जयपुर

जयपुर में गोपाल के मंदिर में 8 किलो सोने के कलश में 110 साल पुराना गंगाजल: सुरक्षा में तैनात रहते हैं 6 जवान, पुजारी बोले- आज तक एक बूंद कम नहीं हुई

जयपुर डेस्क :

आज निर्जला एकादशी है। राहगिरों को जल पिलाया जा रहा है। इस दिन जयपुर में गोविंद देव जी मंदिर के पीछे गंगा गोपाल के मंदिर में भक्तों को हरिद्वार से लाया गया गंगाजल प्रसाद में दिया जाता है। जो मंदिर में रखे सोने के कलश को छूकर दिया जाता है। इस कलश में 110 साल पहले लाया गया गंगाजल रखा है। इस सोने के कलश का वजन कुल 8 किलो है।

गंगा गोपाल मंदिर 110 साल पुराना है। इसका निर्माण सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सन 1914 (विक्रम संवत 1971) में करवाया। मंदिर निर्माण के समय गंगोत्री से गजल लाया गया था। इसे आज भी वैसे ही सोने के कलश में रखा गया। मंदिर के पुजारी श्री कृष्ण ने बताया- इस सोने के कलश में विराजित गंगाजल में आज तक एक बूंद की भी कमी नहीं आयी है। समय-समय पर इसे खोलकर चेक किया जाता रहा है।

सोने के कलश की जवान करते हैं सुरक्षा

सोने के कलश में को मंदिर में कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया है। यह मंदिर जयपुर राजघराने की संपत्ति है। इसकी देख-रेख अब राजस्थान देवस्थान विभाग करता है। देवस्थान विभाग की ओर से यहां 6 जवान तैनात किए गए हैं। जो तीन शिफ्ट में 24 घंटे तैनात रहते हैं।

सोने की कलश की सुरक्षा में लगे जवान जितेंद्र ने बताया- हम 6 जवान लगातार सुरक्षा में रहते हैं। हर वक्त हमें मुस्तैदी से तैनात रहना पड़ता है। आने जाने वालों को हर एक व्यक्ति को हमें चेक करना पड़ता है। ताकि मंदिर की सुरक्षा व्यवस्था बनी रहे।

मंदिर में गंगा जी के चरण के भी होते है दर्शन

मंदिर में कलश को पोशाक से ढक कर रखा जाता है। इस मंदिर में गंगा जी के चरण के भी दर्शन होते हैं। जो सिर्फ निर्जला एकादशी से पहले गंगा दशमी के दिन ही भक्तों को होते हैं। गोविंद देव जी के दर्शन करने आने वाले दर्शनार्थी गंगा गोपाल के भी दर्शन करते हैं। मंदिर में हरिद्वार से एक दिन छोड़कर दूसरे दिन गंगाजल मंगवाया जाता है।

पुजारी बदलने के साथ होता है कलश का वजन

मंदिर के पुजारी बताते हैं कि उन्हें देवस्थान विभाग की ओर से लगाया गया है। जब भी पुजारी चेंज होते है। कलश का वजन किया जाता है। कलश के वजन करने से इस बात को भी समझा जाता है कि कलश में रखे गंगाजल में कोई कमी नहीं आयी है। मंदिर में सुबह 5:00 बजे मंगला आरती, फिर धूप आरती श्रृंगार आरती राजभोग ग्वाल संध्या एवं शयन आरती होती है।

महाराजा माधोसिंह की पटरानी की सेव्य मूर्ति भी हैं विराजित

इस मंदिर में गंगाजी की मूर्ति भी विराजित है। जो महाराजा माधोसिंह की पटरानी जादूणजी की सेव्य मूर्ति थी। इसकी सेवा और पूजा जनानी ड्योढी में महिलाएं ही करती थीं। जादूणजी के बाद भी इसकी सेवा-पूजा का मंडान चलता रहा। इस दृष्टि से मंदिर को बनवाकर वैशाख शुक्ल 10 सोमवार, संवत् 1971 में गंगाजी को पाट बैठाया गया। ।

मंदिर के ठीक सामने विराजते हैं ‘इंग्लैण्ड रिटर्न्ड’ ठाकुरजी

गंगा मंदिर के ठीक सामने गोपाल जी का भी मंदिर है जिसमें राधा-गोपाल विराजते हैं। लोग इन्हें इंग्लैंड रिटर्न भगवान के नाम से भी जानते हैं। मंदिर के पुजारी के अनुसार गोपाल जी का मंदिर गंगा मंदिर के बाद बनवाया गया था। दरअसल, महाराज की इंग्लैंड यात्रा के दौरान राधा-गोपाल को भी अपने साथ लेकर गए थे।

बेटों के नाम पर बनाए थे दोनों मंदिर गंगा और गोपाल

सिटी पैलेस की सीनियर क्यूरेटर रामकृष्ण ने बताया- सवाई माधोसिंह के 2 पुत्र गंगा और गोपाल थे। इनकी चिकन पॉक्स से मृत्यु हो गई थी। सवाई माधोसिंह अपने दोनों बेटों की याद में गंगा-गोपाल मंदिर का निर्माण करवाया था।

मंदिर में रसोई भी बनाई गई

महाराजा माधोसिंह ने दोनों ही मंदिरों में संगमरमर से बने लेख भी लगवाए थे। इस पर उस वक्त 24 हजार रुपए की लागत आई। बाद में इसमें एक रसोई जोड़ी गई। इस पर 11,444 रुपए और लगे। इस प्रकार कुल 35,444 रुपए इस पर खर्च हुए। छोटा होने पर भी मंदिर की निर्माण सामग्री में संगमरमर और करौली के सुघड़ बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!