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देवताओं की पहाड़ी से निकला मंदिर, सीहोर में खुदाई में मिले 11वीं सदी के अवशेष, इन्हें जोड़कर मंदिर बनाए जा रहे

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आपने बच्चों को पजल गेम यानी अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर आकृति बनाते देखा होगा। बिल्कुल इसी तरह अलग-अलग टुकड़ों को जोड़कर एक मंदिर बनाया गया है। ऐसे आठ और मंदिर बनाने की तैयारी है। हालांकि, ये बच्चों के गेम की तरह आसान नहीं, बल्कि बेहद जटिल प्रक्रिया से मुमकिन हुआ है। इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद सीहोर जिले के देवबड़ला इलाके में खुदाई में मिले अवशेषों को जोड़कर 300 साल से जमीन के नीचे दबे 11वीं सदी के मंदिर को फिर से खड़ा कर दिया गया है।

300 साल से जमीन में दफन रहस्यमयी इतिहास बाहर आ चुका है। 

क्या है पूरी कहानी…

सीहोर जिला मुख्यालय से 72 किमी दूर बसा है बीलपान गांव। इस गांव से तीन किमी दूर है देवबड़ला इलाका। देवबड़ला यानी देवताओं की पहाड़ी। जाहिर है इलाका पहाड़ी है और लंबे अरसे से उपेक्षित, इसलिए यहां तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है। हमारे पास ये सूचना थी कि देवबड़ला में 11वीं सदी के मंदिरों के अवशेष मिल रहे हैं।

जब हम यहां पहुंचे तो दूर से ही एक मंदिर दिखाई दिया। मंदिर देखकर पहली नजर में हमने यही सोचा कि ये मंदिर यहां पहले से ही स्थित है। पूछताछ में पता चला, हम गलत समझ रहे हैं। कुछ महीने पहले तक यहां मंदिर नहीं था। मंदिर का अवशेष था, जो जमीन के नीचे दबा था। पुरातत्व विभाग की मेहनत से ये मंदिर खड़ा हुआ है। इतना ही नहीं अभी 8 और मंदिर खड़े किए जाने हैं।

6 साल पहले शुरू हुई यहां खुदाई

कुछ प्रतिमाएं यहां की पहाड़ियों में बिखरी पड़ी थीं। 2016 में जब इसकी सूचना पुरातत्व विभाग के अफसरों तक पहुंची, तो यहां खुदाई शुरू की गई। जैसे-जैसे खुदाई आगे बढ़ी, पुरातत्व विभाग के अफसर भी हैरान हो गए। यहां मंदिरों को दोबारा खड़ा कराने की जिम्मेदारी देख रहे पुरातत्व विभाग के अफसर जीपी चौहान बताते हैं कि पहले चार मंदिरों का बेस मिला। जब हम 5वें मंदिर का बेस तलाश रहे थे, तभी हमें चार और मंदिरों का पता चला। यानी अब यहां कुल 9 मंदिरों के बेस सामने आ चुके हैं।

अब तक 30 प्रतिमाएं मिलीं

अब तक शिव तांडव नटराज, उमाशंकर, जलधारी, नंदी, विष्णु, लक्ष्मी की प्रतिमा सहित कुल करीब 30 प्रतिमाएं मिली हैं। जिनमें से कुछ खंडित हैं बाकी सब ठीक हालत में हैं। उन्हें सुरक्षित स्थान पर रख दिया है। करीब 200 फीट से अधिक एरिया में अभी खुदाई हुई है। अभी काम चल रहा है। अभी और प्रतिमा मिलने का अनुमान है।

भूमिज शैली के मंदिर मिले

इस शैली की विशेषता उसके शिखर में दिखाई देती है। इस शिखर के चारों और प्रमुख दिशाओं में तो लतिन या एकान्डक शिखर की भांति, ऊपर से नीचे तक चैत्यमुख डिजाइन वाले जाल की लताएं या पट्टियां रहती हैं, लेकिन इसके बीच में चारों कोणों में, नीचे से ऊपर तक क्रमशः घटते आकार वाले छोटे-छोटे शिखरों की लड़ियां भरी रहती हैं। देवबड़ला में मिले मंदिर इसी शैली के हैं। एक्सपर्ट के अनुमान के मुताबिक परमारकाल में 11वीं सदी में बने थे।

भूकंप या गिराने से जमीन में दबे थे

पुरातत्व विभाग का अनुमान है कि करीब 300 साल पहले यानी 18वीं सदी में ये मंदिर भूकंप के कारण धराशायी हुए या किसी आक्रमणकारी के हमले में गिराए गए। समय के साथ पहाड़ी इलाके में बारिश और मिट्‌टी के कटाव के कारण साल दर साल इनके ऊपर मिट्‌टी की परत जमती चली गई। ये जमीन के नीचे दब गए।

शिव मंदिर तैयार, विष्णु मंदिर अगले साल बनेगा

देवबड़ला मंदिर समिति के अध्यक्ष ओंकार सिंह भगत व कुंवर विजेंद्र सिंह भाटी ने बताया कि अभी 41 लाख रुपए की लागत से 51 फीट ऊंचा भगवान शिव का मंदिर बनकर तैयार हो गया है। अब करीब 35 फीट ऊंचा भगवान विष्णु का 16 लाख रुपए की लागत से मंदिर बनाया जा रहा है, जिसका काम अगले साल पूरा हो जाएगा। मंदिर को भव्य रूप दिया जा रहा है, जिससे कि वह आकर्षण का केंद्र बने। इसके अतिरिक्त अन्य सुविधा जुटाई जाएगी, जिसके कि लोगों को फायदा मिले। इसके बाद बारी-बारी से सभी मंदिर बनाए जाने हैं।

उस तकनीक को समझिए, जिससे ये मुमकिन हुआ

पुरातत्व विभाग के अफसर जीपी चौहान ने बताया कि भोपाल के पुरातत्व अधिकारी डॉ. आरसी यादव के निर्देशन में पुरानी इमारतों को दोबारा सहेजने के लिए उसी टेक्निक का इस्तेमाल किया गया है, जिससे उस काल में भवन बनाए जाते थे। यहां भी मंदिर के अवशेषों को जोड़ने के लिए उड़द की दाल, चूना, गुड़ जैसे केमिकल यूज किए जा रहे हैं। मसाले की लेयर बेहद पतली होती है। पत्थरों को लिफ्ट करने के लिए आधुनिक मशीनों का सहारा भी लिया जा रहा है। भोपाल से पुरातत्व विभाग की कमीश्नर शिल्पा गुप्ता भी देवबड़ला की प्रगति को लगातार मॉनीटर कर रही हैं।

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