस पर उनके पूर्वजों ने बंदूक से फायर कर होली जला दी थी। उसके बाद पीढ़ी दर पीढ़ी यह परंपरा चली आ रही है।

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